मैथिली-मिथिलाक जीवन्तता-अमरताक एकमात्र सूत्र – व्यक्तिगत योगदान आ स्वयंसेवा

व्यक्तिगत योगदान आ स्वयंसेवा हमर मूल पूँजी

व्यक्तिगत योगदान सँ बेसी जिबैत अछि मैथिली। स्वयंसेवा केर कर्म-सिद्धान्त मिथिलाक लोक केर मूल धर्म आ मुख्य पूँजी रहल अछि। राज्य केर तरफ सँ पोखरि आ इनार आ कि सार्वजनिक हित केर काज एखन धरि ओतेक नहि देखाइछ जतेक कि स्वयं अपन लोक आ ओकर हित लेल गाम-समाज आपस मे मिलिजुलि एकत्रित भाव सँ पूरा करबाक विशाल इतिहास बनौने अछि। ईहो सच छैक जे एकहि गाम मे एकत्रित भाव केँ विखंडित करबाक मानसिकता रखनिहार सेहो उपलब्ध रहैत अछि, ओ अपनहि ताले नचैत रहैत अछि… लेकिन विकासक काज विकासशील लोक द्वारा निरन्तरता मे रहैत छैक। पैछला किछु वर्ष मे मातृभाषाक महत्व जन-जन बुझथि ताहि लेल जनजागरण अभियान, कवि सम्मेलन, विद्वत् सभा, परिचर्चा गोष्ठी, राज्य निर्माणक मांग आदि उल्लेख्य मात्रा मे समस्त मिथिलाक्षेत्र मे देखल जा रहल अछि। वर्तमान समय मिथिलाक अवस्थिति दुइ राष्ट्र भारत ओ नेपाल मे सुगौली संधिक परिणामस्वरूप बँटि जेबाक कारण दुनू राष्ट्रक सम्प्रभुताक सम्मान करैत – सौभाग्यवश दुनू राष्ट्रक अखण्ड मित्रता केँ परिमार्जित करैत मैथिली भाषाभाषी जनमानस खुल्ला सीमाक कारण कनिकबो अन्तर धरि अनुभव नहि करैत एक-दोसर सँ एकदम अकाट्य जुड़ाव बनौने अछि। विश्व राजनीतिक परिवेश मे एकरा जनस्तरीय सम्बन्ध कहल जाइत छैक। पिपुल-टु-पिपुल रिलेशन्स जाहि कोनो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाक आरपार रहल ओत्तहि समृद्धि आ प्रगतिशीलताक अनेकों कथा-गाथा बनल। भारत-नेपाल केर मैत्री मे कतेको बेर कतेको प्रकारक व्यवधानक अवस्था रहितो यैह जनता-जनता बीच सामंजस्य आ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धक कारण, सांस्कृतिक-भाषिक-सामाजिक एकरूपताक कारण कोनो व्यवधान आइ धरि दुइ राष्ट्रक बीच केर मित्रता केँ खन्डित नहि कय सकल, आ नहिये ई भविष्य मे कहियो संभव होयत।
 

