गरीब नीक लेकिन कल्लर बिल्कुल नहि

विषय थिकैक गरीबी। गरीबी सामान्यतया अभिशाप मानल जाइत छैक। से सच्चाई थिकैक। गरीबी एक अभिशापे थिक। अभाव केँ आशीर्वाद केना मानल जाय! लेकिन गरीबी एकटा चुनौती सेहो होइत छैक। गरीबी एकटा हठ सेहो होइत छैक। गरीबी एकटा परीक्षा सेहो होइत छैक। गरीबी के आध्यात्मिक स्वरूप पर हमर चिन्तन बहुत अलग अछि। हम राजा हरिश्चन्द्र केँ गरीबी मे देखलियनि। हम सुदामा केँ गरीबी मे देखलियनि। हमरा शबरी के गरीबी नजरि पड़ल। स्वयं महादेव गरीब बनि गेलथि। टका-पैसा सँ सम्पन्न आ बुद्धि सँ दरिद्र सेहो गरीबे भेल। हमरा कुन्ती के गरीबी सेहो देखय मे आयल, सेहो हुनकर अपनहि वचन सँ… ओ जखन कृष्ण केँ महाभारत युद्धोपरान्त वापसी करैत समय कहने रहथिन… जे बौआ, हमरा सदिखन गरीबे बना के रखिहें जाहि सँ हम तोरा याद करैत रही आ तूँ गरीबक सहारा बनिकय सदिखन हमरा पास बनल रहिहें, तूँ कखनहुँ हमर मोन सँ बाहर नहि जइहें। हम यथार्थतः एहि गरीबी केँ खूब पसीन करैत छी।
 
गरीब आ कल्लर (मंगुआ) मे फर्क छैक। गरीब अपन गरीबी मे रहितो लोभ नहि करैछ, जतेक सँ पुरि जेतैक ततबे के इच्छा करैत अछि तखन गरीब भेल। आ जँ गरीबी केँ दूर करबाक लेल लोभ, मोह, माया आदि मे फँसिकय आवश्यकता सँ बेसी मंगबाक इच्छा करय त ओ कल्लर भेल। कल्लर सँ हमरा दूरी बनबय मे नीक लगैत अछि। कल्लर केँ किछु दैतो हमरा नीक नहि लगैत अछि। लेकिन असहाय, दीन, दुखिया, समस्याग्रस्त मानव, हीनभावना सँ ग्रसित दुःखी लोक – ई सब हमरा बेसीकाल ईश्वरक बदलल रूप बुझाइत अछि। जतय तक हुए सहयोग के भावना सँ एहि सब केँ सेवा करबाक चाही।
 
एहेन बहुत रास खिस्सा सब मोन पड़ैत अछि जे गरीबी मे देखलहुँ, लेकिन कर्मठता सँ एक गरीब सेहो अपन आत्मसम्मान केँ उच्च राखि सकैत अछि से हमरा बड पैघ शिक्षा देलक एहि जीवन मे। कथमपि लोभ नहि करबाक चाही। घटल छी त कोनो बात नहि, अधर्म आ अत्याचार के सहारा लय, ठगी आ धोखा कय दोसरक सम्पत्तिक हरण करब आ गरीबी दूर करब… ई महापाप थिक। एहि तरहक सोच रखनिहार कतेको महापुरुष भेलथि एहि संसार मे। मिथिलाक अयाची मिश्र (मूल नाम भवनाथ मिश्र) केर कथा पढ़ने-सुनने छी। आइ धरि ओ केकरो सँ किछुओ याचना नहि कयलनि। निःसन्तान रहथि। पत्नी बड कहलखिन त एकटा पुत्र अपन इष्टदेव महादेव सँ मंगलनि। स्वयं शंकर आबि गेलखिन पुत्रक रूप मे। आ से शंकर जखन दरभंगा महाराजक दरबार मे अपन परिचय देलखिन –
 
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम्॥
 
बुझि जाउ जे ओ बालकक तेज केहेन रहल हेतैक दरबार मे। बड़का-बड़का विज्ञजन दाँत तर केना आंगुर दबौने हेथिन। महाराज त एतबा प्रसन्न भेलाह जे अक्खा-सम्पत्ति ओहि बालक केँ दान मे दय देलखिन। लेकिन पिता अयाची जे हुनकर जन्मक समय अभावक कारण चमाइन केँ ओकर पारिश्रमिक नहि देने रहथिन, मात्र गछने रहथिन जे एहि बालकक पहिल कमाइ तोरे देबउ… आ से बालक शंकर द्वारा अर्जित ओ सारा सम्पत्ति चमाइन केँ दय देलखिन। बुझू! एक गरीब लेल ओतेक दान बड पैघ बात रहैक। लेकिन ओ गरीब नहि, स्वयं दिव्यपुरुष भगवान् रहथि आ लोकाचार मे गरीबी झेलि एहेन उदाहरण बना गेलाह जे आइ धरि हम-अहाँ चर्चा करैत छी। आइयो चमैनियाँ पोखरि सरिसवपाही मे विद्यमान अछि।
 
हे गरीब भगवान लोकनि! खासकय युवा लोकनि! जिनका अपन गरीबी के भान भ’ जायत ओ संसार सँ तरि जायब। लेकिन ध्यान राखब, कल्लर टा नहि बनब।
 
हरिः हरः!!