कहियो ध्यान देलियैक?
हम-अहाँ मिथिला सँ छी। मिथिला मे विद्या धन केँ सब धन मे प्रधान धन कहल गेल छैक। विद्या मे सेहो पदार्थ विज्ञान सँ बहुत उपर आत्म-अध्यात्म विद्या केँ मान्यता देल गेल छैक। पदार्थ – अर्थात् भौतिक लब्धि कर्म आधारित प्रारब्धक एकटा फल कहिकय गारन्टी कयल गेल छैक। केवल एहि लोक टा लेल नहि, अनेकों लोक मे हमर-अहाँक अस्तित्वक परिकल्पना बुझबैत सर्वत्र कल्याण लेल जीवनपद्धतिक वर्णन कयल गेल छैक। तेँ कहल गेल अछि जे संसार सँ वेद लुप्तो भ’ जाय त मिथिलाक जीवनपद्धति सँ वेदक जिबन्त रूप फेर सँ प्रकट भ’ जायत। ओ लाइन छैक “धर्मस्य निर्णयं ज्ञेयो मिथिलायां व्यवहारतः”। यानि जन्म सँ लयकय मृत्यु धरिक जे किछु व्यवहार धर्म निर्णय अनुसार ज्ञानीजन निर्धारित कएने छथि से हमरा सब ओतय व्यवहार मे अछि।
आब लेकिन व्यवहार बड़ा तेजी सँ बदलि रहल अछि। उल्टा चलय लागल छी हमरा लोकनि। पृथ्वी दिवस पर पर्यावरणक विषय हमरा सभक लेल विमर्शक विषय बनैत अछि, लेकिन अदौकाल सँ बाप-पुरखाक बनायल नियम संग समझौता करय मे कनिकबो देरी नहि कय रहल छी। कनि ध्यान दियौक –
१. पोखरि-इनार भाइथ रहल छी – जलभंडारण सँ जमीन नीचाँक जलस्तर समुचित रूप मे बनल रखबाक लेल बाप-पुरखा जलस्रोतक समीप मानवीय बसोवासक परिकल्पना कयलनि। पोखरि या इनार बासडीह पर हेबाके टा चाही से सूत्र छल। मुदा आब कल आ नल के जल त चाही, मुदा जलभंडारणक कोनो जोगाड़ नहि अछि। तेँ गर्मी अबिते कल-नल के जल सुखा जाइत अछि आ पानि-पानि लेल तरसैत रहैत छी मिथिलहु मे।
२. जुड़ि-शीतल जेहेन महान पाबनि खाली खाय-ढ़कोसय टा लेल बाँचि गेल अछि – हँ, जिह्वा केँ तरह-तरहके व्यञ्जनक स्वाद चाही से खेनाय-पीनाय त चाहबे करी, लेकिन खाय-पिबय के अलावे जे पाबनिक मूल व्यवहारिकता छल तेकरा पूरा-पूरी अन्ठा रहल छी। न थाल-कादोक होली खेलायब आ न पोखरि उड़ाहल जायत। न कलम-गाछी जा कय जलक शीतलता सँ गाछ-वृक्ष केँ जुड़ायब आ न बाप-पुरखाक समाधि (सारा) पर डाबा बान्हि जलसिंचन करब, नहिये शिकार खेलाकय शाही, खर्हिया आदि खाद्य वनपशु केँ मारि हिन्सक वनपशु केँ हरकेबाक काज करब। अगबे गप मे पर्यावरणक रक्षा आ फोटो खिंचाबय लेल वनरोपणक दृश्य – एकरा सभक त होड़े लागल बुझू।
३. सामुहिकता छोड़ि एकलता लेल व्यग्रता – एखन सप्ता-डोरा चलि रहल अछि। दाय-माय सब रवि-शनि पाबनि आदिक बहन्ने सामुहिकता मे धर्मक कथा-गाथा कहैत-सुनैत छलीह, एखनहुँ यदाकदा कतहु-कतहु बाँचल अछि। विविध सम्बन्धक समीकरण आ संयुक्त परिवारक महत्ता केँ बाकायदा निर्वाह कयल जायवला लगभग सब पाबनि मनायल जाइछ अपना ओतय। आनन्द प्राप्तिक गूढ़ सूत्र कहल जाइछ एकरा। लेकिन आब शेल्फी खिंचाकय दिनकर-दीनानाथ केँ भोग लगायब, लेकिन सासु, दियादिनी, ननैद, भाउज, जैधी, भैगनी, भतीजी, धी, बहिन, बेटी आदिक सामुहिकता व संयुक्त शक्ति संग स्वयं लेल आत्मबल नहि ताकैत छी हम सब। ‘हम सुनरी, पिया सुनरी, गामक लोक बनरा-बनरी’ – ई सब फकरा आब ओहिना खुलेआम चरितार्थ कय रहल छी। संयुक्त परिवार तक नहि रहि गेल आब। भिन-भिनाउजक कथा अनिवार्य नियम बनि गेल अछि। तेँ आइ मिथिला राज्यविहीन, दुइ-दुइ देशक सीमा मे विभाजित आ अपन कोनो सामरिक शक्ति नहि। भैर गाम नेते-नेता आ कनिये बरखा भेला पर भरि गाम थाले-थाल।
