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स्त्री के मानवता मौलिक अधिकार सौं वंचित करब सर्वथा अनुचित

लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
#लेखनीक_धार वृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय: लड़का के पुनर्विवाह सहज आ लड़की के नै, से किएक।

अद्भुत बिडम्बना छैक अपन सभक मैथिल समाज के जे शिक्षित भेलाक उपरान्तो मोन सँ शिक्षित नहिं भेलहुँ। आइयो वेएह पूरान मानसिकता वेएह पुरूष प्रधान परिवार समाज के लेल छटपटाहट, स्त्री पुरुष के अधिकार आ कर्तव्य के बीच असमानता, स्त्री के समस्त गतिविधि पर शंका सँ देखवाक प्रवृति। लोक कहैत छैक जे बिवाह दू टा पवित्र आत्मा के मिलन थिकै जकर गवाही अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, चन्द्रमा आ ध्रुवतारा इत्यादि रहैत छैक। पति पत्नी के सम्बन्ध में सभ सँ पैघ विश्वास केर डोरी होइत छैक जे ओकरा जीवन भरि एकटा पवित्र वंधन में बांधने रहैत छैक, मुदा एकर बाबजूद स्त्री पुरुष के अधिकार मे असमानता एकटा बहुत पैघ बाधा बनि कऽ जीवन में असंतोष के रूप में कूढैत रहैत छैक। समाज एतेक शिक्षित भेलाक उपरान्तो स्त्री के आइयो घरक गहना के रूप में रखवाक भावना लोक के समाप्त नहिं भेलैक अछि आ एकर सभ सँ पैघ दोषी हमरा लोकनि स्वयं छी जे बेटी के सदैव हीन भावना सँ अवगत करबैत रहैत छियैइ। विद्यालय बेटी पेएरे कोना जायत? पेएरे ओकरा सँ चलल नहिं हेतैक, ओ कोनो बेटा छियैइ, ओ इ काज नहिं कऽ सकैत अछि, ककरहु बेटा सिगरेट पीबैत छैक तऽ लोक के ओहेन प्रतिक्रिया नहिं होइत छैक जतेक प्रतिक्रिया एकटा बेटी के देखि कऽ होइत छैक। यएह स्थिति बेटी के पुनर्विवाह के लऽ कऽ होइत छैक, जँ एक पत्नी के रहैत पति दोसर बिवाह करैत छैक तऽ समाज ओहि पत्नी के उपर बेसी लांछन लगबैत छैक जे कनियाँ बदमाश हेतैक, चरित्रहीन हेतैक मुदा जँ स्त्री दोसर बिवाह के बात कहय तऽ समस्त समाज ओकर विरोध मे ठाढ़ भऽ जाइत छैक, संगहि संस्कार, धर्म इत्यादि के विरूद्ध मानि कऽ पूरजोर विरोध करैत छैक जकर परिणामस्वरूप कतेको बाल विधवा समाज मे घुटि घुटि क मरैत छैक। परितज्या स्त्री बेसहारा समाज में कष्ट के जिनगी जीवाक लेल मजबूर रहैत छैक । जखन कि पुरूष दू तीन टा धिया पूता भेलाक उपरान्तो पुनर्विवाह करैत छैथि आ समाज हुनका उचित स्थान देवा सँ कनेको कोताही नहिं करैत छथिन्ह। कतेको लोक के मुंह सँ सुनवा में अबैत अछि जे पुरूष के इ जन्मसिद्ध अधिकार छियैइ, मुदा स्त्रीगण के नहिं, जे सर्वथा अनुचित थिकै। एहि पृथ्वी पर स्त्री आ पुरूष के समान अधिकार प्राप्त छैक मुदा अपन सभक पुरूष प्रधान समाज एहि विषय में विभेद उत्पन्न कयने छैक। आब पढल लिखल समाज में आस्ते आस्ते परिवर्तन भऽ रहल छैक। शिक्षित समाज आब एहि असमानता के अनुभव कऽ रहल छैक आ एकर निवारण हेतु किछु ठोस कदम उठाओल जा रहल छैक, एकरा लेल सुदृढ़ मानसिकता केर आवश्यकता छैक जाहि सँ समाज मे व्याप्त असमानता के दूर क’कऽ सुदृढ समाज के पुनर्निर्माण कएल जा सकय जाहि मे स्त्री पुरूष के समान अधिकार आ सहभागिता भेटए

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