जनगणना मे मातृभाषा लिखेबाक महत्व
एहि विषय पर १०० सँ २०० शब्द मे अपन-अपन विचार पठबय जाउ। मैथिली जिन्दाबाद मे प्रकाशनार्थ ई अनुरोध अछि।
नेपाल मे २०२१ ई. (२०७८ विसं साल) मे ८ जून सँ २२ जून (जेठ २५ गते सँ आषाढ़ ६ गते) केर समयान्तराल मे जनगणना होबय जा रहल अछि। जनगणना मे व्यक्तिक गणना संग-संग ओकर भाषा, धर्म, आय, आय केर स्रोत, साक्षरता आदिक संग अन्यान्य जानकारी सभक फौर्म भरायल जाइत छैक। फेर एहि गणना उपरान्त तथ्यांकक विश्लेषण आर राज्य द्वारा तदनुसार नीति अवलोकन, कार्यक्रमक योजना आ क्रियान्वय, कोष विनियोजन आदि विभिन्न बात कयल जाइत छैक।
विदित हुअय जे पिछला जनगणना मे नेपाल अन्तरिम संविधान सँ शासित देश छल, आब नव संविधान लागू कय देल गेल अछि आर भाषा सम्बन्धी महत्वपूर्ण अधिकार सेहो एकल भाषा ‘नेपाली’ सँ ऊपर सब मातृभाषा केँ देल गेल अछि। एतेक तक कि प्रदेशक कामकाजक भाषा लेल प्रदेश सभा केँ अधिकार देल गेल अछि आर कहल गेल अछि जे बजनिहारक संख्या मुताबिक निर्णय लेबाक लेल… माने विधायिका सेहो जनगणना केँ आधार मानिकय कोनो निर्णय लय सकैत अछि, मनमानी ढंग सँ बिल्कुल नहि। तहिना शिक्षाक अधिकार लेल सेहो सभक भाषा मे पाठ्यक्रम विकासक संग प्राथमिक शिक्षा धरि मातृभाषाक माध्यम केर अन्तर्राष्ट्रीय मापदंड अनुकरण करबाक आवश्यकता नेपालहु मे अछि। एकर अलावे भाषाक अधिकार भेने कला, संस्कृति, फिल्म, आदिक विकास, संरक्षण, संवर्धन आदि मे सेहो भाषा-आधार पर नीति तथा कार्यक्रमक विकास कयल जेबाक जरूरत अछि। पूर्वक दमन आ शोषण सँ समाज केँ उन्मुक्त करबाक लेल सभक सम्मान करैत आगू बढब आवश्यक अछि, ई नहि जे एकटा के चंगूल सँ मुक्त होउ आ दोसर के चंगूल मे ओझरा जाउ…! ई सब विन्दु पर ध्यान दैत आगामी समय मे जनगणना मे अपन-अपन मातृभाषा केँ लेखन (प्रविष्टि) ध्यानपूर्वक सब करथि, नहि त आगाँ फेर वांछित अधिकार सँ वंचित रहबाक खतरा अछि।
भाषा सम्बन्ध मे एकटा आरो बात महत्वपूर्ण आ ध्यातव्य अछि जे ‘भाषा आयोग’ केर गठन कयल गेल छैक, जेकर कार्यावधि ६ वर्षक छैक… लेकिन हमरा बुझने लगभग आधा कार्यकाल धरि ई आयोग केवल तथ्यांक जुटेबाक आ थोड़-बहुत प्रकाशन करबाक अलावे आर कोनो काज ऊर्जान्वित ढंग सँ नहि कय रहल छैक। एकर मतलब भेलैक जे तरे-तरे भविष्यनिर्माता लोकनिक इच्छा घुमा-फिराकय एकल भाषा नीति केँ जनता पर थोपल रखबाक नियार छैक। एहि कुटिलतापूर्ण षड्यन्त्र सँ जा धरि देशक १२३ या १२९ मातृभाषा केँ आजाद नहि कयल जेतैक ता धरि संघीयताक सही आ सार्थक लाभ केकरहु नहि भेटतैक, फेर नेपाली वाहेक आन भाषाभाषी दोसर दर्जा मे पड़ल रहि जेतैक। ताहि सँ जनगणना मे मातृभाषाक प्रविष्टि पर जन-जन मे जागरुकता भेनाय जरूरी छैक।
तेसर आ एहि लेख केर अन्तिम बात – भाषा अभियन्ता, संस्कृति-समाज आ शिक्षा आदिक विषय पर चिन्तन करयवला वर्ग आजुक समय मे ओतेक प्रभावी आ जन-जन धरि पहुँच राखयवला नहि छैक जतेक स्थानीय स्तर पर काज करनिहार राजनीतिक दल व कार्यकर्ता – अतः ईहो महत्वपूर्ण जिम्मेवारी राजनीतिक कार्यकर्ता आ नेतृत्वकर्ता पर बेसी छैक जे अहाँ सब अपन-अपन क्षेत्रक जनता मे जनगणनाक महत्व सँ जन-जन केँ सुपरिचित बनाबी आर मातृभाषाक प्रविष्टि अनिवार्य रूप सँ सब करय से प्रेरित करी। याद रहय, किछु लोक जानि-बुझिकय मैथिली भाषाक शक्ति केँ विखंडित करबाक लेल तरह-तरह केर भ्रान्ति आ आशंका पसारि रहल अछि, एहि तत्त्व केँ कतहु सँ परिचालित कय केँ अहाँ मैथिलीभाषाभाषीक नेपाली पछातिक दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषाक दर्जा सँ दूर करबाक काज देल गेल छैक, ई सब बुझैत अपन एकजुटता केँ कायम राखब आ एक सुस्थापित भाषा जेकर अपन साहित्य, शब्दकोश, व्याकरण आ पाठ्यक्रम हर तरहक सम्पन्नता छैक एकर लाभ उठायब। यदि एहि बेर चूकब तऽ आगामी दशकों-दशक धरि नया सिरा सँ अपन बोली केँ भाषा बनेबाक दिशा मे कार्य करैत रहलो सँ कार्य होयत कि नहि एकर गारन्टी नहि अछि। बस, यैह सब सावधानी रखैत अपने लोकनि मातृभाषाक प्रविष्टि मे मैथिली जरूर लिखायब।
हरिः हरः!!