सम्पादकीय
२८ दिसम्बर २०२१ । मैथिली जिन्दाबाद!!
आइ एकटा विवाह उत्सव पर ताम-झाम मे लाखों रुपया खर्च करबाक नियति बनि गेल अछि। आब लोक पहिने जेकाँ घरही कुर्सी, टेबुल, सोफा, गुलदस्ता, टेबुल क्लोथ आ अन्य साज-श्रृंगारक सामान मांगिकय विवाह मे वर-बरियातीक स्वागत लेल जनमासा नहि बनबैत अछि। आब टेन्ट, लाइट, डेकोरेशन, आदिक सारा सामान गामे-गाम चौक-चौराहा पर व्यवसायी सँ भाड़ा पर लय कय ई सब काज कयल जाइछ।
कोदारि, खन्ती, टेंगारी, कुरहैर, सीढ़ी, लग्गी, हर, बरद या लोक-समांग आब केकरो सँ माँगल नहि जाइछ समाज मे। मात्र किछेक दशक मे बाजारवाद के असर अपन मिथिला समाज पर एना पड़ि गेल अछि जे एक खर्च मे दस गोटेक काज निमहब वला संस्कृति विलुप्त भ’ गेल। या त ई सब सामान स्वयं कीनिकय अपन-अपन घर मे राखू या फेर सर्विस प्रोवाइडर (सेवा दाता) सँ ई सामान सेवा शुल्क भुगतानी कय केँ लिअ आ काज करू।
आजुक स्थिति-परिस्थिति मे लोकक घर-गृहस्थीक सारा सामान अपनहि घर मे उपलब्ध छैक। सब सामान उपलब्ध करबाक वातावरण सेहो निर्माण भऽ गेल छैक, कियैक तँ परस्पर सहयोगक भावना मे बड पैघ कमी आबि गेल छैक। कियो केकरो सँ किछु माँगय जाइछ त ओकरा खाली हाथे लौटय पड़ि जाइत छैक। तेँ लोक चेष्टा करैत अछि जे सब वस्तु के इन्तजाम स्वयं करी। व्यवसाय एना पनैप रहल छैक जाहि सँ केकरो दोसरक मुंह नहि ताकय पड़य, यदि कोनो सामान अपन घर मे नहि अछि त ओ सामान आब भाड़ा पर भेटैत छैक, अहाँ भाड़ा दय कय ओ सामान आनू लेकिन समाज मे पड़ोसी सँ या कोनो व्यक्ति सँ माँगय नहि जाउ।
एहि परस्पर सहयोग आ आपसी सहकार्यक कमीक कारण समाज मे लोक-लोक बीच दूरी बढैत चलि जा रहल अछि।
जीवन मे सफल बनबाक लेल एकटा बड पैघ सूत्र छैक जे कखनहुँ दोसरक चरित्र चित्रण करय सँ पहिने स्वयं केर चरित्र निरीक्षण करबाक चाही। अक्सरहाँ एहेन लोक भेटि जाइछ जे सीधा मिथिलाक लोक मे अनेकों दुर्गुण केर व्याख्या करैत भेटि जायत। ताकल जाय त ओहि व्याख्या करनिहारक स्वयं केर कइएक कमजोरी भेटि जायत।
चूँकि मनुष्य सामाजिक प्राणी कहल जाइछ आ सब कियो अपन बलबुते जीवन संचालित करैत अछि, यदाकदा एक-दोसर सँ सहयोगक लेब-देब सेहो जरूरी होइछ। एहि क्रम मे लोक केँ जे अनुभव होइत छैक ताहि अनुभवक आधार पर एक-दोसरक सम्बन्ध मे अपन अनुभव रखैत अछि। लेकिन आजुक समय मे उपरोक्त गोटेक उदाहरण सँ स्पष्ट भेल सामाजिक सहकार्यक अभावक कारण सब कियो अपनहि मे फुच्च रहि दोसरक केवल निन्दा आ कौचर्य मे लागि गेल अछि। समाज लेल ई किन्नहु नीक बात नहि थिकैक। एहि सँ समाजक लोक काफी कमजोर होइछ। केस-मोकदमा आ कनियो टा के समस्याक निदान लेल आइ कानून-प्रशासन मात्र सहारा बनैत छैक। समाजक हरेक व्यक्ति केँ एहि दीनता केँ सुधार करबाक लेल उचित माहौल बनेनाय जरूरी अछि।
हरिः हरः!!