मिथिला मे शिशुपाल वध, बस प्रसंगवश….

विशेष सम्पादकीय, मई २७, २०१७.

मिथिलाक प्राचीनता समृद्ध रहितो वर्तमान विपन्नता आँखि मे गड़ैत छैक। लेकिन एकर नाम वगैर राजकीय संरक्षण आइयो आखिर जीबिते छैक। ई सौभाग्य कोनो ईश्वरीय चमत्कार सँ कम नहि। बात साफ छैक। १ करनिहार १० दूसनिहार – करनिहारक सम्बल कृष्ण आ दूसनिहार स्वयंमेव शिशुपाल। आखिर कृष्ण शिशुपालक वध कियैक केलाह। आउ देखी एक नजरि मे।

मिथिला मे शिशुपाल वध
 
कृष्ण अवतारी पुरुष छलाह। परञ्च हुनकहु ऐश्वर्य सँ कतेको राजा-महाराजा सब बहुत ईर्ष्या करैथ। सनातन यैह होएत एलैक अछि। ईश्वर प्रति आस्था सभक एकसमान नहि होएत छैक। केकरो बहुत, केकरो थोड़। आइयो देखल जाय त ईश्वर परंपरा मे कतेको लोक विश्वासो तक नहि करैत अछि, जखन कि कतेक लोक बिना कोनो प्रश्न उठेने सदिखन अपना केँ ईश्वरक शरण मे रखबाक बात कहैत अछि। हालोचाल पूछला स कहत जे सब ईश्वरक कृपा, हुनकहि दया-दृष्टि, जेहेन ईश्वरक मर्जी, आदि। ईश्वर केँ परिभाषित करब सेहो बड पैघ चुनौतीपूर्ण विषय मानल जाएछ। बड पैघ दर्शनशास्त्री सब अपना-अपना तरहें परिभाषा रखलैन अछि। साधारण भाषा आ रूप मे ओहि अदृश्य शक्ति केँ ईश्वर कहल जाएछ जे संपूर्ण प्रकृति आ जीवमण्डल केर तंत्रक संचालक छथि। आर ईश्वरक अवतार ओ जे एहि ऐश्वर्य केँ धारण करैत छथि। कृष्ण अपन बाल्यावस्था सँ जाहि ऐश्वर्यक धारण कएने कतेको रास लीला सब केलनि ओ साबित कय चुकल छल जे ओ स्वयं परमाधिपति परमात्माक जीवन्तरूप थिकाह। जे कियो एहि तथ्य केँ आत्मसात कय लेने छल से सब हुनका प्रथम-पूज्य आ सर्वश्रेष्ठ मानैथ।
 
एतय प्रसंग उठल अछि शिशुपाल वध केर। छोटे टा कथा छैक। राजसूय यज्ञ करबाक संकल्प संग धर्मराज युधिष्ठिर आवश्यक विध-व्यवहार शुरु कएलनि। राजसूय यज्ञ पिता पाण्डू केर नारद मार्फत सन्देश सँ करबाक सोच महाराज युधिष्ठिर श्रीकृष्ण संग आवश्यक सल्लाह सँ कएने छलाह। इन्द्रप्रस्थ बनलाक बाद ई यज्ञ युधिष्ठिर द्वारा चक्रवर्ती सम्राटक पद लेल कएल जेबाक छल। चक्रवर्ती सम्राट वैह बनि सकैत छल जेकरा अन्य राजा लोकनि सेहो अपन राजाक रूप मे स्वीकार करय। मुदा ताहि समयक मगध देशक राजा जरासंध एहि मे बड पैघ रोड़ा छलाह। हुनका कृष्ण द्वारा अपन दुइ-दुइ पुत्रीक जमाय कंस केर वध करबाक कारण शत्रुता उत्पन्न भऽ गेल छलन्हि आर ओ प्रतिशोध सँ जरैत कृष्णक मथुरापर १८ बेर आक्रमण कएलनि, मुदा ओ अपन उद्देश्य केँ पूरा नहि कय सकल छलाह। तखन युधिष्ठिरक इच्छा जे राजसूय यज्ञ करी तेकरा पूरा करबाक लेल कृष्ण अर्जुन आ भीमक संग ब्राह्मणक वेष मे जरासंध सँ भीक्षा मांगय पहुँचलाह, जरासंध द्वारा भीक्षा कि चाही पूछला पर कृष्ण भीम ओ अर्जुनक मौनव्रत अर्धरात्रि मे टूटलाक बाद मांग करबाक बात कहलैन। अर्धरात्रिक समय धरि जरासंध प्रतीक्षा त केलनि, मुदा हिनका तिनूक भेष-भूषा देखि ओ शंका करैत प्रश्न पूछि बैसलाह जे अहाँ सब अपन असल परिचय देल जाउ।
 
