मिथिलाक वर्तमान रंगकर्म विधा: प्रतिद्वंद्विताक स्थान कतय

mailorang2मिथिलाक अत्यन्त प्राचिन संस्कृति मे नाटक विधा सँ मनोरंजन स्थापित अछि। मिथिला सँ एहि विधाक अनुकरण आस-पड़ोस केर अन्य भाषा व संस्कृति मे सेहो हेबाक प्रमाण भेटैत अछि। नेपाल, आसाम, बंगाल, आदि मे सेहो मैथिली रंगकर्म सँ एहि विधा केँ विकास करबाक उदाहरण सब उपलब्ध अछि। हालहि किछु वर्ष पूर्व भाषा वैज्ञानिक तथा पूर्व उप-कुलपति (पूर्वांचल विश्वविद्यालय, नेपाल) डा. राम अवतार यादव द्वारा एक शोधमूलक पोथीक प्रकाशन सँ नेवारी राजा प्रताप मल्ल केर युग मे कोना मैथिली भाषा व शैली मे राज संस्था द्वारा नाटक लेखन व मंचन करायल जाइक ताहि पर प्रकाश परशुरामोपाख्यान मे कैल गेल अछि।

गाम-गाम मे नाटक होयबाक संस्कृति तऽ आइयो धरि थोर-बहुत जीबिते अछि। रामलीला आ थियेटर केर परंपरा सेहो मिथिला मे रहल। अल्हा-रुदल गान सेहो रंगकर्मक एक खास विधा मानल जाइछ। पमरिया, बक्खो, विपटा द्वारा कैल जायवला प्रस्तुति मे सेहो रंगकर्मकेर झलक रहैत छल। वर्तमान समय मे टेलिविजन आ मोबाइल पर फिल्म, धारावाहिक आ विभिन्न मनोरंजनात्मक कार्यक्रम देखबाक सुविधा आबि गेला सँ पुरान आ पारंपरिक विधाक माँग घटि गेल, कतेको प्रथा तऽ विलोप सेहो भऽ गेल। हालहि एक अंग्रेजी आलेख डा. कैलाश कुमार मिश्र द्वारा एहि वेबपोर्टल मैथिली जिन्दाबाद पर सेहो प्रकाशित रामलीला मिथिलाक वैशिष्ट्य कोना लोप भऽ गेल ताहि पर राखल गेल अछि। एहि आलेख द्वारा डा. मिश्र पारंपरिक पहिचानमूलक वैशिष्ट्य विधाक रक्षार्थ जोरदार ओकालति सेहो केने छथि। समयक माँग सेहो किछु ताहि दिशा मे पुनर्गमन करबाक संकेत दैत अछि। दुनियाक विकास संग एक तरफ अत्याधुनिक साधन बढल जा रहल अछि, लेकिन तेकर दुरुपयोग सँ मानवीय सभ्यताकेँ पहुँचि रहल खतराक परिमाण सेहो कम नहि हेबाक कारणे एकटा धरा पौराणिक परंपराकेँ जीवन्त करबाक पक्ष मे देखल जाइछ।

minap dramaगाम-गाम मे मेला आ उत्सवक अवसर पर पहिने ग्रामीण सब अपनहि सँ टीमवर्क करैत एक सँ बढिकय एक नाटक मंचन करैत छल जे नहि सिर्फ गामकेँ नीक लगैत छलैक, बल्कि सहभागी अभिनय करनिहार केँ व्यक्तित्व विकास मे एकटा सकारात्मक सहयोग सेहो भेटैत छलैक। परञ्च वर्तमान विडियो आ सिल्वर स्क्रीनक बहसल आवरण मे कोन तरहें समाज गंदा आचरण दिशि उन्मुख भऽ रहलैक अछि ओ किनको सँ छपित नहि अछि। फिल्मक विकास आ मनोरंजन तक ठीक छलैक, लेकिन गाम-समाजक भोली-भाली बेटी-पुतोहु संग कोन तरहें छलावापूर्ण प्रेमक ढोंग कय एमएमएस आ ब्लू फिल्म सँ युवा मे विकृति खुलेआम पसारल जा रहलैक अछि से केकरो सँ छपित नहि अछि। विकासक अवधारणा जँ विनाशोन्मुख बनेतैक तऽ निश्चित तौर पर समाजक अगुआवर्ग केँ एहि दिशा मे चिन्ता देतैक आ संरक्षणार्थ राज्य तथा समाज दुनू केँ सशक्त रूप सँ ठाढ होमय पड़तैक। यैह सब लेल रंगकर्म विधाक जीवन्त मनोरंजनात्मक प्रस्तुतिक माँग आइयो सभ्य समाज मे जीवित छैक, जीवन्त रखबाक लेल जीतोड़ प्रयास कैल जाइत छैक, राज्य सेहो एहि लेल तत्पर छैक।

drama1गाम सँ शुरु भेल रंगकर्म यात्रा आब सुसंगठित होइत शहर मे सेहो स्थापित भेलैक अछि। मैथिली रंगकर्म अहु मामिला मे कोनो अन्य भाषा सँ पाछू नहि रहल अछि। मिथिलावासीक सुसंस्कृत मैथिल जाहि कोनो समाज मे भलेहि प्रवासे पर कियैक नहि छथि, मुदा मैथिली नाटकक परंपरा केँ निश्चित तौर पर विकास कएने छथि। ओना तऽ मैथिली गतिविधि सबकेँ सुसंगठित संकलन कम्मे भेटैत छैक, मुदा मैथिली-महायात्राक सुसंयोग सँ हमरा विभिन्न जगहक यात्रा पर एकर थोड़-बहुत जानकारी भेटैत रहल अछि। संगतिया अभियानीक माध्यमे सेहो बहुत रास जानकारी समेटैत रहल छी। स्वयं बच्चहि सँ मंच पर रंगकर्म अपन गाम कुर्सों (दरभंगा) केर श्री राम-जानकी युवा नाट्यकला परिषद् आ नाटकक निर्देशक पित्ती श्री मुक्ति नारायण चौधरीक विशेष अनुकम्पा सँ नाटक मे भूमिका निर्वाह सँ लैत निर्देशन, मंचन, संयोजन, वेष-भूषा, साज-सज्जा, मंच-निर्माण, प्रकाश, ध्वनि… रंगकर्म सँ जुड़ल अनेको तकनीकी बातक थोड़-बहुत ज्ञान अपनो अछि। लेकिन एकर विशिष्ट स्वरूप देखबाक अवसर भेटल १९९२-९३ केर षष्ठम अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली नाटक प्रतियोगिता – पटना ओ विराटनगर मे। स्वयं भानु कला केन्द्र, विराटनगर सँ आबद्ध एक कलाकार केर रूप मे परमादरणीय निर्देशक स्व. चतुर्भुज आशावादी संग दुनू ठाम नाटक मे सहभागी बनल रही। विराटनगर मे तऽ आयोजक संस्थाक एक स्वयंसेवी बनिकय खटलो रही। एक सँ बढिकय एक नाटकक मंचन, उच्च तकनीक आ प्रकाश संग ध्वनि संयोजन आ मंच निर्माणक उत्कृष्ट नमूना सबहक संग अभिनयक अनुपम झाँकी-प्रस्तुति सँ हमहीं नहि समूचा मैथिल समाज सराबोर भेल छलथि।

drama2पटना, जमशेदपुर, दरभंगा, जनकपुर, विराटनगर – एतेक तऽ हमरा स्मृति मे अबैत अछि जाहि ठामक विभिन्न नाटक टोली द्वारा नाट्य-मंचन देखबाक अवसर भेटल। नाटकक किताब सेहो विशेष रुचि मे रहबाक कारणे एक सँ बढिकय एक लेखकक नाटक पढबाक अवसर भेटैत छल। आबे एहि सबमे रुचि मानू घटल देखैत छी, लेकिन ई विधा अपना जगह आइयो ओतबे प्रखर रूप मे आगू बढि रहल अछि। विराटनगर मे विद्यापति स्मृति पर्व समारोह – २०६७ वि. सं. साल मे आमंत्रित मिथिला नाट्यकला परिषद्, जनकपुर (मिनाप) द्वारा मंचित नाटक ‘डोमकच्छ’ जेकर नाम सुनैत देरी देह सिहरय लगैत अछि – एहि नाटकक मंचन समय कम सँ कम १००० आदमीक सीटवला सभागार मे ३००० आदमी कोंचा गेल छल, नाटकक गंभीरता एहेन छलैक जेकरा लेल ओतेक कोंचम-कोंच भीड़ रहितो पिन-ड्राप-साइलेन्स हमरा संयोजक रूप मे एतेक प्रभावित केलक जे हम शब्द मे एतय राखय सऽ असमर्थ छी। मिनाप केर दोसर प्रस्तुति एहि विराटनगर मे ‘बुधियार छौंड़ा आ राक्षस’ एकटा खुल्ला मैदान मे भेल छल। ओहि मैदान मे ताहि दिन विराटनगर केर कतेको विद्यालयक विद्यार्थी अपन-अपन पोशाकहि मे घास पर बैसिकय ओ नाटक मंचन देखने छल। प्रभाव आर पर जे पड़ल होइक, लेकिन मिनाप विराटनगर केर दर्शक केँ मैथिली नाटकक वजन तेनाकय बुझेलक जे एतहु बनि गेल एकटा दोसर ‘विनाप’ अर्थात् ‘विराटनगर मैथिल नाट्यकला परिषद्’। रंगकर्मी राम भजन कामत, डोमी कामत सहित आरो रुचि लेनिहार कलाकार सब मिलिकय बना लेलक ई समूह आ आइ नेपाल मे मिनाप केँ टक्कर देमयवला अभिनय आ रंगमंचीय प्रस्तुति, तकनीक आदि सँ पूरे राष्ट्रकेँ गर्वान्वित करैत अछि विनाप। मिनाप केर स्तरक ऊँचाई नापबाक लेल प्रवीणक कलम मे मसि नहि अछि। मिनाप मैथिली भाषा केँ नाट्यविधा सँ विश्व परिवेश धरि स्थापित केलक अछि। देश-विदेश सबठाम मिनाप केर हरेक प्रस्तुतिकेँ प्रशंसा भेटलैक अछि। सैकड़ों मंचन – सैकड़ों सम्मान! मिनापकेँ विश्व भरिक नंबर-१ मैथिली नाट्य संस्थाक रूप मे जानल जाइत अछि।

