परम्पराक अगबे दोख देनाय कतेक उचित?
कखनहुँ-कखनहुँ हमरा दिमाग मे ईहो बात अबैत अछि जे अपन पुरुखाजनक परम्परा केँ हम सब सीधे गलत कहि बैेसैत छी से हमरे सभक गलती छी। युग (देश, काल आ परिस्थिति) अनुसारे कोनो सामाजिक नियम केँ बनब या जियब शास्त्रीय पद्धति कहल गेल अछि। पुरुखाजनक समय मे जाहि तरहक समाज रहय ताहि तरहक नियम बनल आ ओहि अनुरूप ओ लोकनि चललाह। हम सब सेहो जा धरि हुनका लोकनिक बनायल नियम पर चलि सकलहुँ से चललहुँ, जखन नहि चलि पबैत छी तऽ आब कतेको तरहक संशोधन करैत छी। जेना विधवा विवाह, दुती विवाह, तलाक, तलाकशुदाक विवाह, आदि – ई सब कालान्तर मे युगक बदलाव संग आयल नियम सब थिक। सती बनबाक परम्परा मिथिला समाज मे नहि छल, विरले कियो पतिव्रता अपना स्वेच्छा सँ सती बनबाक इच्छा जता पतिक चिता मे समा गेल होइथ ई अलग बात भेलैक। लेकिन आरो कतेको रास कठोर नियम-व्रत सब मिथिला मे आइ धरि लागू अछि, भले हम सब पूर्णतः वा अंशतः मात्र ओहि नियम मुताबिक चलि सकी, ई हमरा सभ पर अछि, हमरा सभक स्वतंत्रता या स्वच्छन्दता छी।
बात उठेने रही जे पुरुखा गलत नहि छलाह… तेकर किछु उदाहरण (विवेचना) विन्दुवार हम करय चाहबः
१. उपनयन संस्कार मे टीक सहित समस्त केश अस्तुरा सँ काटि जनेऊ धारण कय गायत्री मंत्रक दीक्षा लैत ब्रह्मचर्य व्रतक धारण आरम्भ कयला उत्तर रातिम धरिक विध पूरा करय तक नून नहि खायल जाइछ। शास्त्रीय परम्परा अनुसार ‘विद्यारम्भ’ (वेदारम्भ) अध्ययन लेल गुरु आश्रम जेबाक नियमादि सेहो उपनयन संस्कार उपरान्त आरम्भ होइछ। भीख जे बरुआ केँ पड़ैत छन्हि से वास्तव मे गुरु दक्षिणा देबाक निमित्त। त, कनी विचारू, ई संस्कार केर एक-एक विध आ तेकर पूरा करबाक विधान केर आध्यात्मिक महत्व केँ आइ हम सब कतेक बुझैत छी, कतेक जियैत छी… सवाल ई छैक। आब त टीक राखब, आ कि अस्तुरा सँ केस काटब, एहि सब लेल उपनयन धरि बहुल्यजन प्रतीक्षा तक नहि करैत अछि। उपनयनक उमेर सेहो बेसी लोक नांघि चुकल रहैत अछि। नून बाड़ब आ कि मंत्रक उपासना, ब्राह्मण संस्कार मे गुरु सँ प्राप्त दीक्षा मुताबिक जीवन-संचालन… के आ कतय कय रहल अछि? नाम केँ मात्र ब्राह्मण कहेबाक कारण दुनिया मे ब्राह्मणक मोजर कतेक रहि गेल से सर्वविदिते अछि। समग्र मे समीक्षा कयला सँ हम ई देखैत छी जे पुरुखाजन या हमरा सभक शास्त्र-पुराण अपन ढंग सँ सब बातक नीक औचित्यक निरीक्षण-परीक्षण कयलाक बाद विधानक वर्णन कएने अछि, मुदा हम मानव सहज ढंग सँ जीवन जिबय के आदी बस खानापूर्ति कय केँ बढय लेल आतुर रहैत छी। पुरुखाजनक कोनो दोष नहि! दोष निर्वाह मे कठिनता सँ भयभीत हम नव पीढी केर अछि। तेँ हमर महत्व कम भेल अछि।
