मिथिलाक उद्धार लेल स्वयंसेवा नितान्त आवश्यक

लेखः अपन ठेकाने नहि सूरदास के घटकैती….

– प्रवीण नारायण चौधरी
pnc-at-supaulबेर-बेर पिताजीक मुंह सँ ई कहाबत सुनी, “अपन ठेकाने नहि, सूरदास के घटकैती”। ताहि दिन कम बुझैत रहियैक बात सब। अपने दुनिया (बचपना) मे मस्त के एतेक गौर करय गेल। जेना-जेना उमेर बढि रहल अछि, अनुभव बढैत जा रहल अछि, व्यक्ति, परिवार, समाज, समुदाय, आदिक बात बेसी बुझय लागल छी त अति प्रिय बाप बहुत याद आबय लगला अछि। पहिने सेहो प्रिय छलाह जे कनेको किछु होएन त असगरे मे कानय लागैत छलहुँ…. भगवान् सँ बेर-बेर पिताक कल्याण लेल नोरायल आँखि प्रार्थना करैत रही…. तैयो, पिता अपन अल्प और्दा जीबि आइ संग मे नहि छथि मुदा हुनकर कहल बात, सीख, सिद्धान्त ई चौजुगी रहत से निस्तुकी बात अछि। आइ चर्चा करब उपरोक्त कथनोपकथन पर।
 
सामाजिकता निर्वहन लेल बहुत कम्मे सज्जन आगू बढि पबैत अछि आर ओकरा मे स्वार्थ सँ बहुत ऊपर धरि काज करबाक क्षमता सेहो रहैत छैक। पिताजी बुझबैत कहैथ। हम खौंझाइत पूछियनि जे एहि कथन मे सुरदास के भेल आ अपन ठेकान सँ केहेन ताल्लूक। तऽ फेर बड स्नेह सँ हँसैत कहथिन, “सूरदास भेल आजुक विपन्न वर्ग। अपन ठेकान माने अपन भूख – निजी सरोकार – निज काज, अपन स्वार्थ। वर्तमान जुग मे लोक अपनहि टा पेट लेल बेहाल रहैत अछि।” तखन गोटेक रास उदाहरण दैत छलखिन जे देखहुन फल्लाँ काका जे छथि से फल्लाँ विभाग मे हाकिम भेलाह। हुनकर ५ गो बेटा केँ पढेलनि-लिखेलनि। ओहो सब बड़का-बड़का हाकिम भेलाह। फेर ओहो ५ भाइ केँ करीब १ दर्जन सन्तान, सब पढलक-लिखलक, कतेको पढिये रहल अछि, ओकरा सबकेँ सेहो हाकिम-हुकुम बनबाक छैक। फल्लाँ काका आब रिटायर भऽ गेलाह आर तखन हुनका मे सोच एलनि अछि जे अपन समाज लेल सेहो किछु करी। आइ ओ निःशुल्क औषधि आ उपचार लेल एकटा केन्द्र खोललनि अछि, कतेको गरीबक कल्याण होएत छैक। अपन पुरखाक बनायल कृति केँ फेर सँ ठाढ करय लेल ओ दिन-राति एक केने छथि। एतेक निश्चित छैक जे जाबत धरि ओ जिबैत रहता एहेन-एहेन कतेको रास कार्य करता। तहिना कहियो समय आओत, हुनकर ५ गो बेटा आ दर्जनों पोता-पोती मे सेहो समाज प्रति किछु करबाक सोच जागत। जाबत धरि फल्लाँ काका केँ अपना सँ सबुर नहि भेल ताबत ओ समाज लेल नहि सोचलनि। तहिना आजुक युग मे अधिकांश लोक अपनहि ठेकान तकबाक लेल बेहाल अछि। ओकरा सँ समाजक हित कि हेतैक। एहि कहाबत केर यैह अर्थ होएत छैक।”
 
फेर हमर बच्चा मन हुनका सँ पूछि बैसैत छल जे एखन जे प्रयोग केलियैक से त फल्लाँ बाबाक नाम लेल नहि छल, ओ त कियो बाजल जे दोसर फल्लाँ बाबू ई काज करेबाक घोषणा कएलनि अछि ताहि पर अहाँ ई कहलियैक जे ‘अपन ठेकाने नहि आ सूरदास के घटकैती’। तऽ फेर हँसैत बुझबैथ जे से एखनहि तों सबटा नहि बुझबिहिन। हम जाहि बात पर ई कहाबत कहलियैक तेकर प्रासंगिकता चर्चा चलेनिहार बुझि गेलैक। हम चुप भऽ जाय आ चर्चा चलेनिहार पिताजी संग आरो-आरो चर्चा चलबैत रहैथ। आब ओ प्रसंग सेहो मोन पड़ि रहल अछि आ स्वयं एहि कहाबत केँ प्रयोग सेहो धड़ल्ले सऽ करय लागल छी। बाप त मोन पड़िते छथि, हुनकर ओ अधूरा बात आब स्वतःसंज्ञान मे आबय लागल अछि। स्वार्थी लोक अपन जीवन निजी स्वार्थहि केँ पूरा करय मे बितबैत अछि। लेकिन ओकरा जँ मंच पर बाजय लेल भेटौक त ओ पहिने आर लोक केँ एक हजार शिक्षा देत। ओ भरपूर प्रयास ई करत जे अपन स्वार्थी प्रवृत्ति केँ दोसरहु अनुकरण करैत निजी विकास लेल अग्रसर बनय आर तखन जँ फुर्सत भेट जाएक तऽ समाजक आरो-आरो हित-सरोकार आ वर्गक कल्याण लेल किछु सोचय। अन्त मे लाज बचेबाक लेल ओ स्वार्थी वक्ता किछु घोषणा सेहो कय देत मुदा ताहू मे तेहेन शर्त लगाकय जे पहिने ई शर्त पूरा होय तखन ओकरा द्वारा किछु सामाजिक हितक कार्य करेबाक प्रयास कैल जायत। याद रहय…. कय देत से नहि गछत…. प्रयास करत।
 
