नारी-चर्चा
जहिया अपना सब बचपन मे विभिन्न प्राथमिक कक्षाक पाठ्य-पुस्तकक सामग्री सब पढैत रही त कोनो-कोनो बात हृदयक गहिंराई धरि छूबि जाएत छल। ई छूबाक काज दुइ कारण सँ भेल जेना हम सोचैत छी। पहिल, ओ पाठ्य-समाग्रीक मर्म हृदयस्पर्शी रहल छल। दोसर, ओ पढेनिहार शिक्षक केर शैली सेहो अत्यन्त सहज आ बच्चा-मन केँ सेहो रमणगर लगैत छल। आइ एकटा विषय मोन पड़ि गेल अछि कक्षा ९-१० केर संस्कृत मे पढायल गेल एक श्लोक जे पति-पत्नीक बीच सम्बन्ध पर प्रकाश दैत छल। मोन पारू – संतुष्टो भार्यया भर्ता….!
बाद मे बहुतो रास विचारक केर दृष्टिकोण आ नारी-चर्चा हम पढलहुँ, जाहि मे चाणक्य द्वारा नारी-चरित्रक व्याख्या हमरा बहुत रोचक आ सटीक सेहो लागल। मुदा चाणक्य जहिना बहुचर्चित विचारक छथि तहिना विरोधाभासी कतेको बात, हास्य-परिहास सँ परिपूर्ण कतेक बात – ई सब भेटल हमरा आ यदि कियो चाणक्य पर सेहो पुरखाही मानसिकताक बात कहि नारी अधिकार पर सीमा लगेबाक बात कहैथ त अतिश्योक्ति नहि होयत। जेना तुलसीदासजी द्वारा उद्धृत एक पंक्ति ‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी – सकल ताड़ना के अधिकारी’ केर बहुचर्चा सुनैत छी।
पिछला दिन एकटा आर्टिकल नवभारत टाइम्स मे पढने रही – संसारक पहिल विधान निर्माण कयनिहार ‘मनु महाराज’ केर मनुस्मृति मे नारी-चर्चाक सम्बन्ध मे कुल ७ गो श्लोकक व्याख्या देखलहुँ। ओकरा एतय राखि रहल छी। मनु महाराज अपन ग्रंथ मनुस्मृति मे नारीक विषय मे जे विचार रखलनि अछि, ई अपने सब मनुस्मृति ३/५५-६२ मे पढि सकैत छी —
पितृभिभ्रररतरिभिश्चैताः पतिर्भिदेवरैस्तथा॥
पूज्या भूषयीतव्याश्च बहूकल्यांमीप्सुभि॥३-५५॥
पिता, भाइ, पति, देवर केँ चाही जे कि क्रमशः अपन कन्या, बहिन, स्त्री और भाभी आदि स्त्रिगण केँ सदिखन यथायोग्य मधुर भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण सँ प्रसन्न राखय। जेकरा कल्याणक इच्छा हो ओ स्त्रिगण केँ कखनहु क्लेश नहि दियौक।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्तेरमन्ते तत्र देवताः॥
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:॥३-५६॥
जाहि कुल मे नारी समाजक सत्कार होएत छैक, ओहि कुल मे दिव्य गुण, दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होएत छैक; आर जाहि कुल मे स्त्रिगणक सत्कार नहि होएछ, ओतय ई बुझू जे ओतुका समस्त क्रिया निष्फल रहि जाएत छैक।
ई प्रश्न कयल जा सकैत छैक जे केवल पत्नीक सम्मान कयला सँ दिव्य गुण, दिव्य भोग, दिव्य संतान – ई सब कोना भऽ सकैत छैक। त एकर जबाब यैह छैक जे जँ पति आ पत्नी एक दोसर सँ प्रसन्न युक्त आचरण करत त दुनू केँ तनाव कखनहु नहि हेतैक। तखन पति-पत्नी आपस मे नीक-नीक विचार मोन मे आनि सकत आर नीक कर्म सभक दिशा मे तत्परतापूर्वक लागल रहत। एहि तरहें एहेन पति-पत्नी सँ उत्पन्न संतान गर्भ सँ लैत जन्मोपरान्त एहि धरातल पर व्यवहारिक जीवन मे निश्चित नीक संस्कार सीखत। एहेन सुरम्य वातावरण मे धन, ऐश्वर्य, शान्ति – सदिखन विचरण करबे करत।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशुतत्कुलम॥
न शोचन्ति तू यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ॥३-५७॥
जाहि कुल मे स्त्रिगण अपन-अपन पुरुष सँ वेश्यागमन, अत्याचार, व्यभिचार आदि सँ शोकातुर रहैत अछि ओ कुल शीघ्र नाश केँ प्राप्त भऽ जाएत अछि, आर जाहि कुल मे स्त्रिगण पुरुष लोकनिक उत्तम आचरण सँ प्रसन्न रहैत अछि ओ कुल सर्वदा बढ़ैत रहैत अछि।
