पराम्बा जानकी जीक प्राकट्य दिवस पर प्रवीण शुभकामना

१ मई २०२०, विराटनगर। मैथिली जिन्दाबाद!!

जानकी नवमी पर शुभकामना
 
आइ पराम्बा जानकी केर प्राकट्य दिवस थिक। वैसाख मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि – शास्त्र मतानुसार आजुक दिन हलेष्ठि यज्ञ सँ घट (घैल) मे जगज्जननी जानकी मिथिलाक महाराजा शिरध्वज जनक केँ प्राप्त भेलखिन। बाल्यकालहि सँ अद्भुत क्षमताक लीला कयनिहाइर साक्षात् लक्ष्मीक अवतार नारायणावतार श्रीराम संग मानव रूप मे भेलनि, आर ओ लोकनि साधारण मानव राजकुमार-राजकुमारीक रूप मे प्रस्तुत करैत धर्म विरूद्ध राक्षसी अत्याचार केर समाधान कयलनि, रामराज्यक स्थापना कयलनि, जगत भरि मे हुनका लोकनिक प्रतिष्ठा बनलनि जे आइ धरि पुश्त-दर-पुश्त हमरा लोकनि ‘सीताराम-सीताराम’ नाम भजैत अपन जीवन केँ सफल बनेबाक लेल आतुर बनैत छी।
 
जानकी जी केँ देवता लोकनिक सभा मे सर्वश्रेष्ठ देवीक रूप मे मान्यता भेटलनि। देव सभा मे समस्त देवी-देवताक अवतारक समीक्षा भेला उत्तर सीता सर्वेश्रेष्ठ देवी सिद्ध भेलीह।
 
बहुत बच्चे छलीह त कहियो भगवतीक घर निपबाक क्रम मे बायाँ हाथे शिवधनुष उठा लेने छलीह। माता सुनयना ई दृश्य देखलीह त तुरन्त राजा जनक केँ बजाकय देखेलीह। “देखू त अपन बुचिया कतेक चमत्कारी अछि, एतेक विशाल शिवधनुष केँ बायाँ हाथ सँ उठाकय भगवतीक घर निपि रहल अछि।” राजा जनक मंत्रमुग्ध, विस्मित, चकित भऽ ई दृश्य देखिते रहि गेला। तहिये निर्णय भेल छल जे जानकीक विवाह वैह परमवीर पुरुष सँ हेतनि जे एहि शिवधनुष केँ भंग कय सकता। आर सब बुझिते छी जे सीता स्वयंवर कोना आयोजित भेल, केना सब राजा-महाराजा-राजकुमार लोकनि केँ आमंत्रण पत्र पड़ल आर केना गुरु विश्वामित्र संग अयोध्यानरेश दशरथक दुइ वीर राजकुमार राम आ लक्ष्मण ओतय अयलाह, कोना धनुष भंग भेल आर फेर केना जानकी संग राघवक विवाह भेल।
 
कतेक कुतर्की जखन ई बजैत अछि जे ‘दहेज प्रथा’ राजा जनकहि द्वारा चलायल गेल… ओ बहुत रास दहेज अपन जमाय आ समधि केँ देने छलाह। अरे भाइ! पहिने त स्वयंवर सँ वीर पुरुष रामचन्द्र हुनकर वर चुनेलाह, तदोपरान्त राजा जनक अपन स्वेच्छा सँ हुनका आ अपन समधि केँ राजा योग्य जे व्यवहार होइत छैक से सब कयलनि। बेटीक कन्यादान पर दानक संग दक्षिणा धर्मसम्मत आ विधिवत् देलनि। ई फालतू बात ‘दहेज प्रथा’ कतय सँ आयल? तखन त कुतर्कक कोनो जवाबे नहि छैक, लागल रहू!
 
जानकी जी राजसी ठाठ-बाठ छोड़िकय श्रीराम संग वनवास गमन केर प्रतिज्ञा कयलीह। हुनका सासु-ससूर बहुत बुझेलखिन। मुदा ओ पत्नीक धर्म पतिक अनुगामिनी होयब थिक से कहि ओहेन कठोर व्रत केँ पालन कयलीह। वनवासक अन्तिम वर्ष मे राक्षसी अत्याचारक शिकार बनि गेलीह। रावणक अपहृता बनितो जाहि तरहें पतिव्रता स्त्रीक रूप मे अपन शक्ति-सामर्थ्य-समर्पणक प्रदर्शन करैत छथि से स्त्री-धर्म केँ सदैव सर्वोच्च सम्मान योग्य बना दैत अछि। रावण समान खतरनाक वीर हुनका छुबियो तक नहि पेलक। परञ्च अपन स्वामी सँ एहि तरहें दूर भेला उपरान्त जाहि करुण स्वरूपक लीला-प्रस्तुति जानकी कयलीह, से हम मानव लेल बुझय आ धारण करय योग्य अछि। आवेग आ आवेश मे आबि हमरा लोकनि कनिको टाक दुःख वर्दाश्त नहि कय पबैत छी, लेकिन ओतेक राक्षसी सभक पहरा मे जानकी जाहि सूझबूझ सँ अपना केँ व्रत-धर्मक पालन करैत निर्वाह करैत छथि, ई सब केहनो कठोर हृदय केँ पसिझा दैछ।
 
