जातिगत विषमता, मिथिला आ समाधानक उपाय

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

काल्हि एक सज्जन मित्र/भाइ विकास समाजसेवी कोनो मुद्दा पर चर्चा मे सहभागिता दैत एक नव विन्दु “जातिगत विषमता” सनक विषय प्रवेश करौलनि हमरा मस्तिष्क मे…. हुनका सँ पूछला पर बात एम्हर-ओम्हर तऽ कहला मुदा सही-सही ढंग सँ हम नहि बुझि सकलहुँ। आर तेकर बाद सँ एहि विषय पर अध्ययन गुगल गुरुजी संगे करब आरम्भ कएलहुँ। परिणाम बहुत सार्थक भेटल। मिथिला केर परिप्रेक्ष्य मे सेहो ई विषय बहुत महत्वपूर्ण अछि आर एहि दिशा मे अभियानी सब केँ जरुर समुचित शोधकार्य करबाक चाही।

 

सबसँ पहिने, कि थिकैक ई जातिगत विषमता?

 

वर्ण-व्यवस्था सँ उपजल जाति-उपजाति आ मनुष्यक व्यवहार मे विसंगति आ एक-दोसराक अस्तित्व प्रति कटुताक भावना सँ विभिन्न जाति-समुदायक लोक केर जीवन पद्धति मे विषमता केँ प्रशासकीय भाषा मे ‘जातिगत विषमता’ मानल गेल अछि।

 

जातिगत विषमताक मूल कारण कि?

 

ओना तऽ प्रकृति निर्मित जीवमंडल मे विषमता सेहो एकटा खास विशिष्टता थिकैक, समस्त सृष्टि कतहु एकसमान नहि तऽ फेर ओहि ठामक जीव आ जीवन मे सेहो विषमता रहब एक तरहें प्राकृतिक नियम अनुरूप देखाएत अछि। शायद यैह कारण सँ कृष्ण चारि वर्णक भेद गीता मे बुझेने छथि। लेकिन प्राकृतिक विषमता सँ इतर जे अलग-अलग वर्णक लोक एक-दोसर प्रति कठोर मानुषी व्यवहार आ नियम आदिक बात करैत अछि, ताहि ठाम सँ जे विषमता आरम्भ होएत अछि यैह थीक मूल जातिगत विषमताक कारण। जेना छुआछुत, ज्ञानक स्रोत वेद-वेदान्त पढबाक अधिकार सुरक्षित, विभिन्न कर्मकांडीय व्यवहार मे अग्राधिकार अथवा विशेषाधिकार, आदि।

 

जातिगत विषमताक दुष्प्रभाव कि?

 

विकासजी केर इशारा सही छल जे जाति आधारित राजनीतिक मूल (जैड़) मे यैह विषमता कारक तत्त्व थीक। आइ जे सामाजिक सौहार्द्रक सब सँ पैघ दुश्मन जातिवादी विचारधारा देखाएत अछि, जाहि मे गुणवत्ता आ वरीयता-योग्यताक कोनो पूछ जाति देखिकय कैल जाएछ, वोट-बैंक राजनीति देशक लोकतंत्र पर्यन्त केँ प्रदूषित कएने जा रहल अछि… आपसी कटुता कम हेबाक स्थानपर आरो बढिते जा रहल अछि, ई सब जातिगत विषमताक उपज थीक जे समय-परिस्थिति अनुरूप अप्रासंगिक आ निरर्थक रहितो समाज केँ दीमक जेकाँ चाटि रहल अछि।

 

जातिगत विषमताक समाधान कि?

 

मिथिलाक राजा जनकक सिद्धान्त एकर समाधान सुस्पष्ट ढंग सँ रखैत अछि। कतेक विद्वान् तऽ एकरा वेद अनुरूप होयबाक बात सेहो स्वीकार कएलनि अछि। उदाहरण सहित एकरा आरो स्पष्ट ढंग सँ बुझल जा सकैछ। चारि वर्ण केँ एतय ३ उप-वर्ण (जाति) मे बाँटल गेल अछि, एहि तरहें कुल १२ वर्ण (प्रचलित नाम ‘बारहो वर्ण) भेल आर फेर हरेक उप-वर्ण (जाति) केर ३-३ उप-उप-वर्ण (उप-जाति) यानि कुल ३६ जाति (समुदाय) केर वर्गीकरण कहल-सुनल जाएछ। हमर अध्ययन एहि सब मामिला मे अत्यल्प अछि, परञ्च विद्वान् लोकनिक संगत मे एतेक बात पहिनहु सुनने रही। जानकार पाठक एहि मे आरो सुधार आनि सकैत छी।

