बेटी आ बेटा लेल शिक्षाः बेटीक कन्यादान ओहने परिवार मे करू जे बेटी-बेटा प्रति समान सोच रखलनि अछि
युग ओ नहि रहि गेलैक जे बेटा उच्च शिक्षा ग्रहण करत आ बेटी पति-परिवार पर निर्भरता पाबि गृहिणी आ कुशल मातृत्व मात्र ग्रहण करत। हम ई कदापि नहि कहब जे अल्पशिक्षित महिला उच्चशिक्षित पुरुषक तुलना मे खराब होइत छथिन, कियैक त हम अपन जीवन मे स्वयं अपन माय-पितियाइन-बाबी-मौसी-पीसी आदिक स्थिति सँ एहि बात पर जोरदार विश्वास करैत छी जे नारी शक्ति मे ई आधुनिक शिक्षा वला उच्च शिक्षा सँ बहुत आगू पारिवारिक आ पारम्परिक सांस्कारिक शिक्षा थिकैक, तखन न वैह अल्पशिक्षित माय एहेन-एहेन धियापुता सभक जन्म आ पालन-पोषण संग पारिवारिक संस्कार प्रदान करैत छैक जाहि के बल पर मिथिलाक लोक संसार भरि मे अपन सौरवक प्रदर्शन कय रहल छैक। लेकिन आबक पीढ़ी मे बेटी केँ शिक्षा नहि देबय त विश्व भरिक अन्य समुदायक अपेक्षा हम सब बहुत पछैड़ जायब। खास कय केँ पलायन लेल बाध्य मैथिल समाज बाहरक दुनिया देखि चुकल अछि। बाहरी लोक आ बेटी शिक्षाक अवस्था सँ बखूबी परिचित अछि। तेँ आइ बेटा आ बेटी मे विभेदक सवाले नहि उठैत छैक। हँ, गाम-घर मे बहुत रास जाति-समुदाय मे ई पिछड़ापन एखनहुँ ओहिना हावी छैक। ताहि दिशा मे सामाजिक अभियान केँ बढेनाय सेहो जरूरी देखि रहल छी।
किछु गोटे दाकियानूसी सोच राखयवला उच्च शिक्षित वर्ग एखनहुँ बेटी सभक शिक्षा प्रति रूढ़िवादी विचारधाराक पृष्ठपोषण करैत छथि। एहेन लोक वास्तव मे बेटी केँ दहेज गानिकय उच्च स्तर के ‘सरकारी नौकरीवला’ या फेर खूब बेसी टका कमायवला जमाय कीनब पसिन करैत छथि। आर त आर, एहने लोक सब दोसरक बेटी केँ उच्च शिक्षा मे अग्रसर देखि ओकरा बारे तरह-तरह के क्षुद्र आ कलंकित बात-विचार साझा करैत रावणी अट्टहास सेहो करैत देखल जाइत छथि। हिनका सब केँ कि पता जे ई जतेक दहेज गानिकय बेटी लेल सरकारी नौकरी वला दूल्हा अनता आ कि मोटगर-डटगर पाइ कमेनिहार जमाय अनता ताहि सँ बहुत बेसी टका पहिनहि ई बेटी पढ़ेनिहार वर्ग अपन बेटीक शिक्षा पर खर्च कय चुकल रहैत छैक। ओकरा एहि बात के परवाह नहि रहैत छैक जे विवाह मे दहेज गानय पड़त आ कि रने-बने छिछियाय पड़त तखन बेटीक विवाह होयत…! विवाह ओहि परिवार लेल सेकेन्डरी विषय भ’ गेल छैक। हालांकि एहि मामिला मे हम सब बेस होशियार बनिकय समय के महत्व बुझैत सब काज करी, हमर यैह आह्वान रहत… धरि शिक्षा मे पाछू बिल्कुल नहि पड़ी आ बेटी केँ आसमान छुबय लेल स्वतंत्रता जरूर दी, हम यैह बेर-बेर कहब। क्षुद्र आ कलंकित निन्दा मे मशगूल ई रूढिवादी लोकक बात मे बिल्कुल नहि पड़ी आ न एहेन परिवार मे कथमपि अपन बेटीक कन्यादान करी। ओहने परिवार मे बेटीक कन्यादान करू जे स्वयं बेटी सभक शिक्षा लेल अहाँ जेकाँ सोच राखि आगू बढेलनि अछि।
हरिः हरः!!