आइ देखू जे गाम-गाम मे सक्षम वर्ग केर लोकक कमी नहि अछि। आर्थिक संपन्नता सँ संपन्न वर्गक बोध मानल जाएत अछि, मुदा सामाजिक हित लेल खर्च करबाक बेर मे ताहि संपन्नताक कोनो खास उपयोगिता गाम-समाज लेल होएत नहि देखाएछ। हम बेर-बेर आइ सँ गोटेक सौ वर्ष पूर्वक स्थिति पर कल्पना टा करैत छी, आखिर गामक सब वर्ग लेल पोखैर – इनार खुनायल जाएत छल… राज्य द्वारा पेयजल केर व्यवस्था हो नहि हो कोनो मतलब नहि, लोक अपन स्वयंसेवा सँ सर्वहित केर स्वयंसंरक्षण लेल अग्रसर छलय, माने तहिया हम सब बेसी नीक रही। मुदा आइ बेसीकाल अपन निजी स्वार्थपूर्ति लेल हम सब एंड़ी-चोटी एक केने रहैत छी। समाजक हित लेल जँ कियो आह्वानो केलक तऽ ओकर खिद्धांस खूब केलहुँ देलहुँ एकटा छदामो नहि। फेर जखन भितरका अहं देखलक जे ओकर नहियो देलापर समाजक काज रुकल नहि, भऽ गेल… तखन ओकर भितरका अहंकार ओकरा अपने ततेक ग्लानि दैत छैक जे छूछ आलोचना सँ ऊपर टिक बझाबय मे लागिकय समाजक वास्ते कैल गेल ओहि काजक प्रयोजने पर सवाल ठाढ करत। आर, गूटबाजी केँ एतेक बढाबा देत जे काजो करय मे खूब प्रतिस्पर्धा होएक। फल्लाँ गूट फल्लाँ काज केलक तऽ चिल्लाँ गुट चिल्लाँ काज करत… अगबे घोषणा सँ माहौल बनायत।
 
वर्तमान समय मे मिथिला राज्य आन्दोलन सेहो किछु एहि आन्तरिक द्वंद्व मे फँसल देखा रहल अछि। एकटा वर्ग श्रेष्ठजनक समूह अछि, दोसर वर्ग युवा अभियानीक समूह अछि आर तेसर, चारिम, पाँचम वर्ग सेहो विभिन्न लक्ष्य, उद्देश्य सँ नाम तऽ लेत मिथिला राज्य निर्माण करबाक मुदा आपस मे टांग घिचा-घिची लेल मौका नहि चूकत। मिथिला राज्य निर्माण सेना सर्वोपरि अछि से कहबाक प्रयोजन एतय एकदम नहि देखैत छी, मुदा एकर जे सर्वपक्षीय समावेशिकताक सिद्धान्त अछि से एकरा आर सब सँ भिन्न बनबैत अछि ताहि मे कतहु दुइ मत नहि। मुदा आर पक्षक नेता लोकनि गाँठ बन्हने अछि जे, “एह! हमरा लियौन नहि करब तऽ हम मानब?” तहिना आरो-आरो पक्ष मे लियौन केलाक बाद अपन योगदान देबाक प्रवृत्ति सँ मिथिला आन्दोलनी छिटकल-फूटकल देखा रहल अछि। हमरा पिताजीक कहलहबा खूब मोन पड़ैत अछि जे ‘अपन ठेकाने नहि सूरदास के घटकैती’। कारण छैक, जाबत अहाँ सब अपन जनाधार ठाढ नहि करब, मात्र सोसल मीडिया आ फूस्टिकबाजी सँ केकरा दमैशकय देखबैत छियैक…. बुझले बात अछि जे तारीख बितत, आयोजन खत्म, बातो खत्म। सब कियो कलकत्ता, दिल्ली, चेन्नइ, जोरहाट, सूरत आ लहेरियासराय, आदि सँ आउ… समागम करू आ फेर घर जाउ। यौ जी! आब बेर ई थोड़ेक छैक जे आयोजने टा करू… धरातल पर कि कैल जाय ताहि दिशा मे सब कियो देखियौक। सूरदास (मिथिला राज्य आन्दोलन) केर घटकैती एना स्वार्थी वीर बनला सँ कहियो पूरा नहि होयत। मिथिला आन्दोलन मे जमीन पर गतिविधि चाही, एकमात्र समाधान यैह टा अछि। कतबो फेफियायब, बिना केने फल नहि भेटत।
 
अस्तु!
 
हरिः हरः!!