।। गजल ।।
नहिं एलै राति निन्द बस लिखैत गेलहुँ
अपन दर्द कागज पऽ निखारैत गेलहुँ
रही जमिनपऽ कोना छुबि सकब अकाश
बस तरेगन बिच, चाँद निहारैत गेलहुँ
कमजोर रहितौँ तऽ कहिया टूटि जैतहुँ
छी नरम ठाढि सभ आगु झुकैत गेलहुँ
ओ जहिना-जहिना बदलैत गेलै रस्ता
हम ई जीनगीकेँ ओहिना पिसैत गेलहुँ
आयल अशोककें जीनगीमे हावा बनिकऽ
ओहे आन्धीसँ हम जीनगी सिखैत गेलहुँ
सरल वार्णिक बहर–१६
लहान- ४ रघुनाथपुर, सिरहा, नेपाल
हाल- दोहा, कतार
साभारः फेसबुक – कविक अनुरोध पर प्रकाशित