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२०२२ केर तिला संक्रान्तिक पुण्यकालक गणना पर आचार्य धर्मेन्द्रनाथक सन्देश

१३ जनवरी २०२२ । मैथिली जिन्दाबाद!!

ज्योतिषी शास्त्रक ग्रन्थ ‘व्यवहाररत्न’ मुताबिक सूर्य केर संक्रान्ति काल सँ पूर्व १६ घड़ी तथा पश्चात (बाद) १६ घड़ी पुण्यकाल कहल गेल अछि। रात्रिकालक पूर्वार्ध मे संक्रान्ति पड़य आ पूर्व दिनक उत्तरार्ध मे और रात्रि केर उत्तरार्ध मे संक्रान्ति पड़य तऽ ऐगला दिनक पूर्वार्ध मे पुण्यकाल पड़ैत छैक। ठीक निशीथ (मध्य रात्रि) मे संक्रान्ति पड़य तऽ दुनू दिन (पूर्व दिन केर उत्तरार्ध और अग्रिम दिन के पूर्वार्ध) मे पुण्यकाल पड़ैत छैक। कर्क और मकर केर संक्रान्ति मे किछु विशेषता छैक। विशेषता ई छैक जे मकर केर संक्रान्ति यदि रात्रिक पूर्वार्ध मे सेहो हो तऽ ऐगला दिन पुण्यकाल और कर्क केर संक्रान्ति रात्रिक उत्तरार्ध मे पड़य तऽ पूर्व दिन केर उत्तरार्ध मे पुण्यकाल पड़ैत छैक।
एहि वर्षक संक्रान्ति पुण्यकालक समय
आजुक रात्रि यानी दिनांक १३-०१-२०२२ केँ वृहस्पति दिनक मध्य रात्रिक पश्चात मकर राशि मे सूर्य प्रवेश करत। जाहि कारण ऐगला दिन यानी दिनांक १४-०१-२०२२ केँ संक्रान्ति पुण्यकाल समय दिन मे १२ बाजिकय १ मिनट के बाद आ रात्रिक ०७-१७ बजे तक रहत। एहि पुण्यकाल मे स्नान, दान, ध्यान आदि पुण्यप्रद रहत। शुक्र दिन केँ प्रातः लगातार अधपहरा जे प्रातः ९ बजे सँ १२ बजे दिन धरि वर्जित अछि।
मुहूर्त चिन्तामणि ग्रन्थानुसार –
सूर्य केर संक्रान्ति समय सँ १६ घटी पूर्व (पहिने) और १६ घटी बाद पुण्यकाल होइत छैक। अर्धरात्रि केर पूर्व संक्रान्ति हुए तऽ पहिले दिनक उत्तरार्ध पुण्यकाल होइत छैक। और अर्धरात्रिक बाद संक्रान्ति हुए तऽ दोसर दिन केर पूर्वार्ध पुण्यकाल होइत छैक।
अर्धरात्रि केर संक्रान्ति केर विशेषता बतबैत मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र कहैत छथि – यदि अर्धरात्रि मे सूर्य केर संक्रान्ति हुए तऽ दुनू दिन पुण्यकाल होइत छैक। आब मकर और कर्क केर संक्रान्तिक विशेषता यैह अछि जे सूर्योदय सँ पहिने जँ कर्क केर संक्रान्ति हुए तऽ पहिले दिन पुण्यकाल होइत छैक। और सूर्यास्त के बाद मकर संक्रान्ति हुए तऽ दोसर दिन पुण्यकाल होइत छैक।

दिनक हिसाब सँ संक्रान्तिक नाम आ ओकर प्रभाव 

आचार्य धर्मेन्द्रनाथ कहैत छथि जे रवि केँ सूर्य संक्रान्ति भेला सँ घोरा नामक संक्रान्ति होइत छैक जे शूद्र केँ सुख दयवाली कहल गेल अछि। सोम दिन संक्रान्ति हुए तऽ ध्वांक्षी नामक संक्रान्ति होइत छैक जे वैश्य केँ सुख दयवाली होइछ। मंगल केँ संक्रान्ति हुए तऽ महोदरी नामक संक्रान्ति होइछ जे चोर केँ सुख दैत अछि। बुध केँ संक्रान्ति हुए तऽ मंदाकिनी नामक संक्रान्ति होइत छैक जे क्षत्रिय केँ सुख दैत छैक। वृहस्पति दिन संक्रान्ति हुए तऽ मंदा नामक संक्रान्ति होइछ आ से ब्राह्मण केँ सुख दैत अछि। तहिना शुक्र दिन संक्रान्ति हुए तऽ मिश्रा नामक संक्रान्ति होइछ जे पशु सब केँ सुख दयवाली होइछ। तथा, शनि दिन केँ संक्रान्ति हुए तऽ राक्षसी नामक संक्रान्ति जाहि सँ अन्त्यज लोकनि केँ सुख प्राप्ति होयबाक विधान वर्णित अछि। 

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