मैथिली अकादमी पटनाक खस्ता हाल पर सरोकारवालाक ध्यान कियैक नहि जा रहल अछि?

विशेष संपादकीय

सन्दर्भः बिहार राज्य द्वारा मैथिलीक अनदेखी, स्वयं अपनो लोक द्वारा मैथिली प्रति सौतेला व्यवहार – प्रसंग ‘मैथिली अकादमी’, पटनाक खस्ता हाल

मैथिली अकादमीक खस्ता हाल पर सरोकारवालाक ध्यान कियैक नहि जा रहल अछि?

एक दिशि जतय एक सँ बढिकय एक मैथिलीभाषी दिग्गज लोकनि सोशल मीडया मार्फत अपन-अपन कविता, रचना आ विभिन्न गतिविधिक मार्फत मातृभाषा मैथिलीक पृष्ठपोषण करैत देखाएत छथि, ओत्तहि दोसर दिशि गूढ आ गंभीर राजकीय संरचना केर खस्ता हाल पर लोकक चुप्पी चिन्ताक विषय बुझा रहल अछि। एहने एक अति महत्वपूर्ण संरचना – संंयंत्र “मैथिली अकादमी” केर खस्ता हाल पर किछु चिन्ता व्यक्त करबाक अवसर भेट गेल अछि। सन्दर्भ भेटल अछि डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव लिखित लोक-संस्कृति कोश मे उल्लेखित मैथिली अकादमीक परिचय पढला पर।
 
२ फरबरी १९७६ केँ बिहार सरकार द्वारा मैथिली अकादमीक स्थापना पटना मे भेल। एकर उद्देश्य आ कार्यक्षेत्र मे मैथिली भाषा एवं मिथिलाक गौरवमयी संस्कृतिक सम्वर्धन आ संरक्षण पड़ैत अछि। मिथिला लोकचित्र, विद्यापति केर रचना, मैथिली संगीत आ अन्य सांस्कृतिक विरासतक संरक्षण तथा बहुमूल्य आ अप्रकाशित मैथिली पाण्डुलिपिक संकलन आ प्रकाशन…. यैह सब मूल बात अछि। संगीत समारोह एवम् नाट्य मंचन द्वारा मिथिलाक संस्कृतिक अभिवर्द्धन करब, साधनहीन प्रतिभाशाली मैथिली कथाकार, नाटककार, कवि व अन्य रचनाकार केर आवश्यक प्रोत्साहन एवं पुरस्कार सँ सम्मानित करब, मैथिलीक विविध शाखा सब मे छात्रवृत्ति केर व्यवस्था करब, मैथिली साहित्यक विभिन्न विधा सब मे शोधकार्य विषयक प्रयत्न आ प्रोत्साहन करब, मैथिली साहित्यक इतिहास लेखन, भाषा सर्वेक्षण, कोष-निर्माण, मैथिली भाषा केँ विकसित कयकेँ एकरा शिक्षाक विभिन्न स्तरपर माध्यम-सम्मान प्रदान करब, मैथिली मे वैज्ञानिक शब्दावली केर निर्माण, अनुवाद आर मौलिक लेखन द्वारा सामाजिक एवं प्राकृतिक विज्ञान मे मानक ग्रन्थक निर्माण करब, आदि – ई समस्त परिकल्पनाक संग स्थापित कएल गेल राजकीय निकाय ‘मैथिली अकादमी’।
 
