भाषा

lalit ghy2कविता

– ललित कुमार झा, गुआहाटी

 

भाषा एक पहचान थिक, स्व, स्वजन, स्वाभिमान।

सौजन, स्वजन, स्वभाषा सँ स्वयं स्वतः पहचान॥

 

स्वभाषा संस्कृति के कतेक महत्व अछि खास।

प्राचीनकाल सँ नवयुग धरि पलटि लियऽ इतिहास॥

 

“विजेता देश विजित देश पर थोपथि अपन भाषा।

भाषा खत्म संस्कृति खत्म, खत्म स्वाधिनताक अभिलाषा॥

 

त्यागि अपन मातृभाषाक पोषपुत्र ककरो बनिजाउ।

दोसर भाषा मातृ स्वरूप नहि मातृहीन अनाथ कहाउ॥

 

एहि ठाम कि ओहि ठाम दुनिया मे करू कतौ बास।

मैथिल छी मैथिली हमर भाषा, सदा रहय एकर एहसास॥

 

भाषा अनेको प्राप्त करू, जे दैछ संपर्क रोजगार।

पर मातृभूमि, मातृभाषा लेल न्योछावर जन्म हजार॥