नाटक - आब कोना चलब केर एक दृश्य - राष्ट्रीय नाटक महोत्सव नेपाल मे प्रदर्शित - लूटलक खूब वाहवाही
नाटक – आब कोना चलब केर एक दृश्य – राष्ट्रीय नाटक महोत्सव नेपाल मे प्रदर्शित – लूटलक खूब वाहवाही

पटना मे कार्यरत समूह अरिपन आर भंगिमा – एहि दुइ संस्थाक नाम इतिहास मे दर्ज अछि। कियो केकरहु सँ कम नहि। एक सँ बढिकय एक हस्ती-व्यक्तित्व लोकनि द्वारा संचालित ई दुनू संस्थाक प्रस्तुति – उच्चस्तरीय अभिनय – बेहतरीन मंच संयोजन आ साज-सज्जा सँ लैत बेस्ट एक्टर, एक्ट्रेस आ समस्त सम्मान विराटनगर मे हथियाबैत देखने रही। निस्सन्देह बहुत वर्ष बितियो गेला पर स्मृति मे पटना टंगले अछि। एक पूर्व रंगकर्मी जितेन्द्र झा जितू जे शायद अरिपन सँ आबद्ध छलाह आइ विराटनगर महेन्द्र मोरंग कैम्पस मे प्राध्यापक छथि, हुनकर अलावे अन्य संग संगतियो छूटना कतेको वर्ष बीत गेल। अन्दाजक भर मे ई कहि सकैत छी जे जनकपुरक मिनापक मेकर पटना हेबाक चाही। तथापि जनकपुर केर मेहनतिक चर्चा जतेक सुनैत वा देखैत छी, ततेक पटना लेल मौका नहि भेटैत अछि। पटना सँ रंगकर्मीकेँ एक बेर विराटनगर फेर बजाओल जाय, ताहि लेल भाइ कुणाल संग सम्पर्क मे एलहुँ। नाटकक नाम निर्धारित छल पारिजातहरण, लेकिन कूसंयोग कहू, मंचन नहि कैल जा सकल। कुणाल भाइ किछु एहनो जानकारी दोसर बेर करौलनि जे कि कहू हाल, जतेक कलाकार सब छलाह ओ सब छिटफूट भऽ गेल छथि। लेडिज आर्टिस्ट्स सबहक विवाह भऽ गेलनि, नवतुरिया मे किनको ततेक रुचि नहि छन्हि। जखनहि कहलक कक्का हौ, बुझि गेलियैक जे हँसुआ हेरेलक – यैक कहावत चरितार्थ होइत बुझायल।

