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अशोक कुमार सहनीक मैथिली गजलः सरल वार्णिक बहर – १६

।। गजल ।।

ashok sahani2नहिं एलै राति निन्द बस लिखैत गेलहुँ
अपन दर्द कागज पऽ निखारैत गेलहुँ

रही जमिनपऽ कोना छुबि सकब अकाश
बस तरेगन बिच, चाँद निहारैत गेलहुँ

कमजोर रहितौँ तऽ कहिया टूटि जैतहुँ
छी नरम ठाढि सभ आगु झुकैत गेलहुँ

ओ जहिना-जहिना बदलैत गेलै रस्ता
हम ई जीनगीकेँ ओहिना पिसैत गेलहुँ

आयल अशोककें जीनगीमे हावा बनिकऽ
ओहे आन्धीसँ हम जीनगी सिखैत गेलहुँ

सरल वार्णिक बहर–१६

👤‘अशोक कुमार सहनी’

लहान- ४ रघुनाथपुर, सिरहा, नेपाल
हाल- दोहा, कतार

साभारः फेसबुक – कविक अनुरोध पर प्रकाशित

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