साभार फेसबुकः पवन ठाकुर केर पोस्ट सँ
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम – स्नेह के !
अपमानक हम पातक लैत छी, ओहि बेटी के देह के !
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!१!!
बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं !
नीति – न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों !!
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!२
जेहि बेटी में दुर्गा – कमला और सीता के वास अहि !
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि !
एहन पातकी – पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!३!!
बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल !
हमर – अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल !!
संकट ई गंभीर भेल आब, करिऔ एहि पर तुरत विचार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!४!!
आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप !
एक – एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप !!
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!५!!
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!