minap drama2जमशेदपुरक लल्लन प्रसाद ठाकुर केँ हम कोना बिसरब! जीवनक पहिल रंगमंच छल ‘मिस्टर निलो काका’ आ ताहिमे हम बनल रही ‘ननकिरबा’। ओ नाटक स्व. ठाकुर केर लिखल आ सूपर-डूपर हिट – आइयो हमरा मस्तिष्क मे ओहिना विराजमान अछि। जमशेदपुर केर यात्रा पर मिथिला सांस्कृतिक परिषद् मे सभाक विषय जानि-बुझि रखने रही, जमशेदपुर (टाटा) केर मैथिली-मिथिला लेल योगदान। मानि लेल जाउ, कम सँ कम दर्जनों उपलब्धि मे एक सर्वोपरि नाट्यक्षेत्र मे जमशेदपुर एहेन इतिहास बनौने अछि जेकरा मैथिली कहियो नहि बिसैर सकैत अछि। वर्तमान लेकिन ओतहु बड खास नहि बुझायल। जखन कि कोलकाता एहि सब मामिला मे भारतक वर्तमान मे सर्वोच्च अछि – से बात करेन्सी बिल्डिंग केर सभागार मे गंगा बाबु संग भेटिते बुझा गेल छल। दर्शन भेल रिसरा मे, जतय नाटक मंचन कैल जा रहल छल। अभिनयक अनुपम नमूना देखय लेल ओतहि भेटल। मंच हलाँकि नाटकक नहि छल ओ, तथापि अभिनयक मामिला मे सबहक कान काटयवला कलाकार संग ओतहि दर्शन भेल। बुझाइत छल जे टेलिविजनक स्क्रीन मे फिल्मी कलाकार सबकेँ देखि रहल छी, मुदा यथार्थ छलैक जे ओ लाइव शो छल। बाद मे प्रिय राजीव रंजन मिश्र, प्रसिद्ध गजलकार द्वारा विस्तृत परिचय भेटल। ओ हमर आशंकाकेँ पुष्टि केलनि, कोलकाता रंगकर्म सबसँ बेसी पुष्ट एहि लेल अछि जे ओतुका कलाकार केँ रंगकर्म सँ सिल्वर स्क्रीनक यात्रा सहज भेल छन्हि। आइ कतेको रास धारावाहिक आ सिनेमा मे हिनका लोकनिक भूमिका रहैत अछि। कहि सकैत छी जे बालीवूड कोलकाताक मैथिली रंगमंच सँ कलाकार लेने बिना अधूरा अछि। मिथियात्रीक आ कोकिलमंच – ई दुइ नाम तँ सोझा कोलकाता सँ भेटबे कैल, हमरा बुझने आरो किछु छिटफूट हेबाक चाही। एकटा नाम सहरसा सँ सेहो काफी लब्धप्रतिष्ठित मे गानल जाइछ – पंचकोसी। दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, आदि मे सेहो रंगकर्मीक संगठन सब कार्यरत होयत, लेकिन नाम उपलब्ध नहि अछि। रंगमण्डप श्री प्रदीप बिहारी जी केर नेतृत्व मे बेगुसराय मे कार्यरत अछि जिनक प्रस्तुति २०१३ मे मिथिला विभूति पर्व समारोह, दिल्ली केर मंच पर देखनहियो रही।

mailorang3दिल्लीक यात्रा मे मैलोरंग केर प्रस्तुति सुप्रसिद्ध लेखक स्व. राजकमल केर चर्चित मैथिली कथाक कोलाज – मैथिल नारी चारि रंग देखबाक अवसर भेटल। ताहू सँ पूर्व फेसबुक सँ मैलोरंग, प्रकाश झा (निर्देशक), मुकेशजी, रौशनजी आदि कतेको जुड़ल व्यक्तित्व सब संग जुड़ल रही। हिनका लोकनिक गतिविधि पर सेहो पूरा नजरि रहैत छल। दिल्ली सँ मिथिलांगन सेहो एकटा सशक्त रंगकर्मीक समूह कार्यरत अछि। एक बेर नेपालक महामहिम राष्ट्रपतिक प्रमुख आतिथ्य मे मंचन कैल गेल नाटकक समाचार सुनि आरो हृदय गद्गद् भेल छल। मैथिली नाटकक साक्षात् जीवित भीष्म पितामह महेन्द्र मलंगियाक विशेष सान्निध्य आशीर्वाद सँ अभिभूत ई संस्था द्वारा भारतक राजधानी मे मैथिली नाटक सँ मिथिलाक झंडा बहुत ऊँच धरि फहराइत अछि। अभिनय उत्तम, मंचक संयोजन ततेक प्रभावित करऽवला हमरा नहि बुझायल, ओना हम देखबे केलहुँ एकटा प्रस्तुति, तैँ निर्णायक बात नहि बुझब एकरा। एहि बेर हालहि १ मई सँ ३ मई धरि मधुबनी मे हिनका लोकनि द्वारा ‘मिथिला रंग महोत्सव’ केर आयोजन कैल गेल छल। जाहि मे फेसबुक सँ आमंत्रण छल सबकेँ, औपचारिक आमंत्रण आन लेल नहियो तऽ कम सँ कम हिनका सबकेँ सदैव अपन पूर्ण सौहार्द्र सहयोग सँ पुष्ट केनिहार नेपाली मिथिलाक दिग्गज संस्था ‘मिनाप’ सहित किछु अन्य विशिष्ट व्यक्तित्व केँ नहि कैल जेबाक शिकायत आखिर भेटिये गेल। ई मनकेँ कतहु न कतहु मटोमाट कय दैछ जे सब किछु नीक होइत समय छोट मुदा बड पैघ गलती हमरा लोकनि कियैक करैत छी। आरो बहुत रास घोंघाउज-कटाउझ – कियो कहत जे ३ लाख अनुदान भेटलो पर व्यवस्था जीरो… कियो कहत जे हम भैर मधुबनी सहयोग लेल घूमल, झूठ आश्वासन टा भेटल, सहयोग कियो नहि देलक… आदि।