जामयो यानि गेहानीशपन्त्यप्रतिपुजिताः॥
तानीकृत्याहतानीव विनश्यन्ति समंततः॥३-५८॥
जाहि कुल ओ घर मे नारी सत्कार नहि प्राप्त कय जँ गृहस्थ केँ शाप दैत अछि, ओ कुल आर गृहस्थ केँ मानू जेना विष दैत एक्के संग बहुतो नाश कय दैछ, चारूकात सँ ओ नष्ट-भ्रष्ट भऽ जाएत अछि।
तसमा देता सदा पूज्या भूषणा च्छादनाशनैः॥
भूतिका मैनररैर्नित्यं सत्कारेशुत्सवेशु च॥३-५९॥
यैह कारण सँ ऐश्वर्यक इच्छा रखनिहार पुरुष लेल यैह योग्य अछि जे एहि स्त्रिगण केँ समय-समय आर उत्सवक समय विशेषकय भूषण, वस्त्र, खानपान आदि सँ सदा सत्कारयुक्त आ प्रसन्न राखय।
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च॥
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वे ध्रुवम्॥३-६०॥
जाहि कुल मे पत्नी सँ प्रसन्न पति और पति सँ सदा प्रसन्न पत्नी रहैत अछि, ताहि कुल मे निश्चित कल्याण होएते टा अछि, और दुनू परस्पर सदा अप्रसन्न रहय तऽ ओहि कुल मे नित्य कलह वास करिते टा अछि।
यदि हि स्त्री रोचेतन् पुमांसं न प्रमोदयेत्॥
अप्रमोदातपुन: पुंस: प्रजन्म न प्रवर्तते॥३-६१॥
जँ स्त्री पुरुष पर रुचि नहि राखय, पुरुष केँ प्रहर्षित नहि करय, अप्रसन्नता सँ पुरुष केर शरीर मे काम उत्पत्ति नहि हेबाक कारणे सन्तान नहि हुअय त ओ पक्का दुष्ट होएत अछि।
स्त्रियाँ तू रोचमानायाम सर्व तद्रोचते कुलम॥
तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते॥३-६२॥
जे पुरुष स्त्री केँ प्रसन्न नहि करैत अछि त ओहि स्त्री केर अप्रसन्न रहला सँ सम्पूर्ण कुल अप्रसन्न, शोकातुर रहैत छैक। जखन पुरुष सँ स्त्री प्रसन्न रहैत छैक, त समस्त कुल आनन्द-आनन्द रहैत छैक।
ब्लागर केर आगूक विचार (मैथिली मे)
उपरोक्त बात त भेल मनुस्मृतिक, एकटा एक्ट केर, लेकिन फैक्ट कि छैक? आइ भऽ कि रहलैक अछि? लगभग हर परिवार मे स्त्री केँ सेक्स केर निगाह सँ, ओकरा दुःखी राखिकय, ओकर बेहद उत्पीड़न कय केँ, डांट-फटकार कय केँ, बुद्धिहीन बुझिकय, ओकरा हेय दृष्टिकोण सँ प्राय: राखल जाएत छैक। कि हरेक परिवार मे कलह सबकेँ नहि देखाएछ?
किछु परिवार हम सब नीक देख सकैत छी। पति जी अपन पत्नीक नामक संग ‘जी” केर उपयोग करैत छथि। अंबानी जेहेन व्यक्ति अपन पत्नीजी केर जन्मदिवस पर २५० करोड़ केर हवाई जहाज़ उपहार मे दय दैत छथि। लेकिन ई सब बस गिनती करय योग्य उदाहरणक रूप मे रहि गेल अछि। नारी महान कियैक अछि? पति जे अथक परिश्रम कय केँ धनोपार्जन करैछ तेकरा नारी उचित ढंग सँ सम्हारैत आ घर मे लगबैत अछि। नारी हरेक बेर सन्तान केँ जन्म दैत एकटा असहनीय पीड़ा झेलैत अछि। एक तरहें ओकर हरेक बेर पुनर्जन्म होएत छैक, ओकरा एकटा नव जीवन भेटैत छैक।
आब सभक पारिवारिक जीवन कोना सुखमय हो? कोनो दबाइये कियैक नहि हो, जाबत धरि ओकर उपयोग [अमल] नहि हेतैक, ताबत धरि ओ दबाइ कोना अपन काज [असर] कय सकैछ! ताहि लेल विचार कतबो नीक हो, जँ ओकर उपयोग कोनो परिवार नहि करत, त ओहि परिवारक कल्याण भले केना हेतैक? सबसँ पहिने त पुरुष नशाक उपयोग कदापि नहि करय, कखनहु क्रोध नहि करय, एक दोसर सँ परस्पर प्रीति राखय, दुनू एक दोसर सँ कोनो टा बात हर्गिज नहि नुकाबय। अपन मोन मे कोनो टा विचार नीक या बेजा – जे किछु आबय से अपन ”प्रिय” सँ लेशो मात्र कखनहु नहि नुकाबय। एहि सँ एक-दोसराक प्रति आपस मे विश्वास जरूर बढतैक। .
एहि विषय पर सहमति-असहमति, आलोचना आदिक स्वागत करय चाहब, एहि आशा मे….. (लेखकः राज, हैदराबाद)
हरिः हरः!!