मिथिलाक विद्वान् केँ मूर्ख विद्वान् सँ सीख लेब आवश्यक

murkh-vidwanसच त ई छैक जे आइयो मिथिलाक पांडित्यपूर्ण आचार-विचार आ व्यक्तित्व सब देश-विदेश सब ठाम आर्थिक रूप सँ अपन मजबूत स्थिति बनौने छथि। ओना सामान्य दृष्टि सँ देखला पर अर्थक संग-संग वैचारिक सबलता सेहो भरपूर भेटैत अछि। परञ्च मिथिला आइ दुइ देश मे रहितो स्वयं कतहु नहि आ विकृत पहिचान सँ एतुका लोक केँ विभूषित करैत छैक ताहि लेल विद्वत् मत कतहु सँ प्रभावित-विचलित नहि बुझाएत अछि, ई चिन्ता आ चिन्तन दुनू बात बुझाएत अछि। जाहि मिथिलाक निर्माणकर्ता निमिपुत्र राजा मिथि छलाह, ओ पिताक शिक्षा सँ शरीरक महत्व मात्र मानवीय जीवन लेल नैसर्गिक क्रिया हेतु बुझलनि, संग्राही प्रवृत्ति आ कि भौतिकतावाद मे कहियो नहि ओझरेलाह आर एहि तरहें हुनका पास अकूत संपत्ति रहितो ओ कहियो ओहि संपत्तिक मद मे चूर नहि भेलाह। उदाहरण भेटैत अछि रामायण मे, सीताक विवाह लेल जखन देवगण सब सेहो विभिन्न स्वरूप मे मिथिला एलाह त देवलोकक राजा इन्द्र स्वयं राज-दरबार सँ पहिनहि सजल-धजल घर देखि भ्रम मे पड़ि जाएत छथि आ ओतय जाय जिज्ञासा करैत छथिन जे हम सब अयोध्याक राजकुमार रामचन्द्र जी केर विवाह मे बरियाती मे आयल छी से कहू जे बियाहक घर तऽ यैह थीक, मुदा जनमासा कतय अछि। वास्तव मे ओ घर तऽ रहैत छैक नीचकुल डोम केर जे राजधानीक बाहरी सीमापर अवस्थित अछि। परञ्च ओतुका सजावट आ चकाचौंध देखि इन्द्र भ्रमित भेल छलाह। साक्षात् लक्ष्मीक अवतार आठो ऋद्धि-सिद्धिक मेलकाइन सीता केर विवाह छल, आर ई चमत्कार मिथिला मे नहि होइतैक तऽ आन ठाँ कतय? ई बात इन्द्र नहि गौर कय सकलाह आर भ्रम मे फँसि ओहि घर चलि गेलाह जे डोमक छल। डोम बड नीक सँ बुझबैत कहलकैन, सरकार! हम त डोम छी। महाराजाक घर बीच राजधानी मे छन्हि। कने आरो आगू जाउ। इन्द्र चकित भऽ गेल छलाह। कवि लोकनि एहि घटनाक्रम केँ अपना-अपना तरहें वर्णन कएलनि अछि। आर, आइ वैह सिद्धभूमि जानकीक मिथिला शिथिला भऽ गेल अछि। राज्यक उपेक्षा त चरम पर अछिये, एतुका सम्भ्रान्त आ सज्जन कहौनिहार विद्वत् समाज सेहो एकर कम उपेक्षा नहि कय रहला अछि। ओ अपन मूल पहिचान केँ विकृत बनेबाक लेल स्वयं कोनो टा कसैर बाकी नहि रखने छथि।

अपवादक बात छोड़ि देल जाय तऽ आब मिथिलाक पाण्डित्य परम्परा लगभग अन्त भऽ गेल अछि। संस्कृत शिक्षा मे विरले कियो ब्राह्मण छात्र पढबाक रुचि रखैत छथि। लगभग शत-प्रतिशत परिवारक एक्के टा सोच होएत छैक जे धिया-पुता पढि-लिखि लियय आर बाहर कमाय लेल चलि जाय। धिया-पुता कमाय लेल बाहर जाएत अछि तऽ आब ओकरा मिथिला सँ बेसी पैघ आ जेरगर मिथिला बाहरे परदेश मे भेट जाएत छैक। ओ धीरे-धीरे ओहि नव मिथिला जे परदेश मे अवस्थित छैक ओतय अपन घर-अंगना कोनो बहुमंजिला फ्लैट मे अथवा कतहु स्वतंत्र कोठी कीनिकय बना लैत अछि। गृह-प्रवेश सँ लैत दुर्गा पूजाक जयन्ति पारबाक धरि सब काज ओ अपन नव घर मे करैत अछि। करबो कियैक नहि करत? करोड़ों रुपयाक संपत्ति संग्रह करैत भौतिकतावादी सुख लेल ओ सब किछु निछाबड़ कय देलक आर आब जखन कमाई एतेक पूरि गेलैक तऽ ओ सब काज ओत्तहि कियैक नहि करय? सवालो अपने पूछत, जबाबो अपने देत, बाकी मूल्य आ मान्यता सब पुरान घसल अठन्नी समान परंपरा मात्र कहाएत अछि आर ओ इतिहास भेल। इतिहास माने बीतल बात।

