“शिक्षा मे मिथिलाक यैह हाल – अपने लोक अपन लोकक उन्नति सँ जरैत” – सुभाष बिरपूरिया कहैत छथि आर सच्चाई यैह छैक अपन मिथिलाक।
लोक कहियो पाछू छूटल केँ डेन पकड़ि एकपेरिया देने टपा दैत छल, अर्थात् आगू बढा दैत छल। गामक अभिभावक लोकनि लगभग सब दरबज्जा भोर आ साँझ जाएत छलाह, ई देखैत छलाह जे केकर बच्चा पढाइ कय रहल अछि आर केकर नहि… जे पढाइ सँ देह चोरबैत छल ओकरा सरेआम डाँट-फटकार करैत एकटा सामाजिक भय-दंडक सीमा मे राखल जाएत छल। मुदा आइ ई सब बात लगभग बन्न अछि।
कियैक? कि ई आपसी ईर्ष्या थीक? कि लोक एक-दोसर सँ जरैत अछि?
हमरा बुझने ई जर अथवा ईर्ष्या नहि, ई वास्तविकता मे सामाजिक व्यवहार मे राजनीतिक अव्यवस्थाक बड पैघ कैन्सर समान रोगक प्रवेश थीक – सब कियो व्यक्तिवादी आ स्वार्थक जकड़-पकड़ मे विचित्र ढंग सँ फँसि चुकल छी। जातिवादी विभाजन, आर्थिक विषमता सँ वर्गीय विभाजन, शिक्षाक निजीकरण सँ बौद्धिक विभाजन, जेम्हर देखू ओम्हर विभाजन; सौहार्द्रता आ सद्भावनाक घोर अकाल, केकरो सँ कियो मतलब राखय लेल नहि चाहि रहल अछि। एक-दोसर सँ कटल-फटल अपने चिन्ता मे चूर-चूर भेल अछि। मानवीय पक्षक गोटेक बात छोड़ि देल जाय तऽ दियादो मे केसकट्टी बन्द होयबा समान दूरी बढि गेल अछि समाज मे।
एकर समाधान कि, कतय? ई प्रश्न सब लेल अछि।
जय मिथिला – जय जानकी!!
हम त जनकक मिथिलाक एक संतान छी। गर्व अछि जनक पर। मानैत छी एखनहु हुनकहि सूत्र केँ, बिना एक-दोसरक योगदान व सहयोगक कोनो टा काज नहि होयत, जेना बियाह हो वा श्राद्ध या उपनयन या छठिहार या दाह-संस्कार – सब विध-व्यवहार मे सब जाति-समुदायक निर्मित वस्तुक उपयोग सँ कार्य पूरा कएल जेबाक नियम संकेत दैत अछि जे हम सब एक-दोसराक समस्या केँ बुझी, सब केँ ऊपर उठाबी, समाज केँ प्रगतिशीलताक दिशा मे सामूहिक प्रयास सँ आगू बढाबी। अपन मतदान तक सब कियो आपसी सहमति सँ करी, गामक सौहार्द्र केँ ओहि छद्म नेताक चक्कर मे बर्बाद नहि करी जे मात्र वोटक बेर मे जातियताक बात करय, पिछड़ा आ दलित केर हितक बात करय, समाज मे एक-दोसर समुदाय बीच दरार बढाबय…। सतर्कताक आवश्यकता अछि। राजनीतिक स्वार्थ सँ अव्यवस्था लोकतंत्र केर संख्याबल सर्वोपरि होयबाक कारण ई भेल अछि, अहाँ गुणस्तर आ बौद्धिकता केँ नकारब त समाज केँ आगू बढेनिहार केओ राजनेता नहि आओत। समाजक लोक आपस मे परस्पर सहयोगक भावना सँ मात्र ई सर्वहितकारी कार्य केँ अंजाम, मंजिल, अन्तिम सफलता धरि पहुँचा सकैत अछि।
हरिः हरः!!