नञ हम रुकब – नञ हमर कलम रुकत

ghanshyam-jha2कविता

– घनश्याम झा, राघोपुर, मनीगाछी, दरभंगा

ककरो अछि ताकत जे रोकि देत हमर कलम केर गति,
कतबो कियोक छटपटायत नञ रूकत हमर कलम एको रत्ती।

नञ हम रूकब , नञ रोकब कलम कें,
लिखबे करब हम अप्पन अभिव्यक्ति ,
क’ देबय उघार सबटा ठेकेदार के।

ओ ठेकेदार जे करैत एला चुगलखोरी,
ओ ठेकेदार जे चलैत एला भ्रष्ट पथ पर,
हुनका त’ दरद हैवे करतनि हमर कलम सँ।

ई त’ हमर  लाठी थिक भ्रष्ट लोकनिक खातिर ,
ई त’आवाज थिक गरीब वा इमानदारक।

अखनो अछि समय चेत जाय जाउ,
नञ त चलत हमर कलम अपराधक खिलाफ,
चलत हमर कलम बेईमानक खिलाफ।

हम त लिखबे करब, अहाँ सोचू,
नीक रास्ता अपनाबु नञ त आगु देखु ,
छोडि दिय’ हमर अहि समाज के,
जुनि जराबु अहि निर्मल संसार के।