विशेष सम्पादकीय
भारतक ७५म् स्वतंत्रता दिवस
अपन मिथिला लेल की?
१५ अगस्त १९४७ ई. केँ भारत स्वतंत्र भेल छल, ब्रिटिश हुकुमत द्वारा भारत केँ पूर्ण आजादी हस्तान्तरित कय देल गेल एहि दिन, तेँ एकरा स्वतंत्रता दिवस केर रूप मे चिह्नित कयल गेल। आइ १५ अगस्त २०२१ केँ ७५म् स्वतंत्रता दिवस थिक। समस्त स्वतंत्रताप्रेमी, राष्ट्रप्रेमी आ समाज व मानवता केर घोर दुश्मन अनेकों कूरीति आ आडंबरक अंधकाररूपी गुलामी सँ एखनहुँ आजाद होयबाक संघर्ष मे निरन्तर लागल एक-एक व्यक्ति केँ हम प्रवीण केर तरफ सँ हार्दिक शुभकामना!!
मिथिलाक एकटा बहुत पैघ हिस्सा भारत मे अछि। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन केर भारतीय भाषिक सर्वेक्षण (Linguistic Survey of India) केर आधार पर मैथिलीभाषी क्षेत्र बिहार केर कुल २४ जिला आ झारखंड के कुल ६ जिला केर आधार पर मिथिलाक विशाल भूभाग भारत मे अछि। तहिना नेपाल केर गंडक सँ कोसी बीच केर मस्तक भाग ‘मिथिला’ थिक। ‘तीरभुक्ति’ केर परिभाषा अनुसार गंडक, कोसी आ दक्षिण मे गंगा – तीन नदीक बीचक भूभाग जेकरा ‘तिरहुत’ सेहो कहल जाइछ से दुइ संप्रभुतासम्पन्न राष्ट्र भारत आ नेपाल केर बीच मित्रताक अकाट्य सेतु थिक, बेटी आ रोटीक सम्बन्ध केर आधारशिला आ दुइ राष्ट्रक विशिष्ट सम्बन्धक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भाषिक, धार्मिक आ नागरिक-नागरिक (जनस्तरीय सम्बन्ध) केर पृष्ठपोषक थिक ‘मिथिला’।
एहि विशिष्ट भूभाग केर कतेको रास विशेष पक्ष सब अछि – लेकिन ताहि सब मे एकमात्र सर्वोत्कृष्ट पक्ष ‘विद्यार्जन’ थिक। विद्वान् केँ सर्वतंत्र-स्वतंत्र कहबाक अति विशिष्ट परम्परा एहि धरातल मे भेटैछ। जेना वाचस्पति, विद्यापति, भामती, भारती, मंडन, उदयनाचार्य, आदि केँ ‘सर्वतंत्र-स्वतंत्र’ कहल जेबाक दृष्टान्त यत्र-तत्र देखैत छी। आइयो धरि एहि भूभागक एकमात्र शस्त्र यैह विद्याभ्यास सँ प्राप्त ‘शास्त्र’ केँ देखैत छी।
हालांकि आइ एहि भूभागक लोक आर्थिक रूप सँ विपन्न आ दोसरक गुलामी लेल बाध्य अछि, प्रत्येक वर्ष बाढिक विभीषिका, सुखाड़क दंश, कमजोर औद्योगिक विकास व बेरोजगारी-बेकारीक समस्या सँ जुझैत – राज्य द्वारा उपेक्षित मजदूर सप्लायर जोन मात्र थिक; ऊपर सँ दहेज प्रथा जेहेन आडम्बरी भौतिकतावादी आ प्रदर्शनकारी परम्पराक भारी बोझ उघैत समाज, जातीय आधार पर सत्ताभोगी राजनीतिक अगुआ के चाँगूर मे जकड़ल विखन्डित बिखरल समाज, लैंगिक विभेद, छुआछुत, वर्ग-विभेद, वर्ण-विभेद, आदि अनेकन समस्या मे जकड़ल समाज…. मिथिलाक पूर्वकालिक सम्पन्नता आ बेजोड़ आध्यात्मिक इतिहास कहीं कोरा काव्य-कल्पना या श्रुत-मिथक त नहि रहल – एहि तरहक भ्रमपूर्ण आभास मे फँसल अछि ‘मैथिल’ पहिचानधारी लोक। एहेन समाज लेल स्वतंत्रता क्रूर मजाक त नहि? सवाल उठैछ मोन मे बेर-बेर।
तखन स्थिति मे तेजी सँ सुधार आबि रहल अछि। स्त्रीगण खड्ग उठा लेली, जिम्मेदारीक संग ओ लोकनि पर्दा सँ बाहर, आंगन सँ बाहर निकलि पतिक संग कंधा-मे-कंधा जोड़ि खेत, खरिहान सँ संसारक सब मैदान धरि अपन उचित सहभागिता दय रहली अछि। आर्थिक विपन्नता सँ संघर्ष लेल मैथिल समाज प्रवासी भले बनि गेल, पलायन करय लेल बाध्य बनि गेल, लेकिन जे जतय अछि से अपन भाषा, संस्कृति आ अस्मिता केँ संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन मे बढि रहल अछि। अफसोस, जातीय सौहार्द्रता सहित के मैथिल समाज प्रवासहु केर क्षेत्र मे बनि सकितय से क्षुद्र राजनीतिक करणी केर कारण नहि बनि सकल अछि। तथापि, अगुआ अगड़ा वर्ग जातीय समरसता लेल बाँहि बिछाकय कतहु मिथिला भवन बना रहला अछि, कतहु मन्दिर निर्माण करा रहला अछि, कतहु कोओपरेटिव चला रहला अछि… से सभक लेल खुजल अछि। तथापि, मूल बिहार या मूल मधेश मे जाति-पाति मे विभाजनक राजनीति सँ बनल आपसी दूरी केँ पाटबाक लेल सर्वजातीय अगुआ केँ एकठाम बैसबाक वातावरण एखन धरि नहि देखि सकब हमरा सभक दुर्भाग्य थिक, ई दुर्भाग्ये टा थिक।
