विजडम मोन पड़ि गेल अछिः एक अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका
अपन जीवन केर निर्माणकर्ता माता-पिताक संग गुरु-अभिभावक आ परिवेश केँ मानैत छी, प्रकृति जाहि मे पललहुँ-बढलहुँ, विद्यालय जाहि मे शिक्षा ग्रहण कयलहुँ आ संगी-साथी जेकरा सभक संग हँसैत-कनैत, खेलाइत-धुपाइत या लड़ैत-झगड़ैत जेनाहु समय बितबैत आगू बढलहुँ तेकरा सब केँ प्रणाम करैत छी।
आगू मित्रता भेल किताब सँ। किताबहु मे एकटा बड़ी खास किताब भेल ‘विजडम’। एकटा समय छल जे मात्र विजडम टा एकमात्र पोथी बनि गेल जेकरा मासे-मासे पढल करी। कतेको तरहक जासूसी उपन्यास सब पढलाक बाद रुचि गेल छल पुस्तकालय सँ अलग-अलग रुचि-स्वादक पोथी लय पढिकय वापस करैत फेर दोसर पुस्तक आनि पढबाक। लेकिन स्कूल केर शिक्षक पेशा सँ दूर होइत देरी ओहो छुटि गेलाक बाद बहुत दिन धरि विजडम टा संग रहल।
हम आजुक बच्चा केँ सेहो ई कहय चाहब जे एकटा सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका जाहि मे नैतिकता, विज्ञान, सामान्य ज्ञान, महापुरूषक जीवनी, प्रेरणादायक अनेकों कथा-गाथा आ विश्वक विभिन्न देश सँ जुड़ल जानकारी समग्र रूप मे एहि पत्रिका मे भेटत। एकर सम्पादकीय टा सब मासक पढि लेल करब तैयो बुझू जे जीवन लेल एकटा सही रास्ता चुनबाक सक्षमता आबि जायत।
हम आइ मोन पाड़य चाहब – के वी एस गोविन्दाराव केर एक सम्पादकीय जाहि मे ओ बुझौने छलाह जे जखन-जखन दु गोटे बात करैत रहय त बीच मे तपाक् सँ बाजय सँ परहेज करी। एतबा नहि, जा धरि ओहि दुइ व्यक्तिक बीच भऽ रहल बातचीतक ओर-छोर नहि बुझि जाय ता धरि कोनो तरहक विचार अपना दिश सँ एकदम नहि दियैक। बातहि बुझेबाक क्रम मे ओ लिखने छलाह जे मानि लिअ जे अहाँ कोनो लेख पढि रहल छी, लेख केर शीर्षक पढिकय लेख केर विश्लेषण करबाक खतरनाक आदति कतेको लोकक होइत छैक, ताहि हेतु लेख पूरा पढी आर तखन ओकर शीर्षक सँ तादात्म्य स्वतः बुझय मे आबि जायत।
ई प्रसंग एखन विशेष रूप सँ एहि लेल कहलहुँ जे आजुक समय मे एक त पढबाक आदति लोक मे कम अथवा नगण्य छैक, आ जँ पढबो करत त खाली ‘हेडलाइन’ पढिकय ओ फटाफट अपन मीमांसा (काल्पनिक समझ केर आधार पर विश्लेषण) देबय लागत। एहि तरहें आइ-काल्हि अपना केँ जज (निरीक्षण) नहि कय बेसीकाल दोसरहि केँ हम-अहाँ जज (निरीक्षण) करबाक अपराध कय बैसैत छी। ई बीमारी बहुतो लोक मे होइत छैक, ओ पढत कम, लेकिन अन्दाजे पर विश्लेषक बनबाक आ अपना केँ देखेबाक – एक्सपोज करबाक कुचेष्टा बेसी करत। एहि सँ न अपन लाभ होयत, न दोसरक लाभ करबैक। एहि सँ बची।
हरिः हरः!!