नेपाल केर नव राजनीतिक परिवेश मे मैथिलीक अधिकार

नेपालक नव संविधान मे हरेक मातृभाषा केँ ‘राष्ट्रीय भाषा’ केर दर्जा देल गेल अछि। संघीय शासन, प्रदेश शासन, स्थानीय निकायक शासन – तीन तह मे ‘सरकार’ चलेबाक सिद्धान्त नेपालक गणतांत्रिक लोकतंत्र मे विलक्षण अछि, हलांकि बहुतो विद्वान् आ अनुभवी एहि देशक भौगोलिक बनौट केँ देखैत एखन धरि ‘गणतंत्र’ केँ टिकाऊ नहि मानि पाबि रहला अछि। किछु असामंजस्यता संविधान केँ पूर्णरूपेन लागू होयबा धरि देखय मे आबि रहल अछि। बजट विनियोजन आ कार्य विभाजन आदि मे तीन तह केर बीच सामंजस्यता मे यदा-कदा समस्याक चर्चा सुनल जाइछ। तथापि, देशक शासन व्यवस्था आ प्रमुख राजनीतिक दल द्वारा लगातार सब किछु नियंत्रण मे अनबाक अथक चेष्टा होइत देखेला सँ स्थिति अराजक तऽ एकदम नहि अछि, बल्कि सभक सङोर सँ ई सुदृढ नेपाल बनाओत से गुंजाईश अछि। ‘समृद्ध नेपाल – सुखी नेपाली’ केर तर्ज पर देशक वर्तमान शासन व्यवस्था बड पैघ जनादेशक संग आगू बढि रहल अछि। राजकाजक भाषाक विषय मे, प्रदेशक नामकरण केर विषय मे, संघीय सेवा आयोगक परीक्षाक वैकल्पिक विषय सँ लैत प्राथमिक शिक्षाक मौलिक अधिकार लेल मातृभाषाक विषय आदि पर आधारभूत सिद्धान्त अत्यन्त सरल, सहज आ सर्वस्वीकार्य अछि। सभक लेल सम्मान केर बात संविधान बड़ा मैथेमेटिकली प्रोपर्शनल सिस्टम पर ग्रान्ट करबाक मूल आधार सर्वप्रिय कहि सकैत छी। भाषाक लेल खास कय केँ डा. लबदेव अवस्थीजीक अध्यक्षता मे आयोग गठन कयल गेल अछि जे लगभग २ वर्ष बितलो पर पूर्णता नहि पेलक ई कनेक दुविधा मे डालैत अछि, तथापि सब किछु सही भऽ जेतैक ई कहि सकैत छी। संविधानक मूल भाषा जनगणना मे रहल भाषाभाषीक संख्या अनुरूप प्रदेश द्वारा राजकाजक भाषा निर्धारित करबाक बात कहने छैक। ताहि आधार पर प्रदेश १ आ प्रदेश २ मे मैथिलीक अधिकार बनैत छैक, कतहु पहिल राजकाजक भाषा त कतहु दोसर राजकाजक भाषा बनबाक चाही। परञ्च, समग्र मधेश प्रदेश केर पक्षधर राजनीतिक दल एवं आन्दोलनी एखन धरि सीमांकन, नागरिकता, निर्वाचन क्षेत्र लगायत गोटेक मुद्दा पर असन्तुष्टि रखैत संविधान संशोधनक विषय सदन मे उठा रहलैक अछि। ताहि कारण वर्तमान प्रदेश २ केर शासन व्यवस्था हालक सीमांकन केर आधार पर नामकरण आ भाषिक अधिकार आदि मे सन्देहक अवस्था मे देखाइत अछि। ताहि पर सँ गोटेक छद्म विद्वान् आ कथित राजनीतिक-बौद्धिक अभियन्ताक अन्तर्विभाजनक कइएक कुचर्चा, माहौल केँ आरो ध्वस्त बनाबय लेल आतूर अछि।
 

मैथिली भाषाभाषीक बढैत अभियान सँ छद्म आ स्वार्थी लोक मे अधीरताक स्थिति

 
मैथिली-मिथिलाक बढैत गतिविधि देखि समाज केँ बाँटनिहार आ अपन राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कयनिहार पूर्व मे भारतक भूमि मे विद्वेष पसारय जेकाँ आब नेपालहु मे वैह हारल खेला खेलेबाक कुत्सित प्रयास भऽ रहलैक अछि। भारतक सदन मे जेना मैथिली केँ हिन्दीक बोली आ विद्यापति केँ बंगालीक कवि आदि कहिकय मैथिली केँ जानि-बुझि हिन्दीपट्टी मे गाँथिकय कइएक दशक धरि राखल गेल रहैक, बिल्कुल तहिना एखन नेपाल केर किछु मौसमी राजनीतिक दल आ मौसमी राजनीतिक विचारक व हुनका लोकनिक सहयोगी ओतबे उपद्रवी विचार सँ अपन कुचक्र मैथिली पर चलाबय चाहैत अछि। हालहि एक न्युज-एराउन्ड नाम्ना यूट्युब चैनल सँ भोजपुरीभाषी नेपालक कवि गोपाल ठाकुर द्वारा सिमरौनगढ केर स्थापित इतिहास केँ एक अक्षर ज्ञान तक नहि रखनिहार द्वारा विद्यापतिक पद्यशैली मे भोजपुरीभाषाक शैली प्रयोग होयबाक बात कहैत हुनकर मैथिलीक कवि नहि होयबाक विचार सार्वजनिक कयल गेल छल। वरिष्ठ संचारकर्मी दिनेश यादव हाल बहुत बेहाल छथि – ओ अपनहि कपोलकल्पित निर्णय मे आकंठ डूबल प्रदेश २ केर नामकरण मे ‘मिथिला’ शब्द केर विरोध करैत ७-७ गो तर्क अपन फेसबुक स्टेटस द्वारा देलनि। न्युज एराउन्ड केर संचालन सेहो दिनेश यादव जी करैत छथि से प्रतीत होइत अछि, कारण ओकर लिंक बेचारे वैह सगरो परसैत आ मैथिली अभियानी सब केँ देखबैत रहैत छथि। हिनकर वैमनस्यताक मूल कारण यैह जे कतहु कोनो आयोजन होइत छैक त लोक हिनका विद्वानजी मानिकय मंच पर कियैक नहि बजबैत छन्हि…. सब जगह रमेश रंजन झा आ धीरेन्द्र प्रेमर्षि आ कि भारतक अजित आजाद, किसलय कृष्ण आदि केँ कियैक बजबैत अछि। आयोजन व्यक्तिगत होइक आ आयोजन अपन विचार सँ चलथि ताहू पर हिनका आपत्ति रहैत छन्हि, तैँ ई भैर दिन मे २५ बेर बिखे वमन (रद्द) करैत रहैत छथि। अपन सीमा केँ नांघिकय संवैधानिक मर्यादा पर होशियारी सँ दोसर पर आक्रमण करब हिनकर चिर-परिचित शैली बनि गेल अछि हमरा लेल।
 

