विचार
– वन्दना चौधरी
नारी आ बेड़ी (एक रहस्य)
आदिकाल सँ मानव समाज मे विशेष कय मैथिल समाज मे स्त्री केँ वस्त्र आ आभूषण पर बहुतो टीका-टिप्पणी कएल जाएत रहल अछि। सभक अपन-अपन विचार आर एहि विन्दुपर अलग-अलग धारणा देखल जाएछ। एहि विषय मे अपन विचार जे छोटे अवस्था सँ सोचैत-गुनैत बनल से एहि जगह राखबाक मोन भेल, खासकय तखन जखन मधुश्रावणी मे स्त्रीक नाजुक शरीर पर टेमी सँ दागल जेबाक चर्चा एक बेर फेर उठल देखि रहल छी।
कन्याक जन्म होएत देरी माय-बाप-परिजन सँ समाजिक नियम-कानून सब पुरुष सन्तान सँ अलग व्यवहार करैत अछि। जहिना लिंग मे भेद, तहिना व्यवहार आ भाव मे भेद! एहि बर्ताव केँ कियो-कियो नकारात्मक वर्णन सेहो करैत अछि, लेकिन हमरा एहि सभक मात्र सकारात्मक पक्ष देखाएत अछि। अपन मिथिला मे बेटीक जन्म भेला पर एहि फरक व्यवहारक स्वरूप देखू आ ई चिन्तन करू जे आखिर एकर सकारात्मक पक्ष कि भऽ सकैत छैक।
बेटीक जन्म देनिहाइर माय केँ मरीचक बुकनी और करुक तेल मुंह मे खुआकय घोंटायल जाएत छैक, बेटाक जन्म देनिहाइर माय केँ आद-गुड़ केर पाक बनाकय खुआयल जाएत छैक। हमर माँ एक दिन बुझबैत कहली जे बेटीक जन्म देलापर बड़-बुजुर्ग आय-माय-दाय लोकनि ई व्यवहार करैत छली – भले ओतेक करू काली-मिर्च नाम सँ प्रसिद्ध मरीच आ करू तेल पीला सँ हम सब सरैक कय परेशान भऽ जाय, मुदा अपना ओतुका व्यवहार एहने छैक।
बेटी जन्म लेलाक बाद जखन पहिल बेेर उनटैत अछि तहिया ओकर पीठ पर सिलौठ राखल जाएत छैक। बेटा जँ पहिल बेर उनटैत अछि त ओकर पीठ पर रामायण (पोथी) राखल जाएत छैक। हमर छोटकी बेटी देवांशीक संग सासु केँ यैह व्यवहार करैत देखलियैन त पूछने रहियैन जे ई कियैक कएल जाएत छैक। ओ कहली बेटी छियैक, उधियेतै नहि, अपन दायित्व तर मे दाबल रहतैक। यैह कारण सँ भारी सिलौठ पीठ पर राखल जाएत छैक। बेटा उल्टल त मिथिला मे पोथी – रामायण आदि देल जाएछ – ओकरा दुनिया सँ निपटबाक आ बाहरी मर्यादा पालन करबाक जिम्मेवारी रहैत छैक। आब सोचैत छी जे बेटी सब सेहो बाहरी दुनिया सम्हारि लैत छैक। तखन ओकरो सब केँ पोथी देल जाएक त कोनो बेजा नहि हेतैक। पहिनुका संसार – पहिनुका व्यवहार! आब किछु त बदलाव एलैक, व्यवहारो बदलबाक चाही।
बेटीक नाक-कान ओकर बहुत कमे वयस मे छेदायल जाएत छैक। बेटाक कर्णभेद करबाक सेहो नियम भेटैत अछि, मुन्डन अथवा उपनयन मे। लेकिन बेटी जेकाँ नाक, कान सब छेदायब समान बेटाक मात्र कान मे एक ठाम छेदन क्रिया होएत छैक। कहबाक तात्पर्य ई अछि जे बेटी केँ आगू बहुत रास कष्टक सामना करबाक छैक, ताहि हेतु समाजिक व्यवहार मे ओकरा छोटे उमेर सँ दर्द सहबाक प्रक्रिया सँ निकालल जाएत रहैत छैक। प्रकृतिक बनौट मुताबिक पुरुष पर बाहरी शारीरिक क्रियाकलापक भार रहबाक कारण ओकरा बेसी छूट भेटैत छैक। मुदा बेटी एक माय केर भूमिका करत, एक दादी बनिकय पूरे परिजन केँ अपन प्रभाव मे राखत आर समूचा कुल-मर्यादाक जननी बनिकय घर केँ सम्हारत। एहि दुइ महत्वपूर्ण कार्य केँ एक्के स्थान पर एक्के समान बुझिकय स्त्री आ पुरुष बीच तूलना करब विवेकपूर्ण नहि कहा सकैत अछि। जीवनक दुइ पहिया मे स्त्री आ पुरुष दुनू अपन-अपन क्षेत्र मे विशिष्ट अछि, रहबाको चाही।
