आलेख
– विकास झा, हरिणे, मधुबनी (हालः हैदराबाद सँ)
मैथिली कविताक समकालीन परिपेक्ष बाबा यात्रीक सृजनताक इजोत बिनु नहि फरिछ भ’ सकैत अछि । विद्यापति कालीन मैथिली जे एकाधिक भाषा कें भठ्ठा धरा कविता गढब सिखौलक ताहि मैथिली केँ समकालीन परिवेश मे पुनः सोंगर लगा ठाढ़ करबाक श्रेय हिनके जाइत छनि ।
मैथिली कविता मे आधुनिकताक पसार, प्रगतिवादक स्वर, यथार्थवादक विस्तार हिनकहि लेखनी सँ अपन पाँखि खोलैत अछि । हिनक रचना मे एकदिस ठेंठ शब्दक प्रयोग सम्मोहित करैत अछि त दोसर दिस हिनक जनवादी तेवर मैथिलीक जन-जन मे अपन लोकप्रियता सुनिश्चित करैत अछि । चाहे फेकनी केँ कपलेसर पठेबाक खगता हो वा क्विन विक्टोरियाक पालकिक विरोध हो, साहित्यिक ई अमोघ अस्त्र सब ठाम कलमल धार पिजबैत ठाढ़ भेटैत छथि ।
चाहे हिन्दीक खुंढ सँ शोणितायल मैथिलीक मरहम करबाक हो वा मिथिलाक पाग सम्पूर्ण विश्व केर माथ पर रखबाक इक्षा हो, अहि सब भाव विमर्श मे सब ठाम खाधिक कुरता पहिरने, एकटा झोड़ा टाँगने, नगरे-नगरे बौआइत ओहि पाकल दाढ़ी बला फकीड़ केँ सदिखन मिथिलाक माटि-पानि मे लेढायल देखैत छी ।
कखनो मोन विरक्त होइत छनि त अहिबातलक पातील फोडि ई चलि जाइत छथि आनठाम मुदा अपन देहरिक सोह मे, यश-अपयश मे, लाभ हानि मे, भय-शोक मे पुनः हिनका अपने गामक लोक मन परैत छनि ! कौखन नेना भेल होमक काठी गड़ने विलाप करैत छथि, कौखन बूढ़ बड़क संताप गबैत छथि । ई कविता नहि परिवेश सँ कवि केर सरोकार लिखैत छथि, खतबे-बेलदार लिखैत छथि, आन्हर सरकार लिखैत छथि, कोशिकीक हाहाकार लिखैत छथि, झाँपल पारो केँ उघार लिखैत छथि, नवतुरिया केँ खेबनहार लिखैत छथि, पत्रहीन नग्न गाछ सन अवतार लिखैत छथि, बूढ़ बडक श्रृंगार लिखैत छथि, तरुनिक उजरल संसार लिखैत छथि आ एतेक लिखितो मैथिली कमे लिखी पबैत छथि ।
अपने कहैत छथि-पेट तँ हिंदिए सँ भरैत अछि तें अपन कोढ़-करेज खखोड़ि जे किछु होइत अछि से ओकरे पीड़ी पर चढ़ा दैत छी । हुनक कहब रहैन जे प्रतेक भाषाक अपन भूगोल होइत छैक आ से बुझब अत्यावश्यक होइत अछि । हुनक आह्वन मे नवतुरिया सदिखन आगाँ एबाक आग्रही रहैत छल आ तें ओ कवि के ललकारा देबाक आग्रह करैत छलखिन ।
हुनक कविता मे जे विशेष आकर्षण रहैत अछि तकर मूल कारन ई जे ओ अपन भाषाक भूगोल बुझि आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश मे अपन अजस्र शब्दकोशक प्रयोग बहुत कुशलता सँ करैत छथि । यात्रीजी मैथिली कविता केँ अपन शिल्प, शैली आ आधुनिक तकनिकी सँ लैस क’ एकरा समयक सब परिस्थिति मे संघर्ष करबाक उत्स देलैन । साहित्याकाशक अहि जाज्वल्यमान नक्षत्र केँ कोटिशः प्रणाम ।