२. विवाहक विध-विधान सेहो एतबे वैज्ञानिकता सँ परिपूर्ण, रजस्वला धर्मक आरम्भ उपरान्त कन्याक विवाह आ वेदविद्याक गुरु आश्रम सँ निकलि गृहस्थी जीवन केँ बढेबाक योग्यता प्राप्त वरक उमेर केँ विवाहक सही उमेर मानल गेल अछि। आइ एकरा ‘बाल-विवाह’ केर श्रेणी मे राखि राज्य द्वारा दण्ड विधान सँ सेहो जोड़ल गेल अछि। विवाहक सही उमेर लेल रजस्वला धर्मक सीमा नहि, बच्चादानीक मैच्योरिटी संग गार्हस्थ जीवन लेल कन्याक परिपक्वता केँ सेहो उमेरक सीमा निर्धारण लेल बाकायदा ध्यान राखल गेल अछि। वरक विवाह त सहजहि परिपक्वता आ स्वाबलम्बनक हिसाब सँ राखबाक विधान पूर्ववत् अछिये। पुरुखाजनक सोच केँ तत्कालीन राज्य-प्रजा बीचक सम्बन्ध समन्वय मुताबिक हम कतहु गलत नहि देखैत छी। हँ, दुरुपयोग केर वातावरण भेल, बाल्यकालहि मे माय बनबाक कारण कतेको निरीह नारीक जान गेल होयत, आरो कतेको प्रकारक पीड़ा सेहो भोगने हेतीह, तथापि हम सब आइ जीवनक पाँचम दशकक करीब जाहि माय-दादीक सन्तान छी आर आइ जतेक पैघ अस्तित्व केँ देखि रहल छी से ओही युग सँ एहि युग केर यात्रा कयलक अछि। कोनो बड पैघ दुर्घटना घटल हेतैक, बड बेसी घटल हेतैक, एना हमरा नहि लगैत अछि। पुरुखाजनक सोच आजुक तुलना मे बेसी पुख्ता आ पवित्र छल, एना हमरा लगैत अछि। भऽ सकैत छैक जे हम कनेक पुरातन सोचक लोक होइ।
३. मिथिला मे विवाह लेल उचित मापदंड मे उमेर केर अलावे गोत्र, दुनू वर ओ कन्याक पैतृक एवं मातृक पक्ष बीच पीढी-दर-पीढी मे रक्त सम्बन्धक जाँच (अधिकार निर्णय), आम-मौह विवाह सँ कन्याक विवाह-लग्नदोष सँ मुक्त करबाक विध, कन्या आ वर केर बीच मे स्वाभाविक प्रेमालाप केँ बनेबाक-बढेबाक लेल आँठि सुपारी सहितक पान सँ लैत कइएक तरहक विध कोहबर-वेदी (मड़वा) ऊपर आ वर-कन्या केँ परस्पर एक-दोसर केँ खीर खुआबयवला मौहक आदिक विधान उपरान्त चतुर्थी केँ आवश्यक उपवास पूरा कयला उपरान्त, अनोना खाद्यक सेवन आ पूर्ण ब्रह्मचर्यक पालन कयलाक पछाति पुनः दोसर बेर सिन्दुरदान – सेहो असली सिन्दुर सँ, पहिने विवाहक राति भुसना सिन्दुरक प्रयोग सँ इतर असली सिन्दुरक प्रयोग चतुर्थी दिन होइत छैक – विचारय योग्य कय टा पक्ष छैक जे दुइ प्राणी – नर आ नारी केँ एक बनेबाक विधान ‘विवाह’ मे एतेक रास विध करबाक नियम पुरुखाजन द्वारा उमेर केर हिसाब सँ, दुइ अन्जान केँ सुजान बना एक संग गृहस्थी धर्मक पालन लेल उचित उपदेश आ मार्गदर्शन लेल बनायल गेल, एना स्पष्ट अछि। ओ गलत नहि भऽ सकैत छथि, हमर विश्वास काफी दृढता पाबि रहल अछि।
