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मैथिली कथाः अठकपाड़ि

कथा

– कर्ण संजय, विराटनगर

husband wife fighting‘कि करै छी ऐ’ ? कने एमहर आउ त’ ।

‘मारे मू‘ह धए क’, सभ किओ हमरे पेरनिहार । कि कहै छी ? कहु । हमर जीवन जंजाल भए गेल एहि घरमे’ । दिलवर काकी खौंझाइत बजलीह ।

‘अहाँ करै छी कि ? कने डेटॉल लेने आउ ने’ ।

‘सुतल छी आर कि करब ? अहींके दुलरुआ पुतौहुके लेल खाना गरम कए रहल छी । एखने एक बाल्टिन पानि गरम कए बाथरुममे राखि एलिऐन्हि । ओ कहै छथि, ‘बिना हॉट वाटरके स्नान नै करब’ । बिन गैस चुल्हिके जारैन काठीसँ भानसे नै कएल होइ छन्हि जे कने खानो सेहो गरम करती आ खेतीह त’ गरमे खाना ।ठण्ढाएल खाना कण्ठसँ निचा…। हमरा त…। धुवाँसँ नोरे–झोरे दिलवर काकी सभटा तामस पित्त दिलवर कका पर उतारि रहल छलीह ।

‘माए गे माए ई कि भेल ऐ ? कहै छी हजमेसँ दाढी बनाउ’ । खूनके देखिते धधाएलसन तामस पानिसन भ’ गेलै ।

‘कि भेलै ई कनेक ब्लेड … ।

जाओ ई पॉचटा धिया–पुताके बापेटा छी । दाढियो बनेबाक ढंग नै अछि । लोक कि कहत ?

‘मर्र… लोक कि कहत ? सभटा करम त’ अँहीके सिखाएल अछि । सभटा धिया–पुता…। बाजि दिलवर कका, काकी दिश कनखिया कए ताकलैथ ।

‘लाजे नै होइऐ त’ कि कहु । तैयो एकटा बात कहै छी’ ।

‘कहु ने अपन कनियॉ नै बात कहत त के कहत’ ?

‘ऑहाके हर घडी हँसिए रहैऐ । काल्हिखन खन्जनि काकी ओत गेल रही से लोकसभ हमरा लाजे नहि मुडी उठाबए देलक । ऐ कनियॉ, ऐ कनियॉ, ऑहा अपना पुतौहके नुआ किन कए नहि दैत छिएन्हि जे मिक्सी पहिरै छथि । अहिना सिउथ उघारे । एके मिसिया सेनुरके ठोपे टा । ऐ केहन घरके बेटी छथि ? दुधुकाकीसन बुढ हुनका अखनो हम सभ ऑचरसँ पैर छुवि प्रणाम करै छिएन्हि आ ऑहाके पुतौह नमस्ते कहि दुरेसँ चलि गेली । पोखरि परहक बुढ–पुरानसब कनियॉ देखए गेल रहैथ मुदा बीचे ऑगनमे कुर्सी पर बैसल देखि बिना डारे मोडने चट् स घुमि गेली । आब कहु एहि हालतमे कोना ककरो घर–ऑगन जाएब ? ऑहाक चलते सभहक घर–ऑगन छुटि गेल’ ।

‘ऑहा किएक जाएब केकरो घर–ऑगन? जकर घरवला नामी वकिल, बेटा ईन्जीनीयर, जमाय डाक्टर आ देओर मेनेजर से किएक जाएत ? लोकेसभ किएक नहि आओत’ ?

‘से कोना हेतै ? समाजमे रहलासँ…।

‘आब हम कि करब । हुनका वएह मोन छन्हि त…’। दिलवरकका माथ पर हाथ धए बसि गेलाह ।

‘हम चेतेने रही ने, बेटा ईन्जीनीयर भेल ताहिसँ कि ई हमसब जेहन छी तेहने घरमे कुटमैती करब मुदा शरणजीक बेटी प्रति उपन्यास आबिते ऑहाके बुझाएल जेना आन्हरके दुटा ऑखि भेट गेल होइ । सौसे गाम बएन परैस एलहँ जे भुषणके विआह कमिश्नर साहेबके बेटीसँ हेतै । मना करी नै एतेक पैघ अफिसरके बेटीके एडजस्ट करौनाई बड कठिन हएत । ऑहा बाजि दिऐ, आखिर हमरो बेटा त’ ईन्जीनीयर अछि । तकरे सभटा फल छी’ ।

‘आऔर किछु कहबाक बॉकी अछि त….’।

‘ हँ …। बहुत रास अछि’ । जिद्द करैत दिलवरकाकी फेरसँ बाजलैथ ।
‘एकटा बात आर ऑहा बुझलिए कि नहि ? पुतौह सलवारे–सुट पहिरकए द्विरागमनमे आएल रहैथ । सौसे गाममे दुर छिया आ दुर छिया ई भेल छल । किओ इहो बाजल रहै जे एतेक चीज–वस्तु कमीश्नर साहेव देबे केलखिन मुदा एकटा केहनो मेहनो नुवा किन कए दएतथिन से नहि जे बेटीके एहन पहिराओ पहिरा पठेलखिन’ ।

‘द्विरागमनके दिन कनियॉके आ कनियॉ माएके ऑखिसँ एको बुन नोर नहि खसलनि । अपना गामक छौडि–मौगीसभ अनेरो नोर ढारैत रहै छै । बेटीक विदागरिके दिन चाढसा मर्दोके करेज फाटि जाइत छै मुदा कनियॉ नैहरक रब–ढब दोसरे । जतेक सर–कुटुम्ब आ संगी साथीसँ हाथ मिला आ नमस्ते कै विदा भेल रहैथ । भरल लोकक बीच अपना भूषणके किस केलैथ आ ओ भूषण बकलेल जकॉ ठाढ जेना बघजर लागि गेल होइ’ ।

एकटा बात आर सुनु, बाजि दिलवरकाकी पएर पटकैत फेरसँ शुरु भ’ गेलीह ‘विवाहक बाद भूषण खेनाए–पिनाए त्यागने जाइत अछि । खाएके लेल पुछियौ त कहत ईच्छा नहि । खाए–पीबके नाम सुनि आत्मा ओकर कलपि जाइत छै । अन्न–पानि देखि मूँहछी मारि देने होइ । ओनामे नहि जीतए ओ छौरा ई गाम आबिते कतेक हँसैत बाजेत छल । संगी साथीके देखिते सभटा काज परोजनि छौडि पराइत छल आ आब त बुझाइत अछि जेना छअ मासके दुःखित हो । देखै नहि छिऐ, मासे दिनमे कोना सुखा कए काठ कोरो भ’ गेल छै । हम फेर कहै छी इएह हाल रहतै त अधिक दिन नै जीतै ओ छौरा’ ई फेरसँ ऑचरसँ नोर पोछए लागलीह ।

‘ऐ केहन अठकपाडि छी ऑहा ? एहि शुभ घडीमे किओ एहन कथा बाजै ? अस्थिरे अस्थिरे सभटा ठिक भ’ जेतै, हम बुझेबै ओकरा । जाओ आ अपन काज–धन्धा करु । ऑच–काठी सभटा मीझाए गेल हएत’ । दिलवरकका काकीके भानस कोठलीमे ठेल देलैथ ।

फटाक……फटाक….।

‘दौड कए जाओ त ई देखियौ कथिके एहन आवाज भेल अछि ? बुझात अछि जेना बौअ‍ेके घरसँ…’। हडबडा कए धोती डॉरमे खोसैत कका बजला ।

‘कथि आवाज रहतै ? ऐ सौसे बॉस चुल्हिमे लगाए अहिसँ बतियाए लगलहुँ, वएह बॉसक गीरह फुटबाके आवाज हएतै आर कि’ ? दिलवरकाकी निश्चिंत भ’ क’ बाजलीह ।

मुदा तखने । माए….माए… बाबूजी…. बाबूजी….। भाइजी अपनो आर भौजीयोके बन्दूकस‘….। बाजि गुडिया अचेत भ’ गेलीह ।

२०।०४।२०१२

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