मैथिली सँ भीन त भेलहुँ परिणाम कि भेटल से कथित बज्जिकाभाषी सँ पुछू

नेपाली जनगणना (२०७८) मे एकटा अजीब होड़ मचल अछि। विगत किछु वर्ष मे ओबीसी नाम के एक एनजीओ आ एकर किछु कार्यकर्ता सब मैथिली भाषा केँ तोड़बाक लेल अनेक कुतर्क करैत देखाइत छल। नेपाल मे अग्रगामी राजनीति के स्वांग करयवला गोटेक नेता सेहो मैथिली पर अनधिकृत आ अपरिपक्व कुतर्क प्रस्तुत करैत देखाइत छल। खास कय केँ नेपालक नव संविधान मे सरकारी कामकाजक भाषा बनेबाक प्रावधान मे जनगणनाक तथ्यांकक आधार पर प्रदेश सरकार द्वारा कोनो प्रदेशक सरकारी कामकाजक भाषा बनेबाक कानून बनेबाक प्रावधान राखल गेलाक बाद त गोटेक तथाकथित मसीहा आ जन-जन लेल राजनीति करबाक ढोंग करनिहार लेल २०६८ के जनगणनाक तथ्यांकक आधारपर मैथिलीक वर्चस्व बनैत देखि मानू जरल पर नून छिटा गेल हो तेहेन अवस्था बनि गेल छल। २०१८ केर शुरुआत मे एहि तरहक लोक द्वारा सामाजिक संजाल मे मैथिलीक विरूद्ध विषवमनक होड़ चलय लागल छल। होइत-होइत अवस्था एहने बना देल गेल जे प्रदेश २ जे विशुद्ध मिथिला थिक आ जतय लगभग ५५% मैथिलीभाषी अछि ओतहु सरकारी कामकाजक भाषाक रूप मे मैथिली केँ लागू नहि करय देल गेल। प्रदेश सरकारक त आब और्दा सेहो समाप्त होइवला छैक, लेकिन नहि त प्रदेशक नामकरण कय सकल आ नहिये कामकाजक भाषा तय कय सकल। जखन कि एकल भाषिक नीति सँ मुक्तिक संग उत्पीड़ित आ दमित समुदाय व भाषाभाषी सभक लेल संघर्ष करनिहार राजनीतिक शक्तिक हाथ मे प्रदेश सरकार संचालनक अधिकार रहय तैयो मैथिली सँ एतेक बेसी ईर्ष्या आ भ्रम पोसि वैह राजनीतिक शक्ति आ विचारक सब नेपाली भाषाक एकल वर्चस्व सँ विगत ५ वर्ष मे मुक्ति नहि पाबि सकल, ई भारी विडंबनाक विषय भेल आ एकर चर्चा आबयवला कइएक दशक धरि स्वाभाविक रूप सँ होयत। अहाँ एक दिश आन्दोलन करैत नेपालक शासक वर्ग पर तोहमत (आरोप) लगबैत छलहुँ जे ई सब नेपाली भाषा गैरनेपालीभाषाभाषी पर लादि देलक, गुलाम बना देलक, स्वतंत्रता छीनि लेलक… आर आब जखन जनता अहाँ केँ चुनिकय सरकार बनबय लेल अवसर देलक त अहाँ एहि ५ वर्ष मे नेपाली वाहेक अन्य भाषाक स्थिति कि बना देलहुँ एहि सवालक जवाब हुनका सब केँ दियए पड़त।

