विचार
“मैथिली भाषा एवं साहित्यिक संरक्षण हेतु महानगरीय प्रवासीक दायित्व”
– राजकुमार झा, मुंबई
लेखनीक विषय अछि – “मैथिली भाषा एवं साहित्यके संरक्षणमे महानगरीय प्रवासीक दायित्व ।” हमर स्पष्ट चिंतन अछि जे एक मैथिल हेबाक नाते प्रमुख प्रश्न हेबाक चाही – “अपन अस्तित्व बचेबाक कर्तव्य ।” एहि कर्तव्यके निर्वहन मातृऋण चुकेलासँ भS सकैत अछि । माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषाक स्थान जीवनमे सर्वोपरि हेबाक चाही । एहेन बात नञि कि मैथिली भाषा-साहित्य आदिके प्रोत्साहनमे हम किछु टाका खर्च कय परोपकार व समाजक कल्याण करब । वस्तुतः ई माँ मैथिलीके मातृऋण चुकेबाक अवसर अछि । अपन संततिकें एवं भाषा-साहित्यकें आपसमे जोड़बाक अवसर अछि । महानगरीय संस्कृतिमे रहिके बाल-बच्चाकें एहि दुष्परिणामसँ बचेनाई बहुत पैघ चुनौती अछि । अंग्रेजी स्कूलमे बच्चाके पढ़ेनाई आजुक बाध्यता भS सकैत अछि मुदा मैथिली भाषा-साहित्यसँ जोड़नाई हमरालोकनिक परम कर्तव्य बनैत अछि । एहि बातके सदैव स्मरण राखल जेबाक चाही जे संकुचित मानसिकतासँ मुक्त होइत मातृभाषा मैथिलीक संरक्षण, महानगरीय प्रवासी केर दायित्वसँ बढ़ि परमकर्तव्य थिक ।
मिथिलाक पावन तथा गौरवमयी संस्कृतिकें प्रवासक माइट-पाइन पर एकात्मकताक सेतु कायम करबाक निमित्त प्रतिबद्धता आओर उदारचित्तता वस्तुतः माँ मैथिलीक यशोगाथाके आदरक संग निवेदित करबाक तथा उत्कृष्ट समर्पण केर भाव जागृत करब अनिवार्य अछि । वर्तमान समयमे मिथिलाक पावन भूमिक सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं व्यवहारिक संस्कारक जखन गहन चिंतन-मनन करैत छी, स्वतः एहि बातक क्लेश होइत अछि जे माता जानकी केर भूमि वर्तमान समयावधिमे तथा आधुनिकताक तामझाममे अपन व्यापकताकें शनैः शनैः बिसरि रहल अछि । विद्या-विभूतिसँ सजल समाज, सम्पन्न आ संस्कारक सूचिताके धारण केनिहार मिथिलावासी अपन संस्कार, भाषा एवं पूर्वज प्रदत्त विलक्षण विरासतकें सहेजके राखि सकबामे ओतेक बेशी गंभीर नञि बुझना जा रहल छथि जकर आवश्यकता वर्तमान सामाजिक परिवेशमे नितांत प्रयोजनीय हेबाक चाही । संस्कारक संबर्द्धन सच्चाईके स्वीकार कयलासँ स्वतः संबर्द्धित होइत अछि । सच्चाई प्रकृति प्रदत्त अनुपम आओर अमूल्य धरोहर थिक जे मायक कोइखसँ निकलि समाजक मध्य नव चेतनाके प्रतिस्थापित करबाक साहस रखैत अछि । मिथिलाक व्यक्तिमे मातृशक्तिक शक्ति निहित अछि आओर मिथिलावासीक संस्कारक पूंजी आइयो सम्पूर्ण भारतवर्षमे विशिष्ट महत्व रखैत अछि । एहिक फलस्वरूप एक दिव्य संदेश निर्गत कराओल जेबाक चाही जाहिमे मिथिलांचलक सर्वांगीण विकासक संग-संग सुन्दर भविष्य केर प्रतिस्पर्द्धात्मक आशाक दीप प्रज्जवलित करबाक ललक हो । जाहिसँ मिथिलाक माइटक पवित्रता, दिव्यता आओर भव्यता मिथिलावासीक लेल अनमोल पूंजी बनैक ।
