पावैन तिला संकराइति
– घनश्याम झा, राघोपुर, मनीगाछी, दरभंगा
आबि गैलैक मिथिलाक पावैन,
अहियौ बेर तिला संकराइति ,
बडकी काकी कुटलैन चुडा,
भैय्या अनलथि गुडक भेलि ।
भीड जुटल कन्सारक सौंझा,
देखियौ देखियौ भारी जुटान,
चुडा, मुरही, अरू तिलक लाई,
बनबैक खातिर सभ भेल बेहाल।
घर-घर आ गाम गाम मे,
पसरि गेल सगरो नवका उमंग ,
बुढबो कुदि रहल छथि,
अबितहि परव तिला संकराइति ।
भोरे उठि क धिया पुता सभ,
नहाथि पोखैर धार इनार ,
दादी पुछैथि बाजु बाबु ,
तिल बहबैय आ कि नञ ।
भरि भरि चंगेरा ल क बैसल ,
सभ कियौ चुडलाई, तिलवा मुरलाई,
बच्चा कक्का बजला तखनैह ,
आब त शीघ्र चुडा आ दही लाऊ ।
कियौ पबैत छथि चुडा दही ,
कतौह बनल अछि तप्पत खिच्चैड,
संगहि बनल अछि तरूआ तरकारी,
पापड, घी खम्हौर आ बडी ।
ब्राह्मण बाबु नोतल गेल छथि,
श्रद्धा पूर्वक भोजन करवैत छथि
दान दक्षिणा दियौन यथाशक्ति ,
मिथिलाक अछि इ अनुपन संस्कृति ।