बाबु-भैया गोर लगैत छी, बन्द करू ई अत्याचार

साभार फेसबुकः पवन ठाकुर केर पोस्ट सँ

dmm program42नव निर्माण दहेज मुक्त मिथिला

बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!

जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम – स्नेह के !
अपमानक हम पातक लैत छी, ओहि बेटी के देह के !

अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!१!!

बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं !
नीति – न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों !!

सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!२

जेहि बेटी में दुर्गा – कमला और सीता के वास अहि !
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि !

एहन पातकी – पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!३!!

बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल !
हमर – अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल !!

संकट ई गंभीर भेल आब, करिऔ एहि पर तुरत विचार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!४!!

आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप !
एक – एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप !!

सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!५!!

बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया – बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!