एहि सन्दर्भ मे किछु मास पूर्वहि मे एक बेर जोरदार चर्चा अकादमीक पूर्व अध्यक्ष आदरणीय कमलाकान्त झा द्वारा कोनो प्रसंगवश चर्चा उठायल गेल छल। हालहि बालमुकुन्द पाठक (पटना) सेहो स्रष्टा शारदिन्दु चौधरीक एक विचार सोझाँ अनने छलाह। हम सब किछु जनतब मैथिली अकादमीक पदाधिकारी सँ दूरभाष पर सेहो समेटबाक चेष्टा केलहुँ। किछु दसक धरि अकादमी नीक काज केलक एहि मे कोनो दू मत नहि छैक। बहुत रास लोक-साहित्य केँ प्रकाशन आ एतेक तक जे विलोपोन्मुख लोकगीत सब केँ संकलन कराकय ओकरा कम्पैक्ट डिस्क (सीडी) मार्फत जीवनदान देबाक सेहो काज कएल गेल। मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित पोथी सब भले बाजार मे उपलब्ध नहि हो, लेकिन संग्रहालय सँ संकलन कएला पर ई स्पष्ट होएत अछि जे अकादमी अपन शुरुआती समय मे बहुत सकारात्मक काज सब केलक। बाद मे लेकिन एतय स्वयं मैथिल गूटबाजीक कारण पदाधिकारी आ राजनीतिक पद अध्यक्षक बीच मनमुटाव सँ काज बिगड़ैत चलि गेल कहय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत। लेकिन एहि दिशा मे जनप्रतिनिधि आ भाषा-संस्कृति लेल जिम्मेवार मंत्रालय – बुद्धिजीवी – शोधकर्ता ‍- साहित्यसेवी – संस्कृतिकर्मी सब केँ एक साथ आवाज उठेबाक चाही। हमरा जतेक जानकारी उपलब्ध भेल ताहि मे पदाधिकारी द्वारा मनमानी करबाक बात आ बिना जानकारी देने छुट्टी पर जेबाक बात सँ लैत सरकारी कोषक दुरुपयोग करैत एहि संस्था केँ बदनाम आ बिन माय-बापक बना देल गेल। दंडहीनताक संस्कार मे मैथिल लोक, खासकय शिक्षा आ संस्कार सँ अपना केँ परिपूर्ण माननिहार गोटेक दंभी मैथिल ब्राह्मण सज्जन एकरा उला-पकाकय खा गेला ईहो कहबा मे हमरा कोनो हर्ज नहि बुझाएत अछि। आइ कतेको वर्ष सँ ई संस्था शिथिल अछि। चेतना समिति पटना आ मैथिली भाषा-साहित्यक एक सँ बढिकय एक संरक्षकवर्गक विशिष्ट व्यक्तित्व सँ ध्यानाकर्षण चाहब। ओ सब एहि दिशा मे ध्यान देथिन त निश्चित अकादमीक अवस्था मे सुधार आओत।
 
अकादमीक अपन वेबसाइट सँ लैत उपलब्ध पोथी केर जनतब वर्तमान पीढीक पास अति शीघ्र उपलब्ध कराबय। मातृभाषाक महत्व लेल जन-जन मे उचित प्रचार-प्रसार करय। लेखनी प्रोत्साहन हेतु युवा लेखक-रचनाकार आर ताहू मे समाजक सब वर्गक लोक द्वारा लेखनीक विभिन्न विधा मे संलग्नता बढय – मिथिलाक अकूत लोकसाहित्य केँ समुचित ढंग सँ लिपिबद्ध कएल जा सकय, तेकर व्यवस्था करय अकादमी। एकटा शोधग्रन्थ मे पढलहुँ जे गोटेक प्रसिद्ध रचनाकार यथा ब्रज किशोर वर्मा ‘मणिपद्म’, डा. रामदेव झा, डा. महेन्द्र नारायण राम आदि द्वारा लोक-साहित्य, संगीत, नाटक आदिक प्रचलित कथा-खिस्सा-पिहानी-गीत आदि केँ लेखन आ संग-संग शोध केन्द्रित कार्य कएलनि; मुदा जाहि तरहक खजाना आर विभिन्न क्षेत्रक हिसाब सँ विशिष्टता आ विविधता मैथिली साहित्य मे उपलब्ध अछि ताहि मे एखन सैकड़ों-हजारों महत्वपूर्ण काज करय लेल बाकिये अछि। आब १९५० ई. सँ पहिनुक लोक विरले भेटत जे एहि श्रुति-आधारित लोकसाहित्य केँ लेखन वा शोध मे सहयोग करय, तथापि एहि दिशा मे काज करब बहुत आवश्यक अछि। अकादमी यदि सहकार्य करय लेल तैयार अछि त विभिन्न विश्वविद्यालय व शोध-संस्थान सहित कतेको रास गंभीर सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था एहि महत्वपूर्ण कार्य मे हाथ बँटायत। आइ मैथिली भाषा सँ जेना वितृष्णा उत्पन्न भेल देखैत छी युवा समाज मे, मिथिलाक आम जनसमुदाय मे, ई सब सेहो दूर होयत। बस, सभक सार्थक ध्यान एहि दिशा मे आयब जरुरी अछि।
एहि ठाम २०१६ मे अनुराग कुमार नामक संचाकर्मीक स्टोरी साभार अमित आनन्द लगेलहुँ अछि जे स्वयं आन्तरिक स्थिति आ अरण्यरोदन दुनू प्रत्यक्ष राखि रहल अछि। तथापि, मैथिलीक सर्वथा प्राचीन आ सर्वकालिक अकाट्य योगदान देनिहार चेतना समिति कतय सुतल अछि ई बुझब कठिन अछि। 
 
हरिः हरः!!