कृष्ण तदोपरान्त हुनका बहुत बात-कथा कहिकय उकसाबैत रहलाह जे भीक्षा देबाक वचन देलाक बाद अन्य बातक कोनो स्थान नहि छैक। पहिने भीक्षा देबाक वादा पूरा करू आर फेर असल परिचय लेल जाउ। जरासंध बुझि गेलाह जे ई कृष्ण संग अर्जुन आ भीम छथि, लेकिन योद्धा राजा हेबाक कारण कृष्णक ललकार केँ ओ स्वीकार करैत मल्लयुद्ध केर आमंत्रण स्वीकाय कएलनि। भीम संग युद्ध होमय लागल। २८ दिन धरि युद्ध भेल। जरासंधक जन्म जेना दुइ मायक कोखि सँ आधा-आधा शरीर सँ भेल आर जरा नामक राक्षसीक ओहि दुइ अलग शरीर केँ एक ठाम अनिते ओ एक बनि जेबाक कारण महान गर्जना करैत अपन अस्तित्व मे आयल छल, ठीक तहिना भीम जरासंध केँ युद्ध मे बेर-बेर दू चीरा मे फारि देथिन लेकिन ओ बेर-बेर एक भऽ जाएक। पुनः कृष्ण द्वारा भीम केँ घास केर दुइ टुकड़ा कय दुइ अलग दिशा मे फेकबाक संकेत देलाक बाद भीम जरासंधक वध कय सकल छलाह। एवम् प्रकारेन् राजा युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञक बाट साफ भेल छल। ओतय सब राजा-महाराजा एकत्रित भेल छलाह। ऋतिज आचार्य होता छलाह। ओ यज्ञभूमि केँ सोनाक हर सँ जोतिकय तैयार करबौलनि। यज्ञक सफलता हेतु ताहि समयक लगभग सब पैघ-पैघ विद्वान् ऋषि-मुनि समाज ओतय पहुँचल छलाह।
 
जरासंध का वध करके श्री कृष्ण, अर्जुन और भीम इन्द्रप्रस्थ लौट आये एवं धर्मराज युधिष्ठिर से सारा वृत्तांत कहा जिसे सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुये। तत्पश्चात् धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ की तैयारी शुरू करवा दी। उस यज्ञ के ऋतिज आचार्य होता थे।
 
भारतवर्ष केर समस्त बड़-बड़ ऋषि महर्षि – भगवान वेद व्यास, भारद्वाज, सुनत्तु, गौतम, असित, वशिष्ठ, च्यवन, कण्डव, मैत्रेय, कवष, जित, विश्वामित्र, वामदेव, सुमति, जैमिन, क्रतु, पैल, पाराशर, गर्ग, वैशम्पायन, अथर्वा, कश्यप, धौम्य, परशुराम, शुक्राचार्य, आसुरि, वीतहोत्र, मधुद्वन्दा, वीरसेन, अकृतब्रण आदि – उपस्थित छलाह। सब देशक राजाधिराज सेहो ओतय आयल छलाह। ऋतिज द्वारा शास्त्र विधि सँ यज्ञ-भूमि केँ सोनाक हर सँ जोतवाकय धर्मराज युधिष्ठिर केँ दीक्षा देलनि। धर्मराज युधिष्ठिर सोमलताक रस निकालबाक समय यज्ञ केर भूल-चूक देखयवला सद्पति लोकनिक विधिवत पूजा केलनि। आब सब सभासद बीच एहि विषय पर विचार होमय लागल जे सब सँ पहिने कोन देवताक पूजा कएल जाय। तखन सहदेव जी बाजि उठलाह –
 
