सौराठ सभा सँ आमंत्रण

मैथिल ब्राह्मण समुदाय आब पहिने जेकाँ आर्थिक रूप सँ कमजोर नहि रहि गेल छथि। एकटा समय एहनो रहल जे बहुल्यजनक देह पर सही सँ लत्ता तक नहि पहुँचय, लेकिन आब कियो दरिद्रता झेलैत हाथ-पर-हाथ धेने गामहि मे बैसल नहि रहैत अछि, केकरो मुंह तकबाक जरूरति आजुक युग मे नहि बाँचि गेल छैक आर दुनिया ततेक छोट भऽ गेल छैक जे परदेश कमेबाक लेल गाम-घर छोड़ि लगभग ९९% लोक पूर्ण तत्परता सँ आगू बढैत रहैत अछि। वर्तमान मिथिला मे यैह संघर्षक कारण मैथिल ब्राह्मण समुदाय आर्थिक प्रगतिक दिशा मे बहुत आगू बढि गेल छथि। पहिनहुँ अपन स्वाभिमान सँ समझौता नहि करयवला ई समुदाय भले अभाव मे जीवन बिता लेलक, लेकिन हिंसा, हत्या, कदाचार, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि मे विरले कतहु अपवादे स्वरूप अग्रसर भेल त भेल, सामान्यतया ई लोकनि अपन वैदेह धर्म केँ निभौलनि आर धिया-पुता केँ शिक्षित-सुसंस्कृत बनेबाक परम्परा केँ आगू बढौलनि, आइ हिनका लोकनिक यैह सम्बल भेल अछि। आर विभिन्न राजनीतिक कुचक्र मे एहि अल्पसंख्यक समुदाय केँ पुछनिहार कियो नहि भेल परञ्च ई लोकनि अपन प्रतिभा, योग्यता, दक्षता, क्षमता, सामर्थ्य आ विकट सँ विकट कार्य केँ सहजहि निष्पादन करबाक अपूर्व कलापूर्णता सँ अपन विशेष स्थान आइ मिथिला सहित बाहर देश-विदेश सब तैर बनौलनि अछि। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण ई अछि जे एहि अपूर्व कलापूर्णताक बुनियाद यानि मैथिल ब्राह्मणक अनुपम संस्कार आ रीत-रेबाज सँ ई लोकनि जानि-बुझिकय कटल जा रहल छथि। सौराठ सभागाछी मे हिनका लोकनिक उपस्थिति आब सिर्फ तमशबीन बनिकय अपन-अपन गाड़ी-घोड़ाक प्रदर्शन करब आ बड़का-बड़का गप छोड़ब मात्र रहि गेल अछि।
नव पीढी मे आब ई खोज करबाक उत्सुकतो नहि देखैेत छी जे आखिर हमर पुरुखा एतेक समृद्ध कोना छलथि जे एतेक रास वैज्ञानिक पद्धति केँ अपन जीवनचर्या मे धारण करैत रहलाह। अरे! धन-सम्पत्तिक इतिहास जोड़ल जाय तऽ ई पहिनहुँ कतेको पीढी मे अकूत रहबाक बात देखाइत अछि, लेकिन संस्कार आ शिक्षाक भंडार जाहि कोनो परिवार मे आयल ओ दिनानुदिन बढिते गेल नहि कि घटल कतहु। तदापि, शिक्षा आ संस्कार मे जँ अपन बाप-दादाक विलक्षण आ बेजोड़ अनुपम परम्परा केँ निर्वाह नहि कय ओकर वीभत्स आ कुरूप रूप केँ अपनायब तखन ई नीक संकेत नहि करैत अछि। एक दिश अहाँक पास अकूत सम्पत्ति बढि गेल अछि, दोसर दिश अहाँ लोकनि अपन देखाबा करबाक कइएक आडंबरी विध-व्यवहार मे उलैझ रहल छी – तखन कहू जे अहाँक आनुवंशिक कलापूर्णता केना सुरक्षित रहत? जँ विवाह-दान मे उचित अधिकार निर्णय, सिद्धान्त लेखन आ कुलदेवीक मातृका पूजा, ओठंगर, वैदिक विधान सँ मंत्रोच्चारणक संग दुइ नर-मादा केँ एक बनबाक शपथ उपरान्त विधिवत् कन्यादान, सिन्दुरदान, घोघट, सोहाग, मौहक, गौरी पूजन, चतुर्थी, पुनर्विवाह, मधुश्रावणी, कोजगरा, द्विरागमन, माछ-दहीक भार आ कइएक विध-विधान जे विवाह जेहेन संवेदनशील विषय केँ एतेक मजबूती सँ बान्हि दैत अछि जे एक विवाह के बाद दोसर विवाह के सवाल तक नहि उठैत अछि। आब आइ लोक करत शौर्टकट, आ कनिके दिन मे भोगत ‘डिवोर्स’ फाइल! कहू ई कोना चलत? ताहि सँ अपन पुरुखाक परम्परा लेल सौराठ सभा केँ पुनः जीवन देबाक लेल चिन्तन सब कियो जरूर करू। अस्तु! फेर भेटब!
हरिः हरः!!