विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
हालहि ‘हिन्दी बचाओ अभियान’ केर एक अभियानी द्वारा मैथिली भाषाक स्वतंत्र अस्मिता पर कठोर प्रहार कएल जेबाक प्रकरण सोझाँ आयल अछि। ओ व्यक्ति हिन्दीक हितैषी कथमपि नहि भऽ सकैछ जे हिन्दी केँ पोषण देनिहार विभिन्न मातृभाषाक अस्मिता पर सवाल ठाढ करय। एहि विषय मे बहुत रास तर्क-कूतर्क सब सोझाँ आबि रहल अछि। एक सँ बढिकय एक साहित्यकार, भाषाविद् लोकनि अपन विरोध आ पक्ष मे विचार राखि रहला अछि। प्रथमतः अमर नाथ नाम्ना ओहि अभियानीक विचार केँ कूतर्क मानि जबाब देबा योग्य नहि बुझने रही। परञ्च आइ हुनकर एक आरो लेख पढल जाहि मे मगही द्वारा अष्टम् अनुसूची मे स्थानक मांगपर पुनः तेहने कमजोर तर्क राखि एक तरहक उकसाबयवला पोस्ट पढि लेलहुँ। एहि क्रम मे अमर नाथ केँ लिखल पत्र निम्न अछि।
आदरणीय अमर नाथ सर,
पिछले दिनों आपने मैथिली भाषा को हिन्दी से टूटने और विद्यापति मैथिली कवि कोकिल के बारे हिन्दी भाषा-समग्री से हँटाने सम्बन्धी अपने स्तर से एक लेख लिखते हुए मेरे समझ से कुछ कमजोर तर्क रखते हुए हिन्दी बचाओ आन्दोलन में एक पक्ष जोड़ने का प्रयास किये थे। आपके द्वारा भोजपुरी, राजस्थानी, हरियाणवी, अंगिका और कुमायुनी के साथ अब मगही के द्वारा भारत की संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त करने के लिये जो संघर्ष पर निरन्तर हिन्दी को तोड़ने जैसा संवाद संचरण किया जा रहा है इसपर आप दुबारा विचार करेंगे।
१. भारतीय मातृभाषाओं ने मिलकर हिन्दी को जना, इसे पाला-पोसा और विश्व भाषा परिवार में एक समृद्ध भाषा के रूप में पहचान दिलाया है।
२. हिन्दी की साहित्य सेवा में लगे हुए लेखकों, रचनाकारों, भाषाविदों, विद्वानों की सूची देखते ही आपको यह ज्ञात हो जाता है कि इन्हीं कुछ मातृभाषाओं के सर्जकों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को आगे बढाने के लिये काफी बिपरीत परिस्थितियों (पराधीनताकी स्थिति) में यहाँ तक कि अपनी मातृभाषाकी सेवा को त्यागकर भी हिन्दी को ही स्थापित करने में अपना जीवन लगा दिये।
३. अब जबकि देश स्वतन्त्र हुए पूरे सात दसक बीतनेवाला है, इन मातृभाषियों के सर्जकों को खुद की अस्मिता मिटते दिखी और वो अपने वजूद को बचाने के लिये भारत की मान्य भाषाओं की सूची में खुद को सूचीकृत कराकर राज्य के द्वारा इस ओर भी ध्यान देने के लिये समुचित ध्यानाकर्षण करा रही है तो आप सरीखे हिन्दी बचाओ अभियानियों को यह गैर-वाजिब लग रहा है, आप इसे हिन्दी को कमजोर करने जैसा कदम मानते हैं, यह निराधार है।
४. एक उदाहरण देना चाहूँगा – वो भी उसी सन्दर्भ में जिसका जिक्र आपने अपने लेख में भी किया था। मैथिली भाषा-साहित्य हिन्दी से बहुत प्राचीन एवम् पूर्ण होते हुए भी सैकड़ों सर्जकों-सेवकों से हिन्दी साहित्य को पुष्ट किया जिसमें सबसे ऊपर राष्ट्रकवि दिनकर का नाम आता है। मैथिली भाषा के एक महत्वपूर्ण संरक्षक दरभंगा महाराजा ने राष्ट्रकी जरुरत के समय मातृभाषा मैथिली को राजकाज की भाषा से हंटाकर राष्ट्रभाषा हिन्दी को अपनाते हुए लेखकों, साहित्यकारों के अलावे आम जनमानसों एवं शासनकार्य को संचालित करनेवाले प्रशासकों सहित सभी को हिन्दी भाषा अपनाने का उल्लेखनीय कार्य किया। यह लगभग १८८३ ई. की बात है। जब राष्ट्र स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली तो ऐसे त्याग का प्रतिफल मैथिलीभाषियों को क्या दिया गया? बहुत मुश्किल से १९६३ ई. में साहित्य अकादमी के द्वारा स्वीकृति मिली। कूतर्क के एक से बढकर एक दृष्टान्त बड़े-बड़े लेखकों और हिन्दी के तथाकथित ‘बचाओ अभियानियों’ के तरफ से जननी-भाषा मैथिली को ही ‘हिन्दी की बोली’ कहने से भी लोग पीछे नहीं रहे। आप आज भी यही कर रहे हैं। परिणामतः लोग आक्रोशित होकर आपको और आपके कूतर्कों को असभ्य-असहज भाषा में जबाब भी दिया है। मैथिली ने अपने अकाट्य इतिहास, लिपि, पाण्डुलिपि, ऐतिहासिक अभिलेख, साहित्य, व्याकरण, शब्दकोश और हजारों वर्षों से इस भाषा की सेवा मे लगे फेहरिश्त रख किसी तरह से भारतीय संविधान की अष्टम् अनुसूची मे २००३-०४ ई. में स्थान प्राप्त करती है, लेकिन आज १३ वर्षों में कुछेक आइएएस-आइपीएस के अतिरिक्त राज्य के कोष से और क्या-क्या प्राप्त हुआ है मैथिली को? हिन्दी के अंश से क्या लूट लिया मैथिली ने?
५. आपके हिन्दी बचाओ अभियान में तर्कसंगत आधार पर किसी का विरोध होना चाहिये। वैमनस्यता प्रसार कर भारत की अपनी मौलिक भाषाओं का अस्तित्व ही समाप्त करनेवाली मनसाओं को प्रकट कर आप हिन्दी का कितना हित कर रहे हैं, इसपर पुनर्विचार करें।
भारत एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य है। सभी को समान अधिकार देना जरुरी है। जिस किसी भी भाषाओं में एक भाषा होने का पूर्ण आधार हो उसे आगे बढाएं। अपने ही मुल्क के भाषाओं को आगे बढाने में हिन्दी का अहित देखना आप जैसे भाषा-अभियानियों – विद्वानों को शोभा नहीं देता। आशा करते हैं कि आप अपनी कार्यशैली और सोचने की दृष्टि में उचित परिवर्तन लाकर हिन्दी का यथार्थ हित करने के लिये भी मातृभाषाओं के विरुद्ध अनाप-शनाप लिखना-पढना बन्द करेंगे।
हरिः हरः!!