“श्रीकृष्ण देवतो सभक देवता छथि, हुनकहि आगू पूजा हेबाक चाही। ब्रह्मा शंकर सेहो जिनकरा पूजैत छथि, पहिल पूजा हुनके देल जाय। अक्षर ब्रह्म स्वयं कृष्ण थिकाह, वेद सेहो हिनके महिमा गेने अछि। पहिल तिलक यदुपति केँ देल जाउ, सब मिलि पूजन हुनकहि करू।”
 
परमज्ञानी सहदेव जीक वचन सुनिकय सब सत्पुरुष “साधु! साधु!” कहि कय समर्थन कएलनि। भीष्म पितामह सेहो स्वयं अनुमोदन करैत सहदेव केर कथनक प्रशंसा कएलनि। तखन धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा शास्त्रोक्त विधि सँ भगवान श्री कृष्ण केर पूजन आरम्भ कएल गेल। चेदिराज शिशुपाल अपन आसन पर बैसल ई सब दृश्य देख रहल छलाह। सहदेव द्वारा प्रस्तावित तथा भीष्म द्वारा समर्थित श्री कृष्ण केर अग्र पूजा केँ ओ वर्दाश्त नहि कय सकलाह और हुनकर हृदय क्रोध सँ भैर गेलनि। ओ उठिकय ठाढ भऽ गेलाह आ बाजय लगलाह, “हे सभासद लोकनि! हमरा एना लागि रहल अछि जे कालवश सभक मति मारल गेल अछि। कि एहि बालक सहदेव सँ बेसी बुद्धिमान व्यक्ति एहि सभा मे नहि छथि जे एहि बच्चाक बात मे हाँ मे हाँ मिलाकय अयोग्य व्यक्ति केर पूजा स्वीकार कय लेल गेल अछि? कि एहि कृष्ण सँ आयु, बल तथा बुद्धि मे कियो पैघ नहि अछि? बड़का-बड़का त्रिकालदर्शी ऋषि-महर्षि एतय आयल छथि। बड़का-बड़का राजा-महाराजा एतय उपस्थित छथि। कि एहि गाय चरेनिहार ग्वाला (गुआर) केर समान कियो और एतय नहि अछि? कि कौआ हविश्यान्न लय सकैत अछि? कि गीदड़ सिंह केर भाग प्राप्त कय सकैत अछि? नहि एकर कोनो कुल छैक न जातिये, नहिये एकर कोनो वर्ण छैक। राजा ययाति केर शापक कारण राजवंशी सब एहि यदुवंश केँ ओहिना बहिष्कृत कय केँ रखने अछि। ई जरासंध केर डर सँ मथुरा त्यागिकय समुद्र मे जाकय नुका गेल। भला ई कोना तरहें अग्रपूजा पेबाक अधिकारी भेल?
 
एहि तरहें शिशुपाल जगत केर स्वामी श्री कृष्ण केँ गारि देबय लागल। ओकर एहि कटु वचनक निन्दा करैत अर्जुन और भीमसेन अनेक राजा सभक संग ओकरा मारय लेल उद्यत भऽ गेलाह, मुदा श्री कृष्णचन्द्र हुनका सब केँ रोकि देलनि। श्री कृष्ण केर अनेक भक्त सभा छोड़ि कय चलि गेल कियैक त ओ सब श्री कृष्ण केर निन्दा नहि सुनि सकैत छलाह।
 