 

एहि तरहें जनक निर्मित-पालित मिथिला मे बारहो वर्ण छतीसो जाति केँ संग लैत जे भोज कैल जाएछ तेकरा ‘बारहवर्णा’ कहल जाएछ। एतय श्राद्ध हो या अन्य कोनो भोज-भात (अन्नदान, भंडारा, आदि), सब सँ उत्तम भोज बारहवर्णा केँ कहल गेल छैक। यानि सब केँ संग लय केँ चलू – सभक आवश्यकता केँ बुझू। एतय जे वेदानुसार कर्मकाण्ड निर्धारित अछि ताहू मे ई स्पष्ट छैक जे अहाँ कोनो एक जातिक सहभागिता बिना कनिकबो टा काज संपन्न नहि कय सकैत छी। चूँकि काजक प्रकृति छोट-पैघ होएत छैक, तैँ ओहि काज केँ पूरा कएनिहार केँ छोट-पैघ मानल जेबाक एकटा गलत परंपरा कतय आ कहिया शुरू भेलैक से नहि कहि सकब… लेकिन यैह छोट-पैघ बनबाक मानसिकता सामाजिक सद्भावना केँ बिगाड़लक ई तऽ स्पष्टे अछि।

 

ई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि कहि रहल अछि जे वर्ण-जातिक वर्गीकरण मनुष्य जीवन केँ सहजता सँ पूरा करबाक लेल प्राचीन समय मे कैल गेल। जेना-जेना युग (स्थिति-परिस्थिति) बदलल जा रहल अछि, एहि वर्गीकरण मे सेहो बदलाव कर्महि केर आधार पर आबि रहल अछि। वर्तमान समय मे शिक्षाक दरबज्जा सब लेल खूजल अछि। संस्कृत मे वेद टा के कहय, अंग्रेजी मे बाइबिल आ उर्दू मे कुरान आ कि हिन्दी मे रामायण, महाभारत, बाइबिल, कुरान, शास्त्र-उपशास्त्र – जे पढबाक आ ज्ञान हासिल करबाक हो से करू। समाज मे सम्भ्रान्त बनबाक काज एकमात्र शिक्षा सँ संभव भऽ रहल अछि। तखनहु प्राकृतिक विभेद – मनुष्यक शारीरिक बनौट, मानसिक बनौट आ आध्यात्मिक बनौट – एहि तीन केर असर आइयो लोक केँ वर्ण व्यवस्था अनुरूप वर्गीकृत तऽ करिते अछि।

 

तखन सामाजिक सद्भावना लेल एक्के टा उपाय अछि जे ‘कर्म अनुरूप जाहि कोनो जाति-वर्णक लोक समाज मे रहैत अछि, सभक प्रति सद्भावना राखि शिक्षाक मौलिक अधिकार सहित अन्य अधिकारसंपन्नताक गारंटी सब लेल एक समान रूप सँ कैल जाय’। एहि तरहें आपसी वैमनस्यता केँ कम कय सौहार्द्रताक माहौल बनत। एकता मे बल सँ कियो अपरिचित नहि अछि। एकजुटता सँ मिथिलाक इतिहास आ भूगोल कतेक समृद्ध छल से जरुर सब सोचय। जहिया सीता संग राम केर विवाह होएत छलन्हि तहियो डोमक चंगेरा-कोनिया सँ लैत कुम्हार, सोनार, पटवारी, बरइ, नौआ, ब्राह्मण आदि सब जातिक एकमुष्ट जरुरत भेल छलैक। कोनो एक बिना केकरो काज नहि चलैत छलैक। एहि अन्तर्ज्ञान सँ परिपूर्ण भऽ हमरा लोकनि अपन मिथिला केँ पुनर्जीवित कय आ पुनर्समृद्धि केर अवस्था मे लऽ जा सकैत छी।

 

हरिः हरः!!