नारी आ समाजः मिथिलाक युवा विचारक राजनक मत

विचार

– मायानन्द झा ‘राजन’, गोलमा, सहरसा (हालः गुआहाटी सँ)

हालहि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली गैंग रेप केर आरोपी केँ फाँसीक सजा सुनाओल गेल । ओकर पक्ष आ विपक्ष में लोक सब अपन-अपन तर्क दैत अछि । विपक्षक अनुसार ई फैसला जनभावनाक दबाव में लेल गेल अछि । दोषी केँ फाँसी द देने कि रेपक घटना बंद भऽ जेतय या समाज में औरतक खिलाफ होयबला अपराध कम भ जेतय । जे पक्षधर छै हुनकर मतानुसार दोषी कठोर सजाक हकदार छल आर एहि कठोर सजा सँ अपराधीक मन में आगाँ फेरो एहेन अपराध करय सँ पहिने निश्चिते भय पैदा होयत ।

मुदा बात एहि दुनु पक्षक सोच केर बीच में कतहु अछि । समाज में जखन नारीक खिलाफ कुनु अपराध होय छै त दोषी केँ ओकर सजा जरूर भेटबाक चाही, मुदा सिर्फ सजा द देला टा सँ ई समस्याक हल नहि होयत । सामाजिक मानसिकता में भी बदलाव होयब बहुत जरुरी छैक ।  अपराधी अहि समाज सँ आयल व्यक्ति छैक, ओ कतहु बाहर सँ नहि आयल अछि । जखन कखनहु कुनु नारीक खिलाफ अपराध होएत अछि त सब गोटे नारिये केँ दोष देबऽ लागय छै कि ओ एतेक राति केँ बाहर किया घुमैत रहय, ओ एहन बस्त्र कियाक पहिरने छलय, वगैरह वगैरह । हम सब अय तरहक दोषारोपण कय केँ पुरूष अपराधी सभक कतहु न कतहु बचाव करैत छी आ अपराध केँ बढाबा दैत छी । हम सब समाज में कियाक न अय तरहक माहौल बनाबी जाहि सँ हमर समाजक बहिन-बेटी केँ  घुमय लेल समय नय देखय पड़य संगहि कुनु अपराधी  व्यक्ति केँ ओकरा सब दिश आँखि उठा कय देखबाक हिम्मत नय होय ।

जे पहिरयवला वस्त्र सँ यौन हिंसा केँ जोड़य छी हुनका सँ हमर प्रश्न अछि कि जे स्त्री पुरा वस्त्र पहिरने रहय छै से आर छोट-छोट बच्ची सभक संग तखन यौन हिंसा कियाक होय छै ? बस्त्र सँ यौन हिंसा केर कुनु लेनाय देनाय नहि अछि अपितु ई एक तरहक मानसिकता छी जकरा औरत आ पुरूष में एकहि टा रिश्ता नजरि आबय छै । और अय तरहक सोच समाज में व्यापक रुप सँ फैल रहल अछि जे समाजक लेल गहन चिंताक बिषय छी । आओर समाज केँ अात्मनिरीक्षणक जरुरत अछि ।

भारत बहुते हिप्पोक्रेटिक देश अछि । जतय एक तरफ हम सब दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आ सीता जेकाँ स्त्रीस्वरूप केँ देबीक समान पुजय छी ओतहि नारीक प्रतारणा, यौन शोषण, आ घरेलु हिंसाक सबसँ बेसी केश एतहि होएत देखैत छी । हमर मैथिल समाज सेहो एहि रोग सँ अछुत नहि अछि । नारीक संबंध में मनुक कथन “पिता रक्षति कौमारे,  न स्त्री स्वातंन्नयम अर्हति ।” ओतहि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ” भी द्रष्टब्य छै जे अय समाजक दोहरापन प्राचीनकाल सँ ही उजागर करैत अछि।

आजुक स्त्री केर अस्मिताक प्रश्न मुखर भ जा रहल अछि। अपन अस्तीत्व केँ बचाबय लेल संघर्ष करैत स्त्री एक लंबा रास्ता तय केलक, मुदा आय भी एक बहुत पैग हिस्सा कतेको शताब्दी सँ सामाजिक अन्याय केर शिकार अछि । स्त्री केर एक देह सँ अलग एक स्त्री के रुप में देखबाक आदति डालय पड़त । नग्नता आओर शालीनता केर मध्य एक बारीक रेखा समाज स्वयं बनाबय छै आ स्वयं बिगाड़य छै । उचित आ अनुचित, न्याय आ अन्याय, विवेकपूर्ण आ अविवेकपुर्ण, स्वाधीनता आ उच्छृंखलता, दायित्व आ दायित्वहीन, शीलता आ अश्लीलता केर बीचक धुँआ साफ करय पड़त । समाज में अय तरहक माहौल बनाओल जाय  जाहि सँ स्त्री निर्भीक भऽ कऽ अपन सर्वांगीण बिकास करय । एकर शुरूआत परिबार सँ ही हेबाक चाही । हम बच्चा सब केँ छोट सँ ही नारीक मर्यादा केर सम्मान करबाक सिखेबाक चाही । हम बेटा – बेटी में कुनु अंतर नय करी ।

लोक कहय छै जे आइ-काल्हि समाज में राम कहाँ जन्म लैत छथि, सबटा रावणे उत्पन्न भऽ रहल अछि । हम कहय छी राम त दूर अपन बेटा केँ कम सँ कम रावणो टा बना दियौक जे एक स्त्री केर सहमति के बिना ओकरा छुलकय तक नय, आओर ओकर मर्यादा केर हनन नय केलकय । राबण त सीताजी केँ हरण कय केँ जखन अशोकवाटिका ल गेलय त हुनकर जरूरत केर पुरा ध्यान राखलकय । शादीक लेल हुनक सहमति लेबाक कोशिश केलकय । कुनु जबरदस्ती नय केलकय । अगर अपन धियापुता केँ एतबो तहजीब आबि जाउ त काफी समस्याक समाधान भ जेतय ।