नीति कथा
– राम बाबु सिंह, मधेपुर (कलुआही), मधुबनी
किस्सा पिहानी सेहो हेबाक चाहि, आइ चलु एकटा किस्सा स्मृति में आबि रहल अछि, सोचलहुँ जल्दी सँ कलमबद्ध करबाक चाहि। लीय अहूँ सब सुनु:-
प्राचीन काल में एकटा भरल पुरल गाम में सोझे सोझ दूटा पड़ोसी रहैत छलाह। दुनु अपन अपन विशिष्ट काज के लेल प्रसिद्ध छलाह। एकटा के प्रवृति संत महात्मा जेकाँ छल आ दोसर में ठीक विपरीत सबटा ऐब सँ भरल पुरल। महात्मा जी केर दिनचर्या भोर के 4 बजे सँ शुरू होयत छल आ राति धरि चलैत छल। ठीक विपरीत दोसर व्यक्ति केर कोनो निर्धारित दिनचर्या नहि, जखन आँखि खुजल तखने जागि गेल कारण चोरी चपाटी जुआबाज़ी आ दिन भरि अपन अहि तरहक व्यसन में समय बरबाद करैत रहैत छल।
महात्मा जी अपन तन मोन धन सँ दिन भरि भगवत भजन में लीन रहैत छल। हिनका देश दुनिया आस पड़ोस सँ कोनो काज नै बस सत्संग आ पूजा पाठ भक्तिभाव में चारु पहर लागल रहैत छल मुदा बहुत दरिद्र छलाह, कोनो तरहे दुनु पहर के भोजनक व्यवस्था होयत छलनि। पूजा पाठ सँ फुरसत भेलाक बाद एक दिन अपन पडोसी के देखलक खूब मौज मस्ती में, सब प्रकारक सुख सुविधा सँ भरल पुरल घर। ई दृश्य देखि महात्मा के मोन माहुर भ गेलनि आ भगवान के कोस लगलाह कि हम सदिखन अहाँक श्रद्धा भक्ति सँ पूजा अर्चना करैत एलहुँ अछि आर हमरा पहिने सँ आर दरिद्र बना देलहुँ जखन कि सोझे सोझ हमर पड़ोसी जे सबटा मानवीय ऐब दोष सँ भरल अछि हिनकर घर सुख सुविधा सँ भरि देने छिऐ।
महात्मा जी खिसियायत धारे कात कात भगैत चलल जएत छल कि आई हम जल समाधि लए लेब, जीवे क की करब जखन भगवान हमर सुधि नहि लैत छथि। तखने महात्मा देखलक जे हिनकर पड़ोसी सेहो आगु आगु जा रहल अछि। देखक के कारणे महात्मा जी जमीन पर खसलाह आ हिनकर पेयर टूटि गेलन्हि आ किछुए दुरी पर हिनकर पड़ोसी सेहो खसलाह आ हिनका हाथ में सोना केर अँगूठी भेटलनि आ बहुत खुश भेलाह लेकिन महात्मा जी अहि दृश्य के देखि अन्तर आत्मा धरि द्रवित भ गेलनि आ सोचलक की आब जल समाधी लेब में कोनो दिक्कत नहि। आ भाग लगलाह समाधी के लेल तखन भगवान स्वयं ब्राह्मण रूप धारण कय महात्मा लग आबि पुछलनि महाराज अहाँ अतेक तमतमएल कत भागल जा रहल छी? महात्मा जी अपन मोनक व्यथा सबटा ब्राह्मण रूपी भगवान लग उझलि देलनि। हिनकर सब बात सुनलाक बाद भगवान जबाब देलनि हे महात्मा ई जे अपनेक पड़ोसी अछि आई सोना केर एकटा मात्र अँगूठी देखि प्रसन्न अछि आजुक दिन हिनकर भाग्य में कोनो देशक राज्याभिषेक लिखल छलनि मुदा हिनकर कर्म आई एतय धरि पटकि देलकनि आ आजुक दिन अहाँ दुःखी छी कि अपनेक पैय्र टूटि गेल जखन पूर्व जन्म के आधार पर भाग्य रेखा में फ़ाँसी लिखल छल। अहाँक सतकर्म आई जान बचा देलक।
हमरा सबके अहि सँ शिक्षा लेबाक चाहि की कर्म अपन कखनो नहि छोड़कर चाहि। सदैव सद्कर्म के मार्ग पर चलैत सर्वहित के काज करबाक चाहि। उद्देश्य अछि मिथिला राज्य तखन पहिने मैथिल बन पड़त। एकजुट भ जमीनी स्तर पर प्रत्येक गाँव घर में मिथिला राज्य हित के चर्चा कय संगठन बना कय काज करय पड़त तखन लक्ष्य भेदन सँ कियो नै रोकि सकैछ। हमरा सब के हाथ में मिथिला नामक सरकारी डाक टिकट रुपैया आ छोट छीन फोटो धरा दैत अछि आ फेर हम सब मारे ख़ुशी के नंगटे नाच लगय छी। कहक मतलब ई अछि की सोना खान जतय हम्मर अछि ओतय तुच्छ सोनाक अँगूठी देख अति उत्साहित भ जायत छी। ते “कान्हा कुकुड़ माड़े तिरपित” लोकोक्ति के सत्यापित नै करबाक अछि। जय मैथिल जय मिथिला जय जय मैथिली।