४. कुटुमारे भ्रमण आ घटकैती प्रकरणक परम्परा लोप भ’ गेल – सर-कुटुम्बक महत्व कतेक छल जे ७ पुस्ता पैतृक आ ५ पुस्ता मातृक धरिक हिसाब बाप-पुरखा सब अनिवार्य रूप मे राखल करथि। आब त सहोदर-सहोदर बीच दूरी अछि। हम विराटनगर, हमर छोटका दिल्ली! हमर दीदी-बहिन आ भागिन-भैगनी सब अपनहि दुनिया मे मस्त, सब सँ सब केँ टिरबिये (टेढ़िये) टा देखाइत अछि। पहिने गाम मे एक-दू गो फुचरा (अहंता मे डूबल – भारी-सारी-गिरिधारी) होइ, आब त ई फुचपनी (अहंता, ईगो) जन-जन मे भेटैछ। एहेन स्थिति मे पहिने जेकाँ कुटुमारे एनाय-गेनाय, विवाह योग्य बेटी-बेटा लेल कथा-प्रस्ताव उचारनाय आ वैवाहिक समाधान ससमय निकालि लेनाय, सृष्टिक सुन्दर सिद्धान्तक अनुपम संस्कार विवाह मे कतहु कोनो समस्या नहि छल से आब त हजारक-हजार लोक केँ अछिया पर हरैद-चून लगबाक अबस्था बनि गेल अछि। तैयो गप मारय बेर मे देखब जे बिघाक-बिघा मे पुदीनाक खेती होइते अछि।
५. मैथिल ब्राह्मणक वैवाहिक सभा – मिथिलाक मैथिल ब्राह्मण मे वैवाहिक अधिकार सर्वथा कठिन मानल गेल अछि, तेँ कुल ४२ ठाम सभावास केर माध्यम सँ वर-कन्याक वैवाहिक अधिकार लेल विधिवत् निर्णय, ७ पुस्त पैतृक ओ ५ पुस्त मातृक पीढ़ी मे सीधा रक्त सम्बन्धक जाँच उपरान्त मात्र ‘अधिकार निर्णय’ होइत छल। आब त गोत्र सेहो मिलेनाय जरूरी नहि बुझल जाइछ। अधिकार निर्णयक बात तँ दूर, सिद्धान्त लेखन आ कुलदेवता सँ प्रार्थना, षोडश मातृका पूजा, आभ्युदयिक श्राद्ध आ पितर-पुरखा केँ प्रसन्न कय विवाहक ऐगला बिध करबाक नियम, आम-मौह विवाह व अन्य विभिन्न लौकिक-पारम्परिक नियम-कायदा सब गेल तेलहन्डी मे! टका कमेबाक पाछाँ एतबा इंगेज्ड भ’ गेल लोक जे बाप-पुरखाक बनायल सारा नियम-कायदा केँ ताख पर राखि मनमौजी बिध-बिधान सँ कय लिय’ आ निवृत्त भ’ जाउ। सौराठ (मधुबनी) आ ससौला (सीतामढ़ी) मे वैवाहिक सभावास लेल मिथिला पञ्चाङ्ग मे तारीख त तय होइत अछि, मुदा सभागाछी मे कार कौआ आ ऊल्लू-तितिर-बटेर सब छोड़ि बाकी कियो कतहु नहि देखाइत अछि। माधवेश्वरनाथ महादेव सेहो जीर्ण अबस्था मे रहथि/छथि, दरिभंगा महाराजक ट्रस्टी सभक मौजमस्ती मे स्टेटक सम्पत्ति पर बाझ जेकाँ छीनाझपटी चलि रहल अछि। दबंग ग्रामीण सब सारा जमीन पर अपन-अपन कुब्बत अनुसार कब्जा जमौने अछि। सरकार मूकदर्शक बनिकय आ गामक अगुआ समाजसेवी व नेतागण सब हिजड़ाक फौज बनिकय ‘हाय-हाय’ गाबि रहल अछि।
आब बेसी लम्बा कयलो पर पढ़ाइ मे रुचि रखनिहार त पढ़बे करब… मुदा कतेको अपाटक केँ हार्ट फेल हेबाक जोखिम देखैत लेख केँ एतहि विराम दय रहल छी। कोन अकलबेरा सँ निकलि रहल छी हम मिथिला समाज से स्वयं मन्थन कय लेब। भरि राति नीन्द तक नहि आओत, उपरोक्त उल्टाबाइनक संख्या शताधिक भ’ जायत। खेतीपाती, पशुपालन, स्वरोजगार, स्वाबलम्बन, स्वाभिमान, सामर्थ्यवान् – जाहि कोनो मापदण्ड पर पुरखाक बात-विचार आ आजुक हिसाब-किताब देखब त बुझा जायत जे भौतिक सम्पन्नताक महल-अट्टालिका नीक भेल या फेर ताहि दिनक फुसक झोंपड़ी आ माटिक कोठी-बर्तन नीक छल। अस्तु! कोनो बातक टीस किनको उठल हो त अंग्रेजक सिखेलहा चाहक चुस्की सँ मोन शान्त कय लेब, तमसेला सँ खून जरत। ॐ शान्ति!!
हरिः हरः!!