पाण्डित्य परंपरा मे आब पहिनुका जमाना जेकाँ एक्के टा जाति केर वर्चस्व नहि रहि गेलैक अछि। आब तऽ सब कियो पण्डित होयबाक दाबी करैत अछि। ब्राह्मणक वृत्ति भले ब्राह्मण करय वा नहि आन जाति अपन सजगता सँ सम्पूर्ण धर्म केर निर्वाह पाकल पंडित जेकाँ करबे टा करत आ अपना हिसाबे कर्महीन ब्राह्मण केँ दूसब तऽ मानू आइ-काल्हिक आम बात भऽ गेल छैक। ब्राह्मणेतर आनो समाजक जे पंडित विद्वान् सब छथि ओहो सब मिथिला सँ कतेक जल्दी पलायन करी ताहि लेल आतूर छथि। हुनको सब केँ परदेशक रहन-सहन आ बोली-व्यवहार बेसी पसीन छन्हि। गाम तऽ आब पिकनिक स्पौट जेकाँ साल मे छुट्टी बितेबाक लेल घूमय कियो-कियो आबय चाहैत छथि, बहुते तऽ सालों-साल बीतलाक बादो कोनो फिक्र तक नहि करैत छथि।

एहना सन अवस्था मे कतय सँ एकटा विषय सोसल मीडिया पर धमाल मचौने अछि, ओ थिकैक मिथिला राज्य निर्माण करू। बिहार अपन १०० वर्षक और्दा मे बड उपेक्षा केलक, एतुका सब मूल्य-मान्यता आ विशेषता चौपट होयबाक कगार पर अछि किंवा चौपट भऽ गेल – से अपन राज्य केर निर्माण करू, तखनहि यथार्थ विकास कय सकब आर पलायन सेहो रुकत, भागल लोक सब फेर सँ गामक समृद्धि सुनिकय देखय लेल औता तऽ एखन वासडीहक घर पर बनल घर मे बादूड़ आ मकड़ाक खोता लागल देखि कहीं आँखि मे पानि औतैन आ फेर सँ गामक समृद्धि लेल ओहो सब सोचता। पूँजी निवेशक माहौल बनतय। आर्थिक कारोबार – नवनिर्माण कार्य  – नगदी फसलक खेतीबारी – सब तैर परती-पराँठ पड़ल खेतो मे – हरियाली फेरो लौटतैक। आदि-आदि…! यैह सब बात सपना देखैत आ देखबैत किछु लोक मिथिला-राज्यक मुद्दा या कहू जे झुनझुन्ना बजा रहला अछि आर मिथिलाक पण्डितजन सब कहकहा लगा रहला अछि। ओ सब कहैत छथिन, “ईह! बड़ा एला अछि राज्य बनाबय! जहिया हम सब गाम-समाज मे रही तहिया तऽ किछु कैले नहि पार लगलन्हि आर आब जखन दिल्ली-मुम्बई-न्युयोर्क मे घर-आंगन सब भऽ गेल अछि, साल मे दु-दु बेर समारोहो सब करैत छी – तऽ ई सब बड़ बुधियार जे मोन पारय एला जे गाम चलू। आब कथी के गाम चलू? कथी के मिथिला राज्य?”

एकटा मूर्ख विद्वान् केर मुद्दा जेकाँ लागि रहल अछि मिथिला राज्य – मिथिला के विकास, मैथिली भाषाक बात, साहित्य-संस्कृतिक संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन। याद होयत अहुँ सब केँ ओ कथा – मूर्ख विद्वान्! संस्कृत मे पढने होयब। चारि टा मित्र बड मिलनसार छलाह। तीन टा बड पैघ विद्वान्। एकटा निरा मूर्ख – पढाई-लिखाई मे अत्यन्त कमजोर। चारू सोचलाह जे चले भाइ, हमहुँ सब कतहु कमाय लेल जाय। तीन गोटा विद्वान् बजलाह जे अपना सब तऽ पढल-लिखल छी, कतहु नौकरी कय लेब – मुदा ई जे एगो मूर्ख अछि एकरा कोनाक रोजगार भेटतैक? दोसर कहलखिन जे एकरा गामे छोड़ि दहीन। तेसर कहलखिन जे ई नीक बात नहि, सब दिन संगे रहल, मित्र छी, चल एकरो लेने चली। जाएत-जाएत रस्ता मे एगो जंगल आयल। ओतय कोनो मरलहबा जानबरक हड्डी देखलखिन विद्वान् सब। आब विद्वाने छलाह तऽ किछु कय सकैत छलाह। एगो कहलखिन जे भाइ रे, बुझाइ य कोनो जानवर अकाल मृत्युक ग्रास भऽ गेल। दोसर कहलखिन जे अपन विद्या सँ एकरा जिया दे। तेसर कहलखिन तूँ दुनू गोटे अपन काज करे, हमरा प्राण फूकय अबैत अछि।

