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स्त्रीक पुनर्विवाह समाज कें अवश्य मान्य हेबाक चाही

लेख विचार
प्रेषित: दयानाथ मिश्र
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनीके धार, वृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय: पुरुष आ स्त्री के पुनर्विवाह मे समाजक मत भिन्न किएक।

पुनर्विवाह लडका के सबदिन सॅ होइत आयल अछि, मुदा लडकी के पुनर्विवाह पर कहियो मतैक नहि भय सकलै।
पुरूष के पुनर्विवाह के लेल तर्क देल गेल जे अकेले ओ कोनो यज्ञ कोना करता,बंश बृद्धि नै हेतनि आ मुइला पर पैठ नै हेतै। महिला कए लेल तर्क देलगेल जे एहिठाम कन्या दानक प्रथा अछि। जकर एकबेर दान भय गेल त ओकर दोबारा दान कोना होयत?
स्त्रीक पुनर्विवाह के चर्चा रामायण महाभारतक समय के कतौ नै अभरल अछि मुदा महाभारत के समय मे संतानोत्पत्ति के दृष्टिकोण सॅ अपन निकटतम सम्बन्धीक संग सहवास करक उदाहरण अछि। बिचित्र वीर्य के मृत्यु के बाद महान संत व्यास के आमंत्रित कयल गेल रहैक। बालि के मृत्यु के बाद सुग्रीव संग आ रावण के पत्नी संग बिभीषण के विवाह भेल छल से कतौ पढने छी। फेर शती प्रथा आयल। ई प्रथा त बिधवा पुनर्विवाह पर रोक सॅ बेसी अमानवीय प्रथा छल जाइपर रोक लगेलाह राजाराम मोहन राय। शती प्रथा पर रोक के बाद विधवा बिबाह शुरू भेल। 1955 मे हिन्दु मैरेज ऐक्ट बनल।1977 ,मे संशोधन भेल। ओइ मे पुनर्विवाह के छूट देल गेल।
मिथिलांचलक बात करी त उच्च वर्ग के चारि जाति ,आ सोनार के छोडि बाँकी सब जाति मे बिधवा बिबाह पहिनहि सॅ होइत रहैक मुदा आब उच्च वर्ग मे सेहो एहन बिबाह के सामाजिक मान्यता भेटि गेल छैक।बशर्ते की लड़की तैयार होथि। लड़की कए यदि बालबच्चा छैक तखन थोडेक दिक्कत होइत छैक मुदा बच्चा नै रहने ,चाहे वैधव्य होइ,परित्यक्ता होइ व डाइवोरसी होइक ,एहन बिबाह तुरन्ते भय जाइत छैक आ समाज मे ओकर स्वीकार्यता सेहो छैक। आब एहिसब परिस्थितिक बास्ते मिथिलाक लोक तैयार छथि जे हम नीक बुझै छी।

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