विचार
– राज कुमार झा, मुम्बई
“पर्यावरण रक्षार्थ संकल्पित होइ”
अनेकों प्रकारक वातावरणीय परिवर्तनसँ पर्यावरणक रक्षा करब मानव समाजक अनिवार्य दायित्व बनैत अछि । एक समय होइत छल जखन ऋतु परिवर्तनक उपरांत प्रकृति प्रदत्त वातावरणक सुखद आनंद स्वतः मानव समाज प्राप्त करैत छलाह । शनैः- शनैः मानव अप्पन भौतिक सुखेच्छाक पूर्ति निमित्त प्रकृति प्रदत्त अलौकिक उपहारक उपेक्षा करय लगलाह । परिणामस्वरूप पर्यावरणीय संतुलन छिन्न-भिन्न होइत गेल । मानव निर्मित संत्राससँ व्यथित प्रकृतिक रौद्र स्वरूप यथा भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ऋतुक मध्य असंतुलनक स्थितिक भयावहता आदि सम्पूर्ण वातावरणकें अशांत बना देने अछि ।
शरीरक सुन्दरता तखनहिं लक्षित व व्यवस्थित होइत अछि जखन संतुलित आहारसँ शरीरक प्रत्येक अवयव समान रूपसँ पोषित होइत हो । संतुलित आहार ग्रहण नञि कयलासँ विकलांगताक स्थितिक प्रादुर्भाव होइत अछि । ठीक एहि तरहें हमरालोकनिक कर्तव्यक संग-संग अनिवार्य दायित्व बनैत अछि जे पर्यावरणक प्रत्येक अवयवक रक्षार्थ स्वयंकें समर्पित करी जाहिसँ प्रकृति प्रदत्त अनुपम उपहारकें जीवनमे धारण करैत स्वयंकें तथा वसुन्धराक सुन्दरताके सुरक्षित रखबामे सक्षम भऽ सकी । जय श्री हरि ।