प्रकाशजी हमरो जानकारी करौने छलाह जे भाइ कलाकार सबकेँ रहबाक इन्तजाम अहाँ अपना स्तर सँ देखि सहयोग करू… आब हम मधुबनी मे अपन कोन स्तर भिड़ाबी, तैयो पवन नारायण जे गायक संग एक सक्षम समृद्ध अभियानी सेहो छथि, हमरा स्मृति मे वैह एला जिनका हम कहि सकैत रही जे अहाँ अपना ढंग सँ कलाकार सबकेँ ठहरेबाक इन्तजाम देखू… लेकिन प्रकाशजी कहलनि जे पवनजी हुनको सहयोगक वास्ते वचन देने छथिन। एवम् प्रकारेन आयोजनकर्ता कोनो आयोजन कतेक कष्ट आ संघर्ष मे करैत छैक से करनिहारे बुझैत छैक, हम मानैत छी।

मुदा शिष्टाचार, संस्कार आ सौहार्द्रक व्यवहार मे कतहु कमी अबैत अछि तऽ एहि पर मैलोरंग आ प्रकाशजी केँ सोचय पड़तनि। हमर विनती बुझैथ वा आदेश – लेकिन एक अभियानीक रूप मे मैथिली-मिथिला बीच कोनो तरहक विभेद दुइ देशक नाम पर होयत तऽ ई अविस्मरणीय रेखा खींचत, ई मिथिला लेल कदापि उचित नहि होयत। एहेन त्रुटि लेल पश्चाताप करबाक अवसर सेहो नहि भेटैत अछि, कारण आमंत्रण करय मे खर्च होयत से सोचब आब बन्द करू। मैथिली-मिथिला लेल काज सबहक सझिया थिकैक। एतेक जिम्मेवारी आमंत्रित संस्थाक सेहो बनैत छैक जे ओ अपन स्रोत सँ ओतय पहुँचत। मिनाप तऽ अहाँक (मैलोरंगक) खास सहयोगी संस्था, दिल्ली धरि अपन पाइ खर्च कय पहुँचल आ नाटक प्रदर्शन केलक, लोक मे अहाँक आयोजनक सफलताक सराहना भेल, प्रतिष्ठा बढल। तखन बगल मे मधुबनी, अहाँ कोन नैतिकता पर मिनापकेँ आमंत्रित करय सँ चूकलहुँ? कि मिथिला रंग महोत्सव मे एकटा प्रस्तुति जनकपुरक मिनापक नहि भऽ सकैत छल? नाटक प्रदर्शन लेल नहि स्थान छल, तऽ अहाँ एकटा आमंत्रित अतिथिक रूप मे मिनापक प्रतिनिधित्व लय सकैत छलहुँ।

खैर! एहेन त्रुटि भविष्य मे नहि दोहरायल जाय ई ध्यान राखब जरुरी अछि। आलोचक कोनो गलत नहि कहलक जे मिनाप केर प्रदर्शन आ पटनाक प्रदर्शन सँ मैलोरंग केँ अपन प्रदर्शन कमजोर पड़बाक डरक कारण एहेन त्रुटि जानि-बुझिकय कैल गेल। प्रदर्शन मे सब फर्स्ट डिविजन सँ पास करत ई जरुरी नहि छैक। कियो फेल सेहो भऽ सकैत अछि, तैँ मैथिलीक सेवा नहि करत, ई नाजायज हेतैक। सहयोगक सीमा आरो विस्तृत हो, ई हमहुँ मानैत छी। भविष्य मे आरो मजबूत संङोर बनय, यैह कामनाक संग एहि विशेष संपादकीय लेख केँ विराम दैत छी। जय मैथिली!! जय मिथिला!!