मैथिली भाषा एवं साहित्यक संरक्षणमे प्रवासी मैथिल समाजक योगदान विगत् अनेकों बरखसँ विशिष्ट रहल अछि । प्रवासमे दैनिक जीवनक व्यस्तताक उपरांतहुँ जे समय प्रवासी मैथिल सुधिवृन्दक संग उपलब्ध रहैत छनि ताहि समयमे भाषाक संरक्षण-संबर्द्धन हेतु विशेष रुपसँ युवा साहित्यकार लेखनीक क्षेत्रमे यथोचित योगदान निर्गत कराबैत आबि रहला अछि । भाषाक संरक्षण आ संबर्द्धनक लेल आवश्कता अछि जे बहुतायत संख्यामे प्रवासी मैथिल समाज अपना-अपना घरमे मैथिलीके कंठक भाषा बनाबैथ । अनुभव कयल जा रहल अछि जे वर्तमान समयमे विशेष रूपसँ युवा पीढ़ी स्वयं केर भाषाक प्रति उदासीन भाव रखैत छथि । घरमे मैथिली भाषाक प्रचलन, गप्प-सप्प करब,परिसंवाद स्थापित करब आदि अनेकों व्यवधानसँ भाषा असहज आओर असुरक्षित अनुभव कS रहली अछि । जँ भाषा एवं साहित्यक प्रति इएह भावना बनल रहत, निश्चित रूपसँ आबयवला समयमे स्थितिक भयावकता विकट होयत । भाषाक अवलम्बनसँ संस्कार सुभाषित होइत छैक । संस्कारके सुभाषित होयब वस्तुतः पारिवारिक व सामाजिक जीवनमे श्रेष्ठ व सर्वोत्तम व्यक्तित्वकें प्रखरता प्रदान करैत अछि । भाषा पूर्वज प्रदत्त विलक्षण, अनुपम व अलौकिक उपहार थिक जाहिकें धारण कयलासँ परिवार आओर समाज गौरवक अनुभव करैत अछि । हमर महान पूर्वज अभावमे रहलाक उपरांतहुँ भाषाकें जाहि प्रकारें जीवंतता प्रदान कयलनि, वर्तमान पीढ़ी ताहि अनमोल धरोहरकें यथोचित सम्मान प्रदान करैत आबयवला पीढ़ीक लेल उदाहरण प्रस्तुत करैथ, जाहिसँ विलक्षण धरोहरक प्रखरता एवं उपादेयता बनल रहैक ।
प्रवासमे अनेकों मैथिलसेवी संगठन विभिन्न नगर, उपनगर व महानगरमे साहित्यिक संगोष्ठी आयोजित करैत आबि रहल छथि । ओहि संगठनसँ संबंधित महानुभाव लोकनिसँ विनम्रतापूर्वक अनुरोध करब जे आयोजन अवश्य करी परन्तु साहित्यिक गोष्ठी, कवि-गोष्ठी आदि आयोजन केर माध्यमसँ सामाजिक समुत्थानक संदेश निर्गत कराओल जेबाक चाही जाहिसँ सभ क्यो लाभान्वित भS सकैथ । साहित्यिक सृजन समाजमे पसरल गुण-दोषकें स्पष्टतः रेखांकित करैत अछि । साहित्य संस्कृतिक प्रतिबिम्ब बनि मार्गनिर्देशनक आधार सेहो बनैत अछि । श्रेष्ठ साहित्य सामाजिक सामंजस्यताके नव दशा व दिशा प्रदान करैत अछि । जखन अपन चिंतनकें मैथिल भाषाक विपुल साहित्य भंडार दिशि आकृष्ट करैत छी शरीरक रोम-रोम रोमांचित होइत अछि आ अतीतक साहित्यिक गौरव-बोधसँ गर्वक अनुभव करैत छी । हमरालोकनि स्मरण करैत छी विद्यापति प्रणीत गीतकाव्य-धाराक प्रवाहमान गतिसँ प्रवाहित उपादेयताके अवलोकित