हरेक स्त्रीक जीवनक एक कविताः विकल्प

कविता

dr-pratibha-jha-unmesha1– डा. प्रतिभा झा ‘उन्मेषा’, मुम्बई (मूलग्रामः विरसाइर, मधुबनी)

विकल्प

हम जन्मसँ एखन धरि जे सहलहुँ
ओ नारी जातिक अपमान थिक।
लोक कहिया धरि करत ई गुमान
जे नारी सृष्टि उत्पत्तिक प्राण थिक।।

जन्म लेलहुँ बेटी बनि जहिया
मायक छल घोर अपमान भेल।
कुलदीपक के आशा सबहक
घरबैयो कहलनि फेर बेटिये भेल।।

शिक्षाके अवसर जखन आएल
थम्हाओल गेल घरक सब काज।
कहल गेल ई थिकौ तोहर नसीब
हृदय व्यथित छल देखि ई समाज।।

कोना लोक स्त्रियोके बूझत समान
अधिकारक समुचित सम्मान करत?
स्त्री थिकी मात्र उपभोगक साधन
एहेन विचार सS परहेज करत??

स्त्रिये थिकी जगदम्बा एहि जगमे
जिनका आगू सब शीश नमावथि।
स्त्री छी हमहूँ ओहिना संसारक
हमरा समाजक भार बतावथि।।

देखि-देखि ई व्यथा होइत अछि
स्त्रीरुपी शक्तिक मूर्तिक सम्मान।
स्वार्थवश जे शक्ति कहथि हमरो
किए समाजमे स्त्रीक नहि स्थान।।

सोचैत-विचारैत इएह समझलहुँ
सम्मान अपन गुण ओ शक्तिमे छै।
पाएब ओकरा आब कठिन नइ
जे शिक्षा ओ संस्कारमे निहित छै।।

जौं होयब हमहूँ सुशिक्षित नारी
तS होयत हमरो सगतरि सम्मान।
एकर मात्र एक्कहिटा अछि विकल्प
शिक्षित करब स्त्रीके समाधान।।

बस आब हमर ई अछि संकल्प
स्त्रीके पहिराबी शिक्षाक परिधान।
ई नारी आब अबला नहि रहती
सबला बनि जगमे पौती सम्मान।।