मैथिली संग शत्रुता मे जीत सदैव मैथिली केर भेल

 
याद करू रामायण – राम रावण केर हत्या कयलनि। ब्रह्महत्या भेल। राम ताहि लेल पश्चातापक सिद्धान्त पर सेहो चलिकय मर्यादाक निर्वहन कएलनि, लेकिन ‘आततायी’ केर हत्या निष्पाप होइत छैक से सत्य अर्थशास्त्र समान भारतीय प्राचीन ग्रन्थ कहने अछि। केकरो स्त्रीक अपहरण आततायी द्वारा होइछ। रावण प्रकाण्ड विद्वान् रहितो ई आततायी बनि सीताक अपहरण कयलनि आ अन्ततोगत्वा रामक बाण सँ वध भेलाह। मैथिली सीताक नाम थिक। विद्यापतिक समय मे ई भाषा अवहट्ट कहाइत छल, प्राकृत आ संस्कृत मिश्रित अवहट्ट आइ मैथिली कहाइत अछि। एकरो रहस्य छैक। भाषाक नामकरण १८०१ ई. केर कोलब्रुक प्रकाशित पोथी मे भेटैत अछि, तदोपरान्त डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन रचित कतेको महत्वपूर्ण प्रकाशन मे भेटैत अछि… ओ त ग्रामर (व्याकरण) तक मैथिलीक लिखलनि। विद्वान् रहथि, मित्र चन्दा झा समान वीर महापुरुष छलखिन्ह। रुचि रहन्हि। लिखलाह। शोध कयलाह फेर लिखलाह। आइ-काल्हिक ‘कौपी-पेस्ट’ विद्वान् जेकाँ कुतर्क मे पड़ितथि तऽ नहि लिखि पबितथि। कुतर्की सभ केँ अहाँ पुछब जे कि सब लिखि सकलहुँ अछि…. जबाब भेटत बाबाजीक ठुल्लू।
 

