२५ सितम्बर २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!
बहुतो बेर एकटा सवाल मोन मे अबैत अछि जे हमरे घरक लोक केँ बाहरी लोक अपन समाज मे जोड़ि ओकरा माथ पर बाहरी साज-सज्जा-सम्मानक कइएक आवरण चढाकय हमर भाइ हमरा सँ छीनि लैत अछि।
भाइ केँ बुझाउ जे बाहरक सम्मान, बाहरक मान, आ कि मान्यता सँ पहिने अपन निजताक सम्मान-मान-मान्यता जरूरी अछि; लेकिन आजुक संसार मे हमर बुझेनाय बेकार जाइत अछि। ओ भाइ अपन जबानी आ सारा जीवन बाहरी सभक संग समाप्त कय लैत अछि। जखन ओकर अन्त समय अबैत छैक तखन ओकरा पुनः अपन संस्कृति, समाज आ सब बात-विचार माथ मे घुरियाइ लगेत छैक। लेकिन, आह! आब ओ केकरा लग घुरि सकत… ओ पटपटाइत अपन दुखद मृत्यु केँ अंगीकार कय लैत अछि।
ओहि भाइ केर देखायल बाट पर ओकर पत्नी आ सन्तान सब त बुझू भाइयो सँ दस डेग आगू बढिकय अपन भाषा, भेष, संस्कृति, समाज आ समग्र मे निजता केँ दस टा गारि-फझीहत दैत अछि। अछैत अपन गामक घरारी आ खेती-पथारी ओकर परिवार भाइ केँ देल बाहरी देखौआ बड़का टोपी आ सम्मान पत्र केर नशा मे चूर भाइ चलि गेलाक बाद दर-दर भटकैत नजरि पड़ैत अछि। ओ सब घुरबो करत त केकरा लग? न आब ओकर भाषा संग छैक, न संस्कार, न समाज! आह! ओ भाइ कनिये भटकल आ अपन अस्तित्व केँ हमरा लेल समाप्त कय लेलक। एतय हम मैथिल पहिचान छी, मिथिलाक सन्तान छी।
फेर मोन पड़ैत अछि ओ पूर्वजक शिक्षा….!
‘घर पूछ त बाहरो पूछ’ – अगबे बाहरे पूछ आ घर मे कोनो पूछे नहि, तखन आत्मसन्तुष्टि नहि भेटि पबैत अछि।
एहेन कतेको उदाहरण अपन समाज मे देखि सकैत छी जे अपन मिथिलाक कइएक सपूत बाहरी दुनिया मे काफी नाम आ प्रतिष्ठा कमेलनि, लेकिन हुनक अपन परिचिति अपनहि भूमि पर नगण्य भेलनि। आर चूँकि ओ जानि-बुझिकय अपन गाम-समाज केँ छोड़ि बाहरे मे दुनिया सजेबाक आ बढेबाक निर्णय कयलनि, आइ अन्त समय हुनका अपनो सन्तान जे अमेरिका-बेलायत चलि गेलनि, ओहो घुरिकय नहि ताकय एलनि। जखन अपने निजता सँ दूर जाइत छी, माने एहि संसारक गहराई आ अगम-अथाह पहिचानक अनिश्चितता मे हेरा जाइत छी, तखन सन्तान आ ऐगला सन्तति केर कि होयत से के जनैत अछि?
हरिः हरः!!