विशेष सम्पादकीय
द नेपालटप आनलाइन पत्रिका मे श्री कमल मण्डल केर लेख ‘सेन्सरबोर्ड न हुंदा बिकृत बन्दै मैथिली गीत-संगीत’ शीर्षकक महत्वपूर्ण लेख पढलहुँ। काफी नीक ढंग सँ नेपालक मैथिली गीत-संगीत क्षेत्र मे आबि रहल क्रान्तिकारी परिवर्तनक समीक्षा कयलनि अछि। चूँकि कमलजी स्वयं सेहो एक फिल्मकर्मी आ कलाकार होयबाक संग खानदानी रंगकर्मी सेहो छथि, हुनका मे ऊपरका पीढी सँ लैत वर्तमान पीढी धरिक मैथिली कलाक्षेत्रक महिन-महिन बात सभक जानकारी भरल छन्हि। लेकिन सारतत्त्व मे ओ जे सिफारिश करैत बुझाइत छथि जे ‘सेन्सरबोर्ड’ केर अभाव मे बिकृति आयल से सेन्सरबोर्ड रहबाक चाही, ताहि पर हम आजुक ई सम्पादकीय लिखय लेल प्रेरित भेल छी। हमरा हिसाबे समाजक तंत्र मे फूहड़ता आ अश्लीलता बड पैघ स्तर पर सन्हिया गेल अछि। एकरा दूर करबाक लेल समाजहि केँ एकजूट होबय पड़त।
सेन्सरबोर्डक बापो फेल अछि एहि अराजक मनोरंजक गीत-संगीतक आगाँ
अराजक मनोरंजन सँ सेन्सरबोर्डक बापो सुरक्षा नहि दय सकैत अछि। प्रशासन फेल भेल अछि। कतेको स्थान पर नियंत्रणक प्रयासक कारण झगड़ा-झंझटि आ केस-फौदारी सभटा भेल। अफसोस जे समाजक लोक स्वयं एहि लेल जागरूक नहि अछि।
एहि संसार मे कामुकता आ मादकता प्रति आकर्षण हरेक समुदाय मे ओतबे छैक। नहि केवल हिन्दी आ भोजपुरी मे अश्लील शब्द आ द्विअर्थी शब्दक प्रयोग करैत गीत लिखल-गायल आ प्रदर्शन कयल गेल, बल्कि ओकर बाजार सेहो एतेक तेजी सँ लोकप्रियता हासिल करय लागल जे देखादेखी नेपाली, मैथिली आ विभिन्न भाषा तथा बोली मे आइ धड़ल्ले सँ एहि तरहक प्रयोग अत्यधिक देखल जाइत अछि।
हिन्दी आ भोजपुरी गीत लेल त सेन्सरबोर्ड सेहो छैक, लेकिन ओ गिने-चुने फिल्म टा लेल मात्र अपन कार्य करैत छैक। सेन्सरबोर्ड केर सेन्सर सेहो एहि तरहक गीत केँ अनेकन बहन्ना मे पास कय बैसैत छैक।
तखन सेन्सरबोर्डक नजरि सँ काफी दूर आ घरही कैमराक उपलब्धता आ मनमानी फिल्म सूट करबाक लिलसा, गीत एल्बम रेकर्डिंग करबाक मनसा, ई एकटा एहेन बाढि जेकाँ आबि गेल छैक जाहि पर नियंत्रण सेन्सरबोर्डक बापो नहि कय सकैत अछि।
एकरा ऊपर नियंत्रण स्वयं लोकक अपन मर्यादित व्यवहार आ सभ्यता व संस्कार प्रति झुकाव-लगाव आ प्रतिबद्धता मात्र सँ संभव होयत। जखन एहेन फूहड़ गीत केँ सुननिहारक संख्या घटतैक, तखनहि गायक आ गीतकार सब एहेन गीत गाबय आ प्रदर्शन करय सँ परहेज करत।
लेकिन दुःखक बात त एहेन छैक जे आइ एक दिश महारानी दुर्गाक पूजा-पाठ चलैत रहैत अछि आर दोसर दिश सांस्कृतिक कार्यक्रमक नाम पर नग्नता आ फूहड़ताक पराकाष्ठा पर देवीस्वरूपा धी-बेटी केँ नचायल जाइत रहैत अछि, जतय हजारोंक संख्या मे हमर-अहाँक समाजक लोक ‘हो-हो-ताक्-धिना-धिन-ढिन्-चक्’ नाच नचैत रहैत अछि।
तऽ स्पष्टे अछि जे जखन समाजक लोक एहि तरहक अश्लील आ फूहड़ गीत-संगीत व फिल्म केँ स्वीकार करत, वैह देखत आ देखबाक आयोजन करत, तखन श्लील आ सौम्य आ कि सभ्य-सुसंस्कृत व्यवहार जे हम-अहाँ ताकि रहल छी, अथवा सेन्सरबोर्डक व्यवस्था चाहि रहल छी, से कनी सोचू जे अहाँक वश मे केना रहत ई कामुकता आ मादकता प्रति बहसल गीतकार, गायक, कलाकार, निर्माता, कैमरामैन आ निर्देशक आ कि एकरा सभक ई विशाल श्रोता!
गामहु-घर मे देखि सकैत छी जे एहि तरहक गन्दा शब्द सँ भरल गीतक ढ्याक्-चुक्-ढ्याक्-चुक् संगीत पर परिवारक सब तुर मिलिकय नचैत मुड़न आ ब्याह केर उत्सव मनबैत अछि। के नियंत्रण करत एहि सब कुव्यवस्था आ अराजकता पर? सरेआम बजैत रहैत अछि डीजे केर कनफोड़ा आवाज मे बीमार कय दयवला गीत-संगीत, जँ कियो रोकबाक लेल प्रयास करैत अछि त उल्टा कपरफोड़ा-फोड़ी तक झंझटि उठि जाइत छैक।
एहेन मे केहेन सेन्सरबोर्ड आ शासन-प्रशासनक बात एहि लेख सँ उठेलहुँ से स्वयं सोचू। एकर समाधानक एकमात्र बाट अछि व्यक्ति सँ लैत सामुदायिक एकजूटता जे एहि तरहक गीत-संगीत आ प्रस्तुति पर पूर्ण पाबन्दी लगाबय। आपसी सहमति सँ एहि तरहक अराजक मनोरंजन सँ अपना आ अपन समाज केँ बचाबय।
हरिः हरः!!