सपना देखी, नै देखी, कि करी, नै करी…. एक काव्य धनाकरकृत्

ranchi9कविता

 

– डा. धनाकर ठाकुर, चिकित्सक एवं वरिष्ठ मिथिला राज्य अभियानी

 

सपना जरूर देखी

कलाम कहैत छथि

काज जरूर करी

से श्याम कहैत छथि

अवचेतन मोन क प्रमाद

चेतनक प्रभाव अछि

जँ भय सकी सुषुप्त

आ करैत रही ध्यान

तुरीय अवस्था मे चलि जायब

सुतल नहि ध्यानस्थ भय जायब

जुटव योग अछि मुदा जुटव कथिसँ

जो व्यक्त अछि या स्वप्न अछि

स्वप्न हम नहि देखैत छी

कुकुर, बिलाडिक संगठनक संगठन

करिया ने बिद्यापतिक संगोरक

हम तकैत रहलहुँ बालककेँ

जे चन्द्रगुप्त बनत

दरभंगिया जुटानसँ दूर

सुदूर भारतीक प्रांगणमे

मां मिथिला क आंगनमे

अंगनासँ अकासधरि

लाल कालीन बिछि जायत

उतरताह इन्द्र एतहि

पूजन हुनक हमरा छोड़ि

आ के करैत अछि

चन्द्रक भोग, साम क गीत

आन के गबैत अछि

लघुभारत मिथिला वेश हमर

हम स्वप्न नहि यथार्थ छी

गमकैत मिथिला क बाडी

गाछी नहि सुनगय ताहि लेल

साधना दधीचि क कय रहल छी

विश्वामित्री सृष्टि सृजित कय सकैत छी मुदा

नहि करब

भस्मासुरी प्रगट स्वयं नहि त

रक्तबीजी अन्त पओताह…

हम स्वप्न नहि देखैत छी

यथार्थ मे जीबैत छी मुदा

स्वप्न देखनाइ मना नहि

एहि लोकतंत्र मे।