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अपन-अपन कर्तव्य सँ परिचित रहि नीक-बेजा केर द्वंद्व सँ मुक्त रहब जरूरी

के नीक आ के बेजा

नीक आ बेजा केर परिभाषा सामान्य सँ ऊपर सेहो एकटा होइत छैक। ओ थिकैक अपन-अपन दृष्टिकोण सँ केकरो नीक बुझब आ केकरो खराब बुझब। सामान्य समझ मे जे नीक-बेजा छैक से त छहिये। आब एकर मीमांसा मे प्रवेश करब त सामान्यतः पढनाय-लिखनाय केँ सब नीक कहैत छैक, बेजा कियो नहि कहैत छैक। अपवाद मे ई भऽ सकैत छैक जे एक बापक ३ बेटा मे पहिलुका केँ ओ एतेक पढेलाह जे खेत तक बेचय पड़ि गेलनि, आर से बेटा अपने जखन हाकिम बनि गेल त छोट दुइ भाइ आ माँ-बाप केँ लात मारि देलक। ओहि परिवार केर लोक केँ ताहि के बाद पढेनाय-लिखेनाय सँ जेना घृणा भऽ गेलैक। ओ परिवार सिर्फ अपन खेती-गृहस्थी, पशुपालन, साधारण धर्म-कर्म करैत सुदुर देहात मे नितान्त एकाकीपन मे रहय लेल मानि गेल अछि, लेकिन ओहि परिवार लग अहाँ पढेनाय-लिखेनाय बड जरूरी छैक से नाम तक नहि लय सकैत छी। आब देखू खिस्सा! एहि ठाम सामान्य सँ ऊपर अपवाद नजरि पड़त, लेकिन सामान्य समझ जे बहुल्य जनमानसक मोन-मस्तिष्क मे बैसि गेल छैक ओ एहि सँ नहि बदलि जेतैक।

दोसर दिश जे बात दृष्टिकोणक फर्क सँ हमरा लेल नीक भऽ सकैत अछि, तेकरा दोसर बेजा कहि सकैत छैक। जेना, मातृभाषा मे लेखन केँ प्राथमिकता देनाय, अपन बेसी रास बात व विचार सोशल मीडिया मे मैथिली मे रखनाय, एकरा हम नीक मानैत छी। तेँ ई सब लेल नीक भऽ जाय ई जरूरी नहि छैक। फल्लाँ बाबू केँ बेसीकाल देखैत छियनि जे ओ अपन बात अलग भाषा जेकर परिधि मैथिली सँ हुनका नजरिये आ सामान्य नजरिये सेहो पैघ छैक, ओ ताहि मे लिखिकय ई जतबैत छथि जे हुनकर बात-विचार किछु बेसी दूर तक पहुँचल। आब एकर आरो भीतरक मीमांसा मे प्रवेश करब त दू गो बात नजरि पड़त। मैथिली मे लेखन केला सँ मैथिलीभाषी यानि अप्पन लोक बेसी पढता, अपन आसपासक लोकक समझ बेस नीक बनत, एकर जमीनी प्रभाव व्यवहारिक रूप सँ अहाँ केँ आत्मसंतोष देत। दोसर दिश इतर भाषा मे अहाँ लेखन कयल, दुनियाक बड पैघ परिधि मे लोक ओ बात पढलक-बुझलक, अहाँ केँ पतो चलल कि नहि जे एकर प्रभाव कोनो पाठक वा वर्ग वा समुदाय केकरो ऊपर पड़बो केलैक अथवा नहि, धरि अहाँक मोन मे बैसल एक समझ (परसेप्सन) जे हम पैघ भाषा मे लिखलहुँ त पैघ दूरी धरि हमर बात गेल, बस एहि आधार पर अहाँ मातृभाषा सँ इतर अन्य भाषाक प्रयोग पर जोर दैत छी। निष्कर्ष निकालू स्वयं – नीक आ बेजा केर प्रतिक्रिया आन कियो देत ताहि सँ नीक जे स्वयं आत्मसमीक्षा सँ नीक-बेजा केँ बुझल करू।

तुलसीदास जी रामचरितमानस मे कहने छथि जे ई संसार नीक आ बेजा कतेको उदाहरण सँ भरल अछि, हमरा सब केँ लेकिन अपना ढंग सँ नीक केँ ग्रहण करबाक चाहीः

जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥

भावार्थ:- विधाता द्वारा एहि जड़-चेतन विश्व केँ गुण-दोषमय रचल गेल अछि, मुदा संत रूपी हंस दोष रूपी जल केँ छोड़िकय गुण रूपी दूध केँ मात्र ग्रहण करैत अछि।

हरिः हरः!!

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