हाथ मे चूड़ी-लहठी, पैर मे पायल-बिछिया, बाँहि पर बाजुबन्द, गर्दैन मे हँसुली, डाँर्ह मे डरकस, विवाह पश्चात् मांग मे मंगटिक्क, नाक मे नथुनियाँ, कान मे कनबाली – ई सब मात्र आभूषण केवल शृंगार टा लेल नहि बल्कि अन्तर्वेदनाक भाव केँ बुझय योग्य मानसिकता ग्रहण करबाक लेल जिम्मेवारीक बोध सेहो थिकैक। नारी केँ पुरुषक तूलना मे अत्यधिक आन्तरिक दर्द आ वेदना सहय पड़ैत छैक। कहबियो छैक जे बेटीक पैर मे पायल नहि बल्कि बेड़ी यानि बंधन केर काज करैत अछि। ई सब आभूषण नारीक मर्यादाक प्रतीक सेहो मानल जाएत अछि। ई समस्त जिम्मेदारीक बोध करैत-करैत नारी नव सृष्टिक रचना लेल तैयार भऽ जाएत अछि। गर्भ धारण करब आ प्रसव पीड़ा भोगब – ओकर नियति थिकैक। मनुष्यहि नहि बल्कि चराचर जगत केर समस्त जीव जाहि मे नर आ मादा केर परिकल्पना प्रकृति द्वारा भेल अछि ताहि मे मादाक जिम्मेदारी सृष्टि रचना प्रति बेसी गंभीर छैक, ई सब कियो जनैत छी।
हाल चर्चा मे रहल बात मधुश्रावणीक विशिष्ट पाबनि मे नवकनियाँ सभक नाजुक शरीर पर टेमी सँ दगबाक एक विचित्र विधान पर पहूचैत छी। कतेको लोक एहि विन्दु पर जिज्ञासा रखैत छथि, आखिर ई टेमी देबाक विधान कि थिक। एकर कारण कि? एकर कारण हम जतेक बुझलहुँ-गुनलहुँ ओ ई छैक जे विवाहक बाद नारी माता बनबाक अधिकारी बनि जाएत छथि, माता बनि ओ जे नव सृष्टि एहि संसार मे अनती ताहि समय हुनका एक जीवन समाप्त होइवला असह्य वेदना – प्रसव पीड़ा होएत छन्हि, टेमी सँ पकनाय सेहो एहने मीठ दर्द दैत छैक। एक दिशि प्रसव पीड़ा त दोसर दिशि नव शिशुक आगमनक मौन प्रसन्नता, तहिना एक दिशि टेमी सँ पकबाक पीड़ा आ दोसर दिशि अपन पति संग नव-अंकुरित प्रेमक प्रस्फूटन यानि नेहक फूल फूलेबाक आत्मिक प्रसन्नता, नारीक पूर्णता प्राप्ति मे कतेक महत्वपूर्ण भूमिका खेला रहल अछि ई स्वत: स्पष्ट छैक।
उपरोक्त विभिन्न उपमाक गहिंर अध्ययन सँ हमरा लोकनि ई स्पष्ट बुझी जे प्रकृतिक नियम सर्वोपरि होएछ आर मिथिला समाज मे विहित विध-विधान एहि प्रकृतिक संग-संग अपना केँ समायोजित कएने अछि। द्विरागमनक समय कनियाँ केर अंगना प्रवेश सँ पहिने किछु कठोर परीक्षा लेल जाएछ। लोर्ही धिपाकय कल्ला सेकल जाएत छैक, चंगेराक नाप सँ डेग बढबैत कोबर घर धरि आनल जाएत छैक, कोबर मे बामे हाथ सँ माछ काटू, हरैद फोड़ू आ कोठी जे मूनल अछि तेकरा फोड़ू – इत्यादि घर-गृहस्थी सँ जुड़ल विभिन्न बातक शिक्षा भेटयवला विध-व्यवहार करबाक प्रचलन अछि मिथिला समाज मे। आब, एहि नियम सब मे परिवर्तन सेहो देखल जा रहल अछि। सासु नवकनियाँ प्रति दुलार प्रकट करबाक लेल फोड़ले हरैद, कटले माछ, खुजले मुंहक कोठी आदि रखैत छथि।
कतेक लोक एकरा नारी-प्रताड़णा सेहो कहिकय तर्क-कूतर्क करैत रहैत छथि। हमर ई मान्यता अछि जे जखन ईश्वर स्वयं एहेन नियम बना देने छथिन जे नव सृष्टिक मुख्य कारक तत्त्व नारिये हेती तखन हम मानव एहि विमर्श मे फँसबाक काज कय केवल तुच्छता टा करैत छी। नारीक मातृत्व-शक्तिक कारण जगदम्बा, सीता, जननी कहल जाएत छन्हि, एहि सब कारण सँ नारीक स्थान पुरुष केर अपेक्षा बहुते ऊपर छन्हि। ई बात स्वयं भगवानो स्वीकार कएने छथि। हमरा लोकनिक शास्त्र-पुराण मे सेहो एहि तरहक कतेको रास चर्चा मे शक्तिक प्रधानता स्पष्ट भेल अछि। शक्ति बिना शिव केँ शव कहल गेल अछि। हमरा लोकनि एहि तरहें स्त्री-पुरुष बीच समन्वय स्थापित करैत अपन जीवन मे नारीशक्तिक स्थान दैत सफल बनी।