रामायण मे जानकी संग हनुमानक भेंट आ प्रभु श्रीरामचन्द्र जी द्वारा रामक प्रेमक प्रतीक चिह्न मुन्द्रिका दय अपन परिचय दैत जाहि तरहें आगाँ रावण आ ओकर फौज केँ समाप्त करैत हुनका एहि फाँस सँ मुक्त करेबाक वादा करैत छथि, एहि सुन्दर घटनाक्रम केँ ‘सुन्दरकाण्ड’ कहिकय चरित्रगान कयल गेल अछि। आइयो भक्तहृदयक लोक जखन सुन्दरकाण्डक पाठ कय लैत छथि त तत्क्षण हुनका जानकी, हनुमान, राम आ समस्त देवलोकक सार्थक शक्तिक कृपा प्राप्त होइत छन्हि।
 
जानकीक लीला ओना त वैह टा सर्वथा बुझि सकैत छथिन, मुदा हमरा लोकनि श्रीरामक भार्याक रूप मे हुनका द्वारा अग्नि-परीक्षा सँ अपन सतीत्व प्रमाणित करबाक चरित्र, पुनः राज्य सँ निर्वासित जीवन जियय लेल पति केँ बौंसब, एतेक तक कि प्रजामत मे महारानी प्रति दुविधा आ सन्देहक अवस्था केँ अपन कठोर निर्वासित जीवन जिबैत गर्भ मे रहल श्रीरामक अंशरूपी सन्तान केर जन्म दैत ओकरा सभक माध्यम सँ अयोध्याक प्रजा केँ उचित जवाब देबाक कठोर प्रतिज्ञा करब, आ से लव-कुश केर रूप मे परमवीर सन्तान केँ जन्म, शिक्षा, दीक्षा आ ज्ञान केर अम्बार सँ आच्छादित कय प्रमाणित करब…. आह! केकर मज्जाल छैक जे ई सब कार्य साधारण मानव रहैत कय देत। आ से मैथिली कयलीह। हमर बेर-बेर प्रणाम अछि! अन्त मे, पराम्बा ईहो लीला कयलीह जे भले अहाँ कतबो सत्य पर रहब, लेकिन लोकक दुविधा समाप्त नहि होयत। राजा राम संग पुनर्मिलन उपरान्तहु धर्मसंकट प्रस्तुत भेला पर पुनः अपन पतिक मर्यादा केँ शिरोमणि बनेबाक हिसाब सँ जानकी अपन माय ‘धरती’ केर कोरा मे समा गेलीह, तदनोपरान्त श्रीराम सेहो जलसमाधि लय दुविधा मे फँसल प्रजा केँ सदा-सदा लेल पश्चाताप-प्रायश्चित लेल छोड़ि दैत छथि। आब, ओ प्रजा जे सीताराम केँ चिन्हि सकल से भजैत अछि। बाकी.. ओ अपने अपन हाल जनैत अछि।
 
किछु सज्जन एहनो छथि जे जानकीक पक्ष लैत श्रीरामहि पर प्रश्न ठाढ करैत छथि। कचहरी मे श्रीराम केँ मुजरिम केर कटघरा मे ठाढ कय सीताजीक इच्छा विपरीत हुनका तरफ सँ इजलास चलबैत छथि। अरे भाइ! ई अहाँक प्रकृति थिक। अहाँक जन्महि एहि लेल भेल अछि। तुलसीदास जी रामायण लिखय सँ पहिनहि ब्रह्माक एहि संसार मे नीक-बेजा सब तरहक लोक हेबाक बात कहने छथि। हमर गुरुदेव सेहो कहला जे एहि तरहक विमर्श मे सिर्फ अपन आस्था आ विश्वास प्रति दृढ रहि भजबाक कार्य केँ निरन्तरता दैत शान्ति सँ जीवन व्यतित करी। तेँ, सभक काज सब कय रहल अछि, अहाँ सेहो करू। अस्तु!
 
ॐ तत्सत्!
 
दहेज मुक्त मिथिलाक अध्यक्षा स्वयं जानकी जी छथि, हम साधारण मानव हुनकर नीति केँ प्रतिनिधित्व दय रहल छी सेहो अपन तुच्छ-ओछ बौद्धिकता आ कर्मठता सँ। एहि मे त्रुटि संभव अछि। क्षमा करथि हमरा सभक अध्यक्षा – पराम्बा जानकी!
 
आजुक दिवस ५ गोट आन्दोलनी, रंजू झा, झगड़ू मंडल, सुरेश उपाध्याय, दीपेन्द्र दास आ विमल शरण – ठीक ८ वर्ष पहिने मिथिला राज्य केँ स्थापनाक मांग लेल अनशन पर बैसल आन्दोलनी पर बम सँ हमला कयल गेल छल ताहि मे ई लोकनि शहादत देने छलथि – हिनका लोकनि केँ स्वयं जानकी अपन सायुज्यता प्रदान कयलीह। मिथिला राज्य अपन भौगोलिक रूप मे मान्यता अवश्य पाबि गेल, नामकरण मे लोक सब पेंच लगबैत अछि…. ओकरा सभक लेल एतबे इशारा करबय जे पूर्व मे मैथिलीक विरूद्ध पेंच लगेनिहार रावण, खर-दुषण, कालनेमि, आदिक कि हश्र भेलैक आ वर्तमानहु मे बमकाण्डक आरोपी सभक कि हश्र भेल छैक से सोचय-बुझय आ ताहि अनुसारे अपन धर्मक रक्षा कय सकय त कय लियय। बेस त! जानकी नवमी आ मैथिली शहीद दिवसक संयुक्त शुभकामना! नमन!!
 
हरिः हरः!!