४ मार्च को मिथिला २ देश में विभाजित हुआ – सुगौली संधि दिवस पर उपवास और विचार गोष्ठी

हैदराबाद, मार्च ७, २०१८. मैथिली जिन्दाबाद!!

मिथिला सांस्कृतिक परिषद और मिथिला मंथन द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन

हैदराबाद की दो संस्थाओं, मिथिला सांस्कृतिक परिषद एवं मिथिला मंथन के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 4 मार्च, 2018 को सोमाजीगुडा स्थित पी.सी.आर.आइ. के प्रशिक्षण हॉल में सायं 4 बजे से एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें 4 मार्च, 1816 के प्रसिद्ध ‘सुगौली संधि’ द्वारा मिथिला क्षेत्र के विभाजन की वेदना के पृष्ठभूमि में ‘मिथिला के लिए अनिवासी मैथिलों की भूमिका’ विषय पर विभिन्न वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए ।

गोसाउनि गीत के समवेतगान एवं दीप प्रज्ज्वलन द्वारा औपचारिक उद्घाटन के पश्चात्‌ श्री बी. के. कर्णा ने गोष्ठी के विषय पर प्रकाश डालते हुए उपस्थित सदस्यों का अभिनंदन किया । विनय कुमार झा ने अपने उद्बोधन मे विकास प्रक्रिया को जटिल सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय कारकों पर आधारित रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए अनिवासी मैथिलों को अपनी-अपनी विशेषज्ञता का लाभ व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर अपने समाज तक हस्तांतरित करने की आवश्यकता पर जोर दिया । साथ ही अनिवासी मैथिलों के बीच बढ़ती जातीयता पर प्रहार करते हुए कहा कि हम सबमे समाज को सम्मान देने की भावना होनी चाहिए ना कि समाज से सम्मान पाने की । हम स्वयं अपने लिए सम्मान का मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते क्योंकि यह काम समाज का है । जब तक हम अपने जातीय कवच उतारकर वृहत्तर समाज के साथ समरस होना नहीं सीखेंगे तब तक सामाजिक विकास की बातें बेमानी ही रहेंगी ।

श्री संयोग ठाकुर ने मिथिला में कृषि क्रांति की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र के किसानों को आधुनिक विधि से कृषि कार्य करने के लिए आलस्य, अकर्मण्यता एवं निराशावादी विचारों का त्याग करना होगा । श्री विकास वत्सनाभ ने मिथिला क्षेत्र के छात्रों के लिए कैरियर काउंसिलिंग की आवश्यकता पर जोर देते हुए लोगों से निवेदन किया कि मिथिला क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात करने वाले ‘मिथिला स्टूडेंट यूनियन’ को सभी प्रकार से मदद करें ।

परिषद के महासचिव शशिकांत मिश्र तथा कार्यकारी अध्यक्ष श्री अनिल कुमार झा ने भी अनिवासी मैथिलों से मिथिला के लोगों को उद्योगोन्मुख बनाने के लिए यथा सम्भव प्रयास करने का आह्वान किया । सत्येंद्र नाथ झा ‘सत्तन जी’ ने अनिवासी मैथिल संस्थाओं को एकजुट होकर मैथिल संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया ।

श्री रमन झा ने जैविक खेती के लाभों का जिक्र करते हुए यह संकल्प व्यक्त किया कि वे मिथिला क्षेत्र में जैविक खेती के विकास के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगे । श्री गौरव कर्ण, श्री नितेश रंजन, रंजन मंडल, दीपेंद्र लाल दास आदि वक्ताओं ने इस प्रकार की गोष्ठियों के आयोजन के माध्यम से सामाजिक कल्याण के प्रयासों की सराहना की । श्री विंदु लाल ने अपने सम्बोधन मे मिथिला क्षेत्र की चरमराती शिक्षा व्यवस्था की ओर इशारा करते हुए अनिवासी मैथिलों से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता मे सुधार लाने के लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया ।

श्री अजय कुमार दास ने गोष्ठी के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आयोजन की सफलता की कामना की । गोष्ठी के आयोजक श्री बी.के कर्णा ने अपने पावर प्वाइंट प्रस्तुति मे इस बात के लिए निराशा व्यक्त की कि एक गौरवशाली इतिहास से परिपूर्ण मिथिला राज्य आज वर्त्तमान में एक पूर्ण क्षेत्र के रूप में भी सम्मानित नहीं है जिसके लिए उन्होंने उचित नेतृत्व का अभाव, उद्यमिता के प्रति मैथिलों की उदासीनता, नवीन विचारों के प्रति अनुत्साह आदि को प्रमुख कारक बताते हुए सभी मैथिलों का आह्वान किया कि वे इस दिशा में आगे बढ़ें और यथा सम्भव प्रयत्नशील हों । इस सम्बंध में उन्होंने मिथिला मंथन के तहत स्वयं के द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों की जानकारी भी दी । इसके साथ ही उन्होंने मिथिला क्षेत्र में उद्योग, पर्यटन आदि से जुड़े कई मुद्दों की चर्चा करते हुए मिथिला क्षेत्र के विकास की असीमित सम्भावनाओं के प्रति उपस्थित श्रोताओं का ध्यानाकर्षण किया ।

गोष्ठी के अंत में विनय कुमार झा ने वक्ताओं के विचारों का सारांश प्रस्तुत करते हुए कहा कि भू-कालानुक्रमिक दृष्टि से मिथिला का भू-भाग अर्वाचीन होते हुए भी यह सांस्कृतिक तथा शास्त्रीय दृष्टिकोण से प्राचीनतम है । हमे प्राचीनता और नवीनता के इस अद्भुत समागम की अस्मिता की रक्षा करने के लिए एकजुट एवं संकल्पबद्ध होकर व्यक्तिगत तथा सामूहिक, दोनो स्तरों पर कार्य करना होगा । सभा के अंत में श्री बी. के. कर्णा ने धन्यवाद ज्ञापन किया । सभा के अंत में सदस्यों ने पारम्परिक मैथिल भोजन दही-चूरा-चीनी- अँचार के सहभोज का आनंद लिया ।