(मैथिली कथा)
– सत्य नारायण झा, मैथिली कथाकार, पटना
एक आदमी कए लौट्री मे पैसा लगेबाक बर आदत रहनि । ओ सदति काल लौट्री किनैत रहथि मुदा कहियो लौट्री नहि लगनि ।मुदा आदति नहि छुटनि ।भगबानक कृपा सँ एकबेर हुनका दस लाख रुपैयाक लौट्री लागि गेलनि । ई खबरि पहिने हुनक गृहणी कए लगलनि । गृहणी सोचलखीन जे जँ एकाएक हुनका अर्थात हुनकर पति के एहन खुशी के बात कहल जेतनि त भए सकैत अछि जे एतेक खुशीक बात सुनि पति के हार्ट अटैक ने भए जानि ।
तै ओ सोच विचार करय लगलखीन जे कोना कहल जाय । केतबो सोचलखीन मुदा नहि किछु दिमाग मे अयलनि । अन्त मे सोचलनि जे मंदिर पर जे पंडित जी छथि ओ त बर पैछ योगी छथि । लोक कए कतेको उपदेश सभ दैत रहैत छथीन । तै पंडित जी के कहल जाय जे कोनो विधि सँ पति के एना कए कहल जाय जे हुनका हार्ट अटैक नहि होनि ।पंडित जी के ओ स्त्री सभ वृतांत कहलखीन ।
पंडितजी कहलखीन जे पति कए लए कए साझ मे आबय लेल । पति जखन साझ मे काज पर सँ एलखीन त पत्नी कहलखीन जे मंदिर पर चलय । कतेक कहला सुनला पर ओ आदमी मंदिर गेलैक । लौट्री दए ओहि आदमी कए नहि बुझल रहैक । पंडितजी योग –साधना मे पहुचल लोक छलाह । ओ लोक सभ के उपदेश देथीन जे योग साधना सँ आन्तरिक उर्जा भेटैत छैक । मृत्वोपर विजय प्राप्त कैल जा सकैत छैक । से पंडित जी पहिने ओहि आदमी कए एमहर ओमहरक बात सभ कहलखीन । तेकर बाद पुछलखीन जे, तू लौट्री किनैत छह ? ओ ह कहलकनि ।तखन पंडितजी पुछलखीन जे मानि लए जे तोरा दस हजार रुपैया लौट्री मे भेटलह त तू की करबह ?
ओ कहलकनि, अरे पडितजी, हमरा लौट्री लगबे नहि करत । पंडितजी कहलखीन, मानि लैह जे लागि गेलह, ओ तैयो नहि कहनि, पंडितजी के बहुत जिद कयला पर कहलकनि जे दस हजार कय़ कपड़ा किनबै । मानि लैह जे एक लाखक लौट्री लगलह तखन ? तखन एकटा पक्का के घर बनायब । मानि लैह जे चारि लाख भेटलाह तखन ? तखन एकटा कार किनब । मानि लैह जे दस लाखक लौट्री लगलाह तखन ? ओ बुझलक जे भेटत त नहिये तै बाजब मे की लागल छैक । ओ पंडित जी के कहलकनि जे दस लाख भेटत त आधा पाँच लाख पंडितजी अही कए दए देब ।
पंडितजी जहिना सुनलनि जे पाँच लाख हुनका देतनि, ततेक खुशी भेलनि जे पंडितजी के हार्ट अटैक भए गेलनि आ बेचारे मरि गेलाह । तै कहावत छैक दोसर के उपदेश देब सरल छैक ।