विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी

ई एकटा भ्रान्तिक अवस्था थिक जे मैथिली भाषा कोनो खास जाति या वर्ण केर भाषा बनिकय रहि गेल अछि। यथार्थतः मैथिली नहिये प्राथमिक शिक्षा मे, नहिये राजकाजक भाषा मे, नहिये सामाजिक प्रचलन यथा आम बैसार केर माइन्युटिंग आदि मे लेखनी करबाक समयक भाषा मे जीबित अछि; तखन ई कतय जीबित अछि त ओ मात्र साहित्यक विविध स्वरूप मे, कलाक विविध स्वरूप मे आ बोलचाल मे – एहि तिनू ठाम मैथिली भाषा समस्त मिथिलावासीक भाषाक रूप मे जिबैत अछि। तैयो, कमजोर आत्मशक्ति आ आत्मज्ञानक कारणे हम-अहाँ भटैक रहल छी।
जहाँ तक रहलैक ब्राह्मण-कायस्थक भाषा – हम गारंटीक संग कहि सकैत छी जे एहि वर्ग मे शिक्षा आ संस्कार केर विकास क्रम अति प्राचीन समय सँ बेसी रहबाक कारणे बोल-वचन मे मधुरता, वैयाकरणिक शुद्धता, प्रस्तुतिक प्रखरता, स्पष्टता आदिक कारणे बेसी आकर्षक आ मन-लोभाओन रहैत छैक। ओत्तहि एहि जाति-समुदायक अनपढ-गँवार परिवारक भाषा मे बहुत फरक छैक। क्षेत्रीयता गुणे सेहो मैथिलीक बोली मे बड पैघ विविधता छैक। एकरा भाषाविद् लोकनि नीक सँ वर्णन करैत छथि। अतः विविधता केँ तोड़ि-मरोड़ि भाषा पर कोनो जातिक एकाधिकार प्रदान करब मूढता मात्र थिक। ई काज समाज केँ जातिक आधार मे विखंडित कय अपन स्वार्थक गोटी लाल कएनिहार राजनीतिकर्मी बेसी करैत अछि। एहि सँ नहिये भाषाक कल्याण भेलैक, नहिये समाजक कल्याण भेलैक।
एखन डा. राजेन्द्र विमल समान दिग्गज स्रष्टा मैथिली केँ ‘काबा भाषा’ – यानि कायस्थ-ब्राह्मणक भाषाक रूप मे सेहो किछु उद्धृत करैत कहलनि जे मैथिलीक शब्दकोश मे आम जनसमुदायक मैथिली बोली केँ समेटैत ओकरो सभक प्रविष्टि होयबाक चाही, ओ ईहो कहलैन जे एहि दिशा मे प्रयास हेबाक चाही – हम कनेकाल लेल छगुनता मे पड़ि गेल छी। आखिर के करतैक ई प्रयास? विद्वान् कोशकार – मैथिली भाषा लेल बनल राजकीय अकादमी – सामाजिक संघ-संस्था – के? हमरा बुझने मैथिली शब्दकोश मे त सम्पूर्ण शब्द केर समावेश छैक। ओतय जाति आधारित शब्द-संकलन हमरा नहि अभरल अछि। हम दुइ गोट शब्दकोश – एकटा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित आ दोसर कल्याणी फाउन्डेशनक कल्याणी कोश पढलहुँ, पढि रहल छी। कम सँ कम विद्वान् विशेषज्ञ सब केँ एहि तरहक बुझाइ राखय सँ निश्चित परहेज करक चाही जे मैथिली कोनो हिसाबे कोनो जाति-वर्ग केर आरक्षित भाषा थिक।
शिक्षाक प्रसार जाहि-जाहि जाति आ समाज मे भेल, ओ भाषाक उत्कृष्ट रूप प्रयोग करबे करता। स्वयं राधा मंडल उद्घोषिका केर भाषा आम मंडल समुदाय केर बोली सँ काफी उत्कृष्ट आ स्पष्ट अछि। ई हिनकर शिक्षा, संस्कार आ व्यवहार केर कारण भेल अछि, नहि कि जातीय ठप्पाक कारण। ई ‘का-बा’ सँ इतर रहितो कोनो ‘का-बा’ केर प्रस्तुति सँ ऊपर छथि। एहेन लाखों उदाहरण अछि। मैथिली भाषा मे शोध सँ लैत मंचीय प्रस्तुति मे डा. राम अवतार यादव केर जोड़ा हमरा कतहु नहि भेटैत अछि। त्रिभुवन विश्वविद्यालय मे मैथिलीक पूर्व विभागाध्यक्ष आर अनेक महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाक सम्पादन मे लागल प्रा. परमेश्वर कापड़ि सँ बेसी समर्पित हमरा कोनो ‘का-बा’ नाहि भेटैत अछि। मैथिली भाषा-साहित्य संग-संग कला ओ रंगकर्म आ लेखनी मे राम भरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ सँ ऊपर कतहु कोनो ‘का-बा’ केर दर्शन कियो करबैथ हमरो। हँ, तखन त ‘का-बा’ केर शिक्षा आ संस्कार समाजक ‘ढा-बा’ वर्ग सँ ऊपर रहतैक त निश्चिते अग्रता हासिल करबे करत। हम सब समग्र मे ई सन्देश दैत चली आ समाज केँ पिछड़ापण केँ कोना सुधारि सकब ताहि पर किछु कर्मठ योगदान दैत चली। ई जरुरी छैक।
राधाजी केँ एहि तरहक अप्रासंगिक आ ब्यर्थक प्रश्न सँ निजात भेटैन, हमर शुभकामना!!
मैथिली भाषाक इतिहास, विकासक्रम, साहित्य – एहि मे जातिक नाम उल्लेख कएनिहार शोधकर्ताक मत पूरा पढबैक संजय मिश्र जी तखनहि किछु कहि सकब….
मुदा राज्य द्वारा भारत मे ठाढ एकटा उचित निकाय जे भाषा सभक अध्ययन करैत छैक आर कोनो बातक जानकारी समुचित सन्दर्भ एवम् साक्ष्यक आधार पर रखैत छैक – दि लैंग्वेज इन्फोर्मेशन सर्विसेज – आर ताहि अन्तर्गत जे भारत केर अत्यन्त प्रमुख भाषा अध्ययन संस्थान छैक – सेन्ट्रल इन्स्टीच्युट अफ इंडियन लैंग्वेजेस – तेकर वेबसाइट पर मैथिलीक विषय मे बहुत रास समुचित जानकारी ग्रहण करैत छी हमरा लोकनि।
http://www.ciil-lisindia.net/Maithili/Maith_lite.html
यथाभावी लेखक आ शोध पर भरोस करब कम अछि हमरा।
हरिः हरः!!