मैथिली केर हितचिन्तक मे जानकीतत्त्व रहैत छैक, कुतर्क नहि

 
मैथिली आ मिथिला सँ घृणा करनिहार – अनेकों अत्याचार आ गलतबयानी कयनिहार – कुतर्क सँ अपन छद्मबुद्धि केँ सबसँ ऊपर माननिहार – मैथिलीक हितचिन्तक बनबाक स्वांग कय रहल अछि। पिछला कतेको समय मे आइ धरि जँ एको बेर कलम चलाकय एहि भाषाक स्थिति पर सकारात्मक बात कएने रहैत, कतहु कोनो तरहक योगदान तक देने रहैत, तखन जँ ओकर चिन्तन मे आलोचनाक पृष्ठपोषण रहितय तऽ कोनो अहमियत पबैत…. लेकिन पूर्वाग्रही आ घिनायल जातिवादिताक बात छोड़ि अन्य कोनो विचार तक जेकरा मे नहि भेटत से जँ ‘शुद्धीकरण’ अभियान चलाओत तऽ ओकरा सब केँ बेर-बेर अपन किरदानी पर विचार करबाक चाही। मैथिलीक हितचिन्तक मे ‘जानकीतत्त्व’ रहैत छैक। आइ धरि केकरो कहला सँ कियो मैथिलीक काज मे नहि आयल अछि। एक अनुज निराजन झा केर एहि दृष्टान्त केँ हृदय सँ आत्मसात करैत व्यवहारिक दुनिया मे ई बात हम जाँच करैत निष्कर्ष पर पहुँचिकय कहि रहल छी। एकटा विशुद्ध अभियानी विषवमन नहि कय सकैछ। जे सब काज करनिहार होइत छैक से विषवमन कयनिहार सन-सन कुकाठी केँ शर्बत मे घोरिकय पीबि लेने रहैत छैक। जानकीतत्त्वक अनुभव जेकरा नहि छैक से अघोरी जेकाँ थूक फेकय मे व्यस्त रहैत अछि। कहबी छैक न ‘अघोरी डेराबय थूक सँ’, सैह हाल रहैत छैक कुतर्की लोक सभक।
 

सभक जैड़ मे छैक ‘राजनीति’ – मैथिली-मिथिला राजनीति सँ रहैत अछि दूर

 
प्रदेश २ केर नामकरण पर सोशल मीडिया मे खूब जोर सँ चर्चा चलैत छैक। हालहि प्रदेश २ केर एकटा मन्त्रीजी मैथिली भाषा अल्पसंख्यक केर भाषा आ मैथिलीक बोली ठेंठी केँ अपन अनुपम विद्वता सँ ‘मगही’ भाषा नामकरण करैत वोटक गणित करैत अभरल छलाह, ओ कहने रहथिन जे ६२% जनसंख्याक भाषा ‘मगही’ थिकैक। कतेको कुतर्की केँ एहि लेल कबाउछ लागल छन्हि जे मैथिली-मिथिलाक कोनो आयोजन मे ब्राह्मणहि केर उपस्थिति बेसी कियैक रहैत छैक, ब्राह्मणक संग-संग कायस्थक उपस्थिति, आरो विद्वानवर्गक देव समुदाय केर उपस्थिति, यादव समाज केर उपस्थिति, राजपुतक उपस्थिति, फल्लाँ-चिल्लाँ सब पढल-लिखल जाति आ वर्गक उपस्थिति रहिते टा छैक। लेकिन मंच पर नाम जोड़िकय ओ देखैत छथिन जे ब्राह्मणक संख्या आ ‘झा-झा’ बड बेसी, त ओ लोकनि एकरा नाम दैत छथिन ‘ब्राह्मणवाद’। हुनका सँ त्रुटिक सुधार करैत कोनो आयोजन करबाक आग्रह करू तऽ तुरन्त लाठी-फराठी लेने अहाँक राष्ट्रीयता तलिक बात पहुँचाकय गरियेनाय-लठियेनाय शुरू कय देता। विषय बिसैर जाइत छथिन। कोरा कल्पना सँ अपन मोनक मैल बाहर होमय लगैत अछि एहि प्रकाण्ड पन्डित लोकनिक। ब्राह्मणहि करय आयोजन आ हिनका लोकनि केँ मंच पर मुंहपुरुख बनाकय बैसाबय से आन्तरिक चाहत छन्हि, न अपने कोनो आयोजन करता आ नहिये धियापुता संग धरि कहियो मैथिली मे बात तक करता… अनौपचारिको बैसार आदि मे आमजन समक्ष मातृभाषा आ मैथिली भाषा केर वा साहित्यक गम्भीरता-अनिवार्यता आदि पर कतहु चर्च तक नहि करता…. लेकिन आइ सामाजिक संजाल मे मैथिलीक बढैत अभियान देखिकय हुनका लोकनि केँ कबछुआ गलत जगह पर लागल छन्हि ई कहय मे कोनो गलती नहि हेतैक। ओ, हुनकहि जेकाँ ब्राह्मणविरोध मे लागल अन्य विद्वान् आ अभियन्ता, राजनीतिक विचारक, सब कियो आली-हौसे-आली-हौसे करब शुरू कएने छथि। ओ कतबो फँगता, मैथिली जितबे करत। अस्तु!
 
हरिः हरः!!