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स्त्रीयो के पुनर्विवाह के समाज मे खुलल मोन से स्वीकार करब उचित

लेख विचार
प्रेषित: रिंकू झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
#लेखनीक_धार वृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि

विषय -पुनर्विवाह लड़का लेल जतेक सहज अछि, ओतबे लड़की के लेल किएक नहीं।
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पुनर्विवाह के मतलब भेल “फेर स यानी दुबारा स ब्याह करब आ घर संसार बसैब ।आब ओ चाहे कोनो पुरुष के होई वा स्त्री के। विशेष क विधवा वा विधुर लोकनि कियो भी भय सकय छथि आधुनिक युग में त तलाकशुदा महिला, पुरुष सेहो अहि मे शामिल छैथ।
हमरा आंहा के समाज मे महिला, पुरुष के बिच भेदभाव सामान्य बात छै। कारण पुरुष प्रधान समाज होबय के कारण पुरुष वर्ग के बर्चस्व अदौकाल स चली आबि रहल अछी। पुरुष के लेल हरेक कार्य उचित मानल जाइत अछि। हुनका उपर कोनो तरहक आरोप -प्रत्यारोप वा कोनो बंधन नहीं रहय छैन्ह। हुनका लेल पुनर्विवाह सहजता स मान्य छैन्ह । फेर चाहे विधुर रहैथ वा कोनो ऐहन पुरुष जे अपना पत्नी के रहैत बहु-विवाह करैथ।कारण किछु भी होई जेना पत्नी के संतान प्राप्ति में दिक्कत वा कोनो स्त्री स प्रेम प्रसंग वा छोट बच्चा के पालय के जिम्मेदारी आदि । दुती बर नामे परल छल ।समाजक सोच एतबे रहय छैन्ह कि बेचारा पुरुष असगर जीवन कोना कटता?,हुनकर राज -पाट वा संपैत के भोगतै?,वंश कोना बढतनि?, मुखाग्नि के देतैन आदि। धैर महिला लोकनि के दर्द अपन समाज के नहीं देखाई दै छैन्ह। समाजरुपी बंधन के जाल में फँसाक यातना के अथाह सागर में छोईर देल जाईत अछि गोता लगबय लेल। महिला के लेल पुनर्विवाह पाप मानल जाइत अछि। चाहे ओ बाल विधवा होई वा एक टा नवयुवती। समाज के सोच रहय छैन्ह कि ओ महिला अपन पती के मृत्यु के बाद जीवन भैर शोक में डुबल रहैथ। विधवा महिला के बेरंग जिनगी जीबय लेल मजबूर क दय छथिन। सफेद वस्त्र धारण करय लेल,माछ,मांस,पियाज, लहसुन, मसाला आदि बारय लेल मजबूर क दय छथिन।शुभ -अशुभ के नाम पर कोनो शगुन भरल काज में प्रवेश स वंचित क दय छथिन । नाना तरहक आरोप -प्रत्यारोप आर लांछना के संग टोन टोना मारि -मारि क हिनभावना स ग्रस्त कय दय छथिन।जिनगी जीयब दूभर क दय छथिन। अहि तरहक भेद-भाव हमरा नजरि में कोनो तरह स उचित नहीं अछि।
कहय छै जे विवाह दु टा व्यक्ति के बिच आत्मा आर शरीर के मिलन स होई छै। जाहि मे समाज आर परिवार के संग स्वयं भगवान साक्षी रहय छथिन । भगवाने त जोड़ी बनाबय छथिन । तखन मनुष्य अहि विवाह में महिला -पुरुष के लेल अलग-अलग रीवाज कोना बना दय छै।
आधुनिक युग शिक्षा आर तकनीकी के युग अछि। जाहि मे बहुत तरहक बदलाव भेल। आर समय के संग भ रहल अछि। धैर अखनो हमरा आंहा के समाज में पुनर्विवाह के खुलल मोन स स्वीकार नहीं केल गेल । खास क मिथिला मे । पुरुष के पुनर्विवाह समाज आसानी स पचा लय छैथ ,धैर महिला के बात हुनका गला स नहीं उतरय छैन्ह। कारण समाज में अखनो किछु रुढ़िवादी सोच के लोक अपना दकियानूसी सोच स बाहर नहीं निकैल रहल छैथ।आर समाज में ई भेद-भाव फैलौने छैथ।आजुक युग में महिला -पुरुष हरेक क्षेत्र में बराबरी के दर्जा निभाबय छैथ । कदम स कदम मिला क चैल रहल छैथ। महिला -पुरुष दुनू बराबर के सुखक हकदार छैथ। खुशी के बात ई अछि कि आब समाज अहि दकियानूसी सोच स बाहर निकैल रहल छैथ। अहि विषय पर बिचार क रहल छैथ।सबहक चेतना जागृत भ रहल छैन्ह। कोनो भी महिला अगर अपना खुशी स जिनगी में दुबारा आगु बढय चाहय छैथ।त समाज के बैढ -चैढ क हुनकर स्वागत करबाक चाहि। अभिभावक के ओकरा सहयोग करबाक चाहि। किछु वर्ण में ई सब पहिले स भ रहल छल।धैर आब उच्च वर्ग के लोक सब सेहो आगु आबि रहल छैथ । अपन -अपन बेटी,पुतौह के सुख के बारे में सोचय छैथ।जे सराहनीय कदम अछि समाज के। कानून के संग -संग हमरा आंहा के सेहो अपन आगु बढय परत।जय मिथिला जय मैथिली

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