भऽ गेल – जहिना बात केलाह तिनू गोटे, तहिना काज शुरु भेल। पहिल विद्वान् सब हड्डी केँ एक ठाम संग्रह करैत जोड़ि-जोड़िकय ओकरा सँ ठठरी तैयार कय देलखिन। दोसर गोटे अपन विद्या सँ ओहि मे माँस, रक्त, धमनी, शिरा आदि सब किछु जोड़ैत मुंह, नाक-कान, आँखि सब जगह पर राखि देलखिन। तेसर जखन प्राण फूकय लगलाह कि ओ मूर्खाहा संगी कहैत छन्हि, “यौ मित्र! देखैत नहि छियैक? ई त कोनो खतरनाक बाघ बुझा रहल अछि?” आब दुइ गोट विद्वान् अपन विद्वता सँ सब काज पूरा कय देलाक बाद तेसर केँ अपन विद्वता कतहु थाम्हल हेतनि, ताहू मे मिथिलाक तेसर विद्वान् होएथ तऽ कहू जे ई कतहु संभव हेतैक? बस, ओ मूर्ख मित्र केँ चुप करैत कहलखिन, “ईह! आब ओ दुनू गोटा एतेक काज कय देलखिन से देखलाक बाद हम अपन विद्वता चोराकय राखब से अहाँ कोना सोचि लेलहुँ यौ?” ओ मूर्ख मित्र कहलखिन जे तखन कनी रुकू अपने विद्वान् लोकनि, हमरा तऽ जानक डर लगैत अछि, से हम कनी गाछ पर चैढ जाएत छी, तखन प्राण फूँकियौक एहि बाघ केँ।

तहिना भेलैक। मूर्ख मित्र गाछ पर चैढ गेलाह। तेसर मित्र अपन विद्वता सँ ओहि बाघ केँ प्राण फूँकि देलखिन। बाघ जखन फेर सँ जीब गेल तऽ वैह पुरनके खतरनाक मोड मे आबि गेल। ओत्तहि तीन गोट आहार समान जीव केँ पाबि चट-फट मे तिनू केँ मारिकय खा गेल। बाघ जखन ओतय सँ हँटल तऽ ओ तेसरका मित्र अपन जान बचाकय नुकाएत छिपाएत गाम लौटि गेलाह आ लोक सब केँ सब खिस्सा कहि तीन मित्रक श्राद्ध आदि संपन्न करौलनि। ताहि दिन सँ गाम-समाज आ इलाका मे ओ ‘मूर्ख विद्वान्’ नाम सँ प्रचलित भऽ गेलाह।

कहबाक तात्पर्य – मिथिलाक विद्वान् लोकनि किताब मे ब्रजस्थ मैथिल, नेवारी मैथिल आदिक चर्चा करैत छथि जे ओ सब सैकड़ों वर्ष पहिने मुगलकाल आ मल्लकाल मे क्रमशः अपन मूल स्थान पूर्णरूपेण छोड़ि राजा द्वारा देल राज्यक लोभ मे ओत्तहि रहि गेला आर बाद मे हुनकर सन्तान सब भाषा, संस्कार, परंपरा, रेबाज, रीत आदि बिसैरकय ओहि देशक भऽ जेबाक कारणे घर-वापसी संभव नहि भऽ पेलैन। आब ओ सब अपन नामक पाछू मे ‘मैथिल’ जोड़ि पुनः सौराठ सभा आबिकय तऽ गरीब मैथिल परिवार सँ सम्पर्क कय अपन बेटाक विवाह मिथिला मे कराबय लेल सोचैत छथि, फेर सँ अपन संस्कार केँ ग्रहण करबाक लेल आतूर छथि। मुदा मिथिलाक ‘मूर्ख विद्वान्’ सब नाक पर माछियो नहि बैसय दैत छथिन। तखन कि ई मानि लेल जाय जे मिथिलाक पढल-लिखल विद्वान् अपने सँ अपन प्राण आफद मे करैत मिथिला केँ ‘मूर्ख विद्वान्’ केर भरोसे छोड़ि देबाक लेल उद्यत् छथि?

हरिः हरः!!