आब त भाषा आ बोली केर नाम पर सेहो ई अराजक राजनीतिकर्मी झगड़ा लगेबाक काज आरम्भ कय देलक। उच्च महात्वाकांक्षा आ सत्तालोलुपता मे ई क्षुद्र राजनीति करयवला नव सामन्ती द्वारा समाज केँ पहिने जाति आ धर्म केर आधार पर तोड़ल गेल, आर आब भाषा-बोली बीच केर अन्तर पर जेहो बचल-खुचल सौहार्द्रता आ आपसी नेह अछि अहु पर ओकर गिद्धदृष्टि पड़ि गेल छैक। मैथिली लगभग १०० वर्ष केर संघर्ष कय केँ भारत मे हिन्दीक बोली वला टैग हंटबैत भारतीय गणराज्यक संविधानक आठम् अनुसूची मे सम्मानजनक स्थान प्राप्त कयलक।
आब नेपाल मे २०७२ वि.सं. साल मे नया संविधान बनलाक उपरान्त एहि ठामक संविधानवेत्ताक एकटा पेंच जे कोनो प्रदेश अपन राजकाजक भाषा नेपाली के अलावा दोसरो भाषा राखि सकैत अछि, धरि ओहि भाषाक प्रयोगकर्ताक संख्या जनगणनाक तथ्यांक सँ समुचित होबक चाही। बस, आब कि भेलैक जे एहि पेंच के कारण मधेशक राजनीतिकर्ताक हाथक लोलका (सम्पर्कभाषा हिन्दी) छीनि लेलक, त ओ सब आब लागि गेल मैथिलीक समृद्ध गाछ जे २०६८ के जनगणना सँ अपन मजबूत तथ्यांक सिद्ध कय चुकल अछि ताहि गाछ केँ हिलेनाय शुरू कय देलक अछि।
काल्हि धरि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) लेल आवाज उठेनिहारक दोकान बन्द भऽ गेलैक त ओकरा सब केँ लगा देलक भाषाक दोकानदारी करय लेल, सरकारी भत्ता खुआ-खुआ गाम-गाम घुमा-घुमा जाति-पाति केर नाम पर मैथिली केँ विखंडित करबाक कुत्सित कार्य करब शुरू कय देलक नेपालक मधेश मे। मधेशहु केर समग्रता आ झापा सँ महेन्द्रनगर धरिक ऐक्यता केँ जोगाबय मे असफल ई कथित मधेशवादी राजनीतिकर्मी आब ‘भाषा वैज्ञानिक’ बनिकय मैथिलीक वर्चस्व केँ समाप्त करबाक कुचक्र करब आरम्भ कय देने अछि। ओकरा एकर विभत्स परिणाम सँ कोनो लेना-देना नहि छैक, धरि ओ अपन क्षुद्र स्वार्थक पूर्ति हेतु अपन कौचर्य करय सँ बाज नहि आबि रहल अछि। आम जनमानस मे भ्रम केर सृजन करब ओकर काज थिकैक। बाँटू आ राज करू! एहेन स्वतंत्रता सँ प्रगतिशील समाजक निर्माण कथमपि संभव होयत?
भारत मे नव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) द्वारा त्रिभाषा शिक्षा पद्धति मे मातृभाषा केर प्रथम बुनियाद पर सुदृढ़ आ दक्ष, शिक्षित, विज्ञ जनशक्ति तैयार करबाक सिफारिश भेल अछि। लेकिन हाय रे बिहार केर राज्यनीति! ओतय विद्यालयक प्रधानाध्यापक सँ रायशुमारी कयल जा रहल अछि जे कहू अहाँ केँ कि चाही, कोन भाषा, कोन बोली, कथी! अरे! जखन राज्य केर शिक्षा विभाग द्वारा, केन्द्र केर शिक्षा विभाग द्वारा जनगणनाक तथ्यांकक आधार पर आगू बढबाक मूलभूत सिद्धान्त अछिये, तखन फेर चक्कर-चाइल मे मैथिली व अन्य मातृभाषा केँ ओझरायब, पता नहि ई कोन स्वतंत्रताक पृष्ठपोषण करत। एहि सब कतिपय कारण सँ स्वतंत्रताक प्राप्तिक ७५ वर्ष केँ नाम भले अमृत महोत्सव राखि ली हम सब, भले अमृतपानक आभास भारतक अन्य भूभाग केँ भेल हो, लेकिन हम मिथिलावासी सच मे गरल विषपान केर अवस्था मे होयबाक आभास कय रहल छी।
मुदा घबराउ नहि। हमरा सभक आध्यात्मिक नींब एतेक मजबूत अछि – बाबा-पुरखा स्वयंसेवा सँ स्वसंरक्षणक सिद्धान्त सिखाकय गेल छथि, बस गम्भीरतापूर्वक विद्याध्ययन आ विवेकशीलता सँ विकास केर कार्य मे लागल रहू। सृजनशीलता हमरा सभक मौलिक श्रृंगार थिक। राज्य पोखरि-इनार नहि खुनबय, हम सब अपन-अपन श्रमदान दय अपन सरोकार व हित केर सारा कार्य पूरा कय लेल करी। बस, यैह सनातन सिद्धान्त आइयो हमरा सभक सम्बल अछि। सदिखन समर्पण भाव सँ ‘स्वतंत्रता’ केर रक्षा करैत रहू। प्रणाम!!
हरिः हरः!!