एहि बीच संविधानक प्रावधान मुताबिक गठित भाषा आयोग अपन पाँच वर्षक कार्यकाल केँ पूरा करैत वांछित पंचवर्षीय प्रतिवेदन नेपाल सरकार केँ सौंपि देलक। स्पष्टतः २०६८ केर जनगणनाक तथ्यांकक आधार पर आ भाषिक-बौद्धिक विमर्श करैत एकटा सुसंगठित प्रतिवेदन आयोग द्वारा देल गेल अछि। एहि प्रतिवेदन मे मैथिली भाषा संग आरो किछु भाषा केँ भाषिक मापदंड पूरा करबाक आ एहि भाषा सब केँ नेपाली पछाति दोसर कामकाजी भाषाक रूप मे प्रदेश व स्थानीय तह केर सरकार द्वारा लागू कयल जेबाक सिफारिश कयलक अछि। प्रदेश १ मे मैथिली आ लिम्बू भाषा लेल सिफारिश भेल अछि। प्रदेश २ मे सेहो मैथिली, भोजपुरी व बज्जिका भाषा केँ सरकारी कामकाजक भाषा बनेबाक लेल सिफारिश भेल अछि। तहिना प्रदेश ३ व ५ मे सेहो। १% सँ बेसी जाहि कोनो भाषाभाषीक जनसंख्या अछि ताहि भाषाक भाषिक अवस्था विकसित स्वरूप मे अछि कि नहि से देखैत अत्यन्त वैज्ञानिक आ समुचित सुझाव विन्दु रखैत प्रतिवेदन सौंपल गेल अछि। प्रदेश १ मे मैथिली आ लिम्बू भाषा केँ शीघ्र सरकारी कामकाजक भाषा बनेबाक लेल कानून बनेबाक अनुरोध सेहो मुख्यमंत्री राजेन्द्र कुमार राई समक्ष ज्ञापन पत्र मार्फत मांग कयल गेल अछि। मुख्यमंत्री एहि लेल आश्वासन सेहो देलनि जे निश्चित एहि दिशा मे काज करता। भाषा आयोग केर सिफारिश मे कोन भाषाक अवस्था केहेन अछि ताहि सब पर विस्तार सँ प्रकाश देल गेल अछि। प्रदेश २ मे बज्जिकाभाषीक संख्या अनुसार सिफारिश कयल गेल अछि मुदा एहि भाषाक साहित्यिक अवस्था व भाषिक विकासक्रम कतेक दयनीय अछि ताहि पर सेहो संज्ञान लेल गेल अछि। बज्जिका यथार्थतः मैथिली भाषाक बोली थिकैक परन्तु मैथिली साहित्य मे एहि बोलीक लेल लिखित साहित्यक कमी रहि जेबाक कारण बज्जिका अपना लेल स्वतंत्र अस्मिता निर्माण करबाक लौल कयलक। पैछला जनगणना २०६८ साल मे एकर संख्या करीब ८ लाख जनगणना मे लिखा गेलैक। एहि तरहें ई भाषा सेहो सरकारी कामकाजक भाषाक रूप मे सिफारिश मे त आबि गेल, परन्तु भाषिक विकास लेल जिम्मेदारी के लेत से दुरावस्था अछि। जाहि कोनो भाषा मे सृजनक काज नहि हेतैक ओहि भाषाक आयु की? विचारणीय प्रश्न एतबे अछि।

हाल चलि रहल जनगणना मे मैथिली केँ आर कमजोर करय लेल ‘मगही’ भाषी होयबाक एकटा परिचालित अभियान चलल अछि। मगहीभाषी सभक कहब छैक जे मैथिली भाषा सँ हमर भाषा भिन्न अछि। जानि-बुझिकय मैथिली लेखन सँ भिन्न हेबाक वास्ते किछु क्रिया शब्द यथा छय केँ हय, छलैक केँ हलैक, हेतय केँ होतय, आदि मैथिली शब्दहि केर ठेंठ शब्द प्रयोग करैत मगही हेबाक दावी करैत देखाइछ। एहि बेरुक जनगणना मे गणक द्वारा सेहो जातीय पहिचानक आधार पर जानि-बुझिकय अलग-अलग जातिक लोक मुताबिक मैथिली सँ भिन्न भाषा जबरदस्ती लिखि देबाक कुकृत्य सब सेहो सोझाँ आबि गेल अछि। आब एहेन कुकृत्य केँ रोकबाक लेल के जिम्मेदारी लेत? आर एहि मूर्खताक दुष्परिणाम सामाजिक विखंडन आ एकर दूरगामी असर अन्तर्संघर्ष प्रति साकांक्ष करबाक काज के करत? ई सब किछु सवाल ज्वलन्त मुद्दा थिक। एहि पर गम्भीरतापूर्वक मनन करब बहुत जरूरी अछि। कहीं २०६८ केर जनगणनाक बज्जिका वला हाल त नहि होयत एहि नव भाषा मगही के? आबयवला निकट भविष्य मे सम्पूर्ण कुत्सित राजनीति के भंडाफोड़ होयत। चुनाव अबैत-अबैत ई षड्यन्त्रकारी शक्तिक सम्पूर्ण भेद स्वतः खुजि जायत। हँ ता धरि मैथिलीभाषी समाज केँ विखंडित करबाक, भ्रमित करबाक कुत्सित काज त कइये टा देत। एहि दिश हम सभक ध्यान मात्र आकर्षित करय चाहब जे समाजक विखंडन सँ बचू। हरिः हरः!!