कयकें । आइयो मिथिलावासीक कंठमे हुनक गीतकाव्य ओहिना जीवंत बनल अछि जहिना बाबा अपना समयमे भविष्यक दिशा व दशाके कल्पनाक आधार बनाय रचना कयने छलाह । अनेकों मैथिली साहित्यकार, गीतकार अपना लेखनीकें ओजपूर्ण शैलीमे प्रस्तुत कय मैथिली साहित्य-भंडारकें विपुल बनेलथि । गोविन्ददास, रामदास, उमापति, लोचन, चतुर्भुज, भानुनाथ तथा हर्षनाथ जाहि प्रकारे मैथिली साहित्यके फरिपुष्ट कयलनि ओहि लेल मैथिल समाज ओहि महान यशस्वी युगपुरूषकें वंदन करैत गौरवक अनुभव करैत छथि । कविताक क्षेत्रमे चन्दा झा, मनबोध कविताके विशेष जननोमुखी बनौलनि । चन्दा झाक उपरांत सीताराम झा द्वारा अनेकों विषय-वस्तु परक लेखनी मैथिली काव्यक उपलब्धि मानल जाइत अछि । यद्यपि स्वाधीनताक पूर्वहुँ मैथिलीमे ख्यातिप्राप्त महाकाव्य, खण्डकाव्य ओ गीत-प्रगीतक रचना भेल छल ओ उदीयमान नक्षत्रसँ मैथिली काव्याकाश जगमगा रहल छल मुदा एहू कविसभक समावेश काल प्रेरणा-पाथेय बनि अद्भूत जागृतिक संदेश निर्गत कयलनि । भुवनेश्वर सिंहक प्रलयंकारी स्वर नञि बिसरल जा सकैत अछि । ओ लिखने छथि :
“देखत जगत हमरो शान-बान,
हम घुरा लेब चिर लुप्त मान ।
त्रिभुवन मे पसरत सुयश गान,
हम करब प्रलय, हम करब प्रलय ।”
भोलालाल दासक उपरांत मधुप, सुमन, विनीत, कलेश, किरण, आर. सी. प्रसाद सिंह, तंत्रनाथ, जयनारायण मल्लिक सदृश कवि पीढ़ीक उदयसँ मैथिली साहित्यक भंडार संबर्द्धित होइत रहल । यायावर कवि बाबा नागार्जुन कवितामे जे नवीन क्रांतिकारी परिवर्तन आनलन्हि ताहिके की बिसरल जा सकैत छैक ? यात्रीजी शिल्प व कथ्य दुनू काव्यके नव दिशामे मोड़ि देलनि । हिनक ‘चित्रा’ आधुनिक काव्यक प्रस्थान विन्दूक संग-संग मीलक पाथर सिद्ध भेल ।
ई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि नव पीढ़ीके जनतब हेतु अति आवश्यक अछि । एहिसँ अतीतक गौरव-बोध, वर्तमानक दशा-दिशा ओ भविष्यक परिकल्पनाक सशक्त आधार बनि सकत । आवश्यकता अछि जे प्रवासमे समर्पित साहित्यकार, उदारचित्त समाजसेवी तथा साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था एहि नवीन पीढ़ीक युवा वर्गक सचेतनाक लाभक संभावना ओ लक्ष्यसिद्धिक मार्ग प्रशस्त करैथ । अनुभव व प्रेरणा प्रौढ़ तथा वयोवृद्धोसँ लेल जेबाक चाही । कार्यक रूपरेखा निर्धारित हो तथा क्रमबद्ध अग्रगति-सुगतिक मार्गक अवलम्बन करैत युवा साहित्यकारक दल लक्ष्यसिद्धिक दिशामे आगू बढ़ैथ से श्रेयस्कर होयत । ठामठाम प्रवासी समाज नगर-उपनगरमे साहित्यिक परिचर्चा शिबिरक आयोजन करैथ जाहिसँ यत्र-तत्र-सर्वत्र मानसिकतामे वांछित परिवर्तनसँ सामाजिक एवं साहित्यिक एकरूपता स्थापित भS सकय । इत्यलम् । जय श्री हरि ।