जखन शिशुपाल श्री कृष्ण केँ एक सौ गारि दय देलक तखन श्री कृष्ण गरैजकय कहलखिन, “बस शिशुपाल! आब हमरा बारे मे तोहर मुंह सँ एकोटा अपशब्द निकलतौक त तोहर प्राण नहि बचतौक। हम तोहर एक सौ अपशब्द केँ क्षमा करबाक प्रतिज्ञा कएने रही ताहि सँ एखन धरि तक तोहर प्राण बाँचल छौक।” श्री कृष्ण केर ई वचन सुनिते सभा मे उपस्थित शिशुपाल केर सारा समर्थक भय सँ काँपि उठल, मुदा शिशुपाल केर विनाश समीप छलैक। तैँ ओ काल केर वश भऽ अपन तलवार निकालैत श्री कृष्ण केँ फेर सँ गारि देलक। शिशुपाल केर मुंह सँ अपशब्द निकलिते श्री कृष्ण द्वारा अपन सुदर्शन चक्र चला देल गेल आर क्षणहि मे शिशुपाल केर सिर धर सँ अलग भऽ गेल। ओकर शरीर सँ एक ज्योति निकैलकय भगवान् श्री कृष्णचन्द्र केर भीतर समा गेल आर ओ पापी शिशुपाल जे तीन जन्म सँ भगवान् केर बैरभाव सँ ग्रसित भऽ रहल छल, परमगति केँ प्राप्ति कय लेलक। यैह भगवान विष्णु केर ओ द्वारपाल छल जेकरा ब्रह्माक मानसपुत्र सनकादि मुनि शाप देने छलाह। वैह जय और विजय अपन पहिल जन्म मे हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष, दोसर जन्म मे रावण और कुम्भकर्ण तथा अंतिम तेसर जन्म में कंस और शिशुपाल बनल तथा श्री कृष्ण केर हाथ सँ अपन परमगति केँ प्राप्त भऽ पुनः विष्णुलोक लौटि गेल।
 
ई प्रसंग आइ एहि द्वारे निकलल अछि जे अपन मिथिला मे युधिष्ठीर समान राजसूय यज्ञ करनिहार नेतृत्वकर्ता आंगूर पर गानल जाय योग्य होएत छथि। भैर गाम मे घूमि लेब त ५ गो बेटा वा बेटी एहेन भेट जायत जे अपन गाम-समाज, लोक-वेद, आदिक वास्ते सार्थक आ कल्याणकारी भावना सहित किछु न किछु करय चाहैत अछि। समाज मे ओहेन सपूतक कनिकबे प्रतिष्ठा बढैत देरी ११११ गो शिशुपाल पैदा लय लैत अछि। ओ ओहि कृष्णरूपी सपूत केँ गारि पढय सँ कोनो मौका नहि चूकैत अछि। १०० गारि क्षमा योग्य हेबाक कारण क्षम्य होएत छैक, १०१म गारि ओकरा गर्दैन पर कृष्णक चक्र जेकाँ अभगदशा तेहेन अनैत छैक जे फेर विष्णुलोक पहुँचले पर कल्याण बुझू। आब कहब जे कृष्ण त ईश्वर छलाह, चक्र धारण करबाक सामर्थ्य छलन्हि हुनका मे…. बाकी लोक त साधारण जीव अछि, ओ चक्र केना चलायत… त एकर साधारण जबाब यैह छैक जे समाज, देश, दुनिया लेल करनिहार सपूत सर्वथा कृष्णः शरणं मम केर सिद्धान्त अपनौने रहैत अछि। ओकरा कियो गारि पढय त धैन सन! १०१म पहुँचतैक त ऐश्वर्यक स्वामी कृष्ण अपने भक्तक मान केर रक्षा करथिन, ओ यैह बुझैत अछि। हम-अहाँ सेहो अपन समाज मे यैह बुझिते टा नहि देखितो छी। तखन त अपन-अपन धर्म आ अपन-अपन कर्म! अस्तु!
 
हरिः हरः!!