४. विधवा नारी लेल कइएक प्रकारक व्रतक विधान कहल गेल अछि। हुनका लेल आजीवन कइएक तरहक खाद्य-वस्तुक वर्जना कयल गेल अछि। हुनकर पहिरन केँ सेहो सादा-श्वेत आ नारी-श्रृंगार आदि सँ बन्धित कयल गेल अछि। एना बुझाइत अछि जेना कि हुनकर जीवन केँ सामान्य गृहस्थी मे संन्यासिन केर रूप मे परिवर्तित करबाक विधान बनायल गेल हो, जे सोचिते देह सिहैर उठैत अछि। ध्यान रहय, विधवाक दोसर विवाहक विधान बिल्कुल नहि छल। आब विधवाक विवाह एक सामान्य विषय बनि गेल आर ईहो सच जे उमेर मुताबिक पतिक मृत्युक कारण ओ ओतेक कड़ा नियम आजुक युग मे निर्वाह कय लेती ई मात्र असहज टा नहि अपितु असंभव सेहो प्रतीत होइत अछि। हम पुरुखाजनक दोष एतहु कदापि नहि देब कियैक तँ नर-नारी बीचक प्रेम सम्बन्ध आ पशु-पशु बीच प्रेम सम्बन्ध मे एक व अनेक केर संग केर महिमा सब कियो जनिते छी। मानव समुदाय केँ सर्वथा विवेकशील कहल गेल अछि, आर ताहि मे यैह एक नारी लेल एक पुरुष, एक पुरुष लेल एक नारी, एहि सँ इतर समस्त व्यभिचारी आ व्यभिचारक प्रारब्ध घोर पापमय-भयावह होइछ, सेहो सर्वविदिते अछि।
५. मृत्यु उपरान्त श्राद्ध आर कर्त्ताक संग परिवारक के-के सदस्य नून बाड़त, केकरा द्वारा एकभुक्तक पाक बनत, के पिन्ड लेल केहेन चुल्हा पर पाक बनेती, घरक कोन पुरुष वा नारीक केहेन काज होयत, आस-पड़ोस या दियाद-वाद केहेन व्यवहार करता, श्राद्धकर्म केर निष्पादन कोन ढंग सँ होयत, पितर केर दसगात्र निर्माण लेल दस दिनक कर्मक संग क्षौर-कर्म कय वैदिक विधान (नियम ओ मंत्रादि) संग केहेन नव अस्तित्वक निर्माण हेतनि, ताहि विन्दु धरिक पुरुखाजनक सोच केँ हम बेर-बेर प्रणाम करैत छी। लेकिन आजुक युग मे एहि समस्त नियम-कायदा केँ ताख पर राखि जेकरा जेना सुविधा होइत अछि से करैत छी। आध्यात्मिकता गायब, भौतिकतावाद हावी! हम त एतेक तक देखैत छी जे ‘लाल-वस्त्र’ जाहि सँ पितरक आत्मा हविष्य ग्रहण करय सँ वंचित रहबाक विधान वर्णित अछि से आइ-काल्हि धड़ल्ले सँ उपयोग मे आनल जाइत अछि, कर्मस्थल पर ललका समियाना हो आ कि अन्जान परिजन लोकनिक परिधानक रंग लाल होइन्ह… केकरो कोनो मतलबे नहि। हँ, नवका विधान ई जरूर आबि गेल अछि जे पितरक फोटो राखिकय ओहि पर फूल छिटू! सब विध पूरा भऽ गेल। हँ, श्रद्धाञ्जलि देबाक समयक दुइ-चारि गोट फोटो खींचिकय फेसबुक पर पोस्ट कय दियौक, चाचाजी, काकाजी, बाबा, बाबू – मृतकक आत्मा ओही मे तिरपित भऽ जेतनि। आब सोचू कतय पुरुखा, कतय हम सब!
एहेन आरो कय गोट पक्ष अछि। अहाँ स्वयं केर स्थिति पुरुखाजनक स्थिति सँ तुलना कय सकैत छी।
हरिः हरः!!