मैथिल ठीकेदार
विचार आलेख – प्रवीण नारायण चौधरी
आइ-काल्हि ई शब्द खूब पोपुलर भऽ गेल अछि। स्वयंभु नेता आ ठीकेदार आदि शब्द ओहि व्यक्ति लेल प्रयोग कैल जाएत अछि जे समाज लेल त्यागपूर्ण कर्म करैत अछि। ओकरा ई चिन्ता होएत छैक जे आखिर हमर संस्कृति आ सभ्यता एतेक प्राचीनकाल सँ स्थापित रहितो वर्तमान समय मे विपन्नताक कोना शिकार बनि गेल अछि। ओ अपन भाषा, साहित्य, संस्कार आ लोकसंस्कृति केर रक्षार्थ जे-जतेक सामर्थ्य सँ लागल रहैत अछि। ओकरा न पदक लोभ छैक, न नेतागिरी करबाक कोनो शख छैक, बस ओ केवल अपन सनातन स्वरूप मिथिला प्रति सदिखन चिन्तनशील रहैत व्यक्तिगत विकास सँ काफी ऊपर उठिकय जे-जतेक संभव होइक, अपन जीवनकाल मे एहि सिद्धभूमि मिथिला लेल करैत मुक्ति पेबाक चेष्टा मे रहैत अछि। तेकरा व्यक्तिगत विकास मे रत एकटा तथाकथित जाग्रत मैथिल समाज नामकरण करैत भेटाएत अछि, “मैथिल ठीकेदार” सँ।
वास्तविक ठीकेदार एहि सब सँ काफी दूर कोनो न कोनो राजनीतिक दल केर चमचागिरी करैत राज्य केर कोष सँ आबन्टित राशि केँ जैड़ सँ छीप धरि लूटबा मे लागल रहैत अछि आर केकरो कानो-कान खबड़ियो तक नहि लगैत छैक। कहियो मनरेगाक पाइ, कहियो इन्दिरा आवास तऽ कहियो प्रखंड सँ बाँटल जायवला राहत स्वरूप खरात या फेर वृद्धा पेन्सन हो वा किसान वास्ते सिंचाई निमित्त डिजल केर कूपन, लूट बिना वर्तमान राज्य केर कोनो टा काज नहि चलैत छैक। एतेक तक जे लूट आ भ्रष्टाचार सँ दूर रहयवला विद्याक मन्दिर मे सेहो लूटबाक आ भ्रष्टाचार करबाक कइएक टा योजना लागू कैल जा चुकल छैक आर ओहो मे सत्ता संयंत्र केर संचालन वास्ते अपन लोक केँ शिक्षा समिति केर माध्यम सँ हरेक पंचायत मे आरम्भ कैल जा चुकल छैक। अरे! ठीकेदारक तऽ बात छोड़ू, ओकर लगुआ-भगुआ जे दिन-राति ओकरा संग चमचइ मे व्यस्त रहैत अछि, लूट-खसोट मे हिस्सेदारी पबैत माँरहि सँ तिरपित रहयवला कन्हा कुकूर बनैत अछि, ई सब क्लीन स्वीफ्ट करैत सब मैच अपना पक्ष मे करैत रहैत अछि। कारण ओकरा रोकनिहार कियो कतहु नहि छैक, न क्षेत्ररक्षक, न बाउलर आ नहिये कोनो कप्तान। बस एकतर्फी विश्व चैम्पियन टीम आर दोसर तरफ नदारद मैदान। तखन यथार्थ भूमि पर बिना अपोजिशन मैच कोना हेतैक, ताहि लेल पक्ष-विपक्ष ओहि लूटनिहार सब मे अलग-अलग दल बनल छैक। एकरे नाम थिकैक बिहारी राज्य सत्ता अन्तर्गत मिथिला!
वर्तमान मानव समाज मे अनुशासन या ज्ञान शिक्षाक उद्देश्य प्राथमिक तौर पर तऽ नहिये टा छैक, कारण पेटबे कि लोटबे – मिथिलाक ओहि लोभी ब्राह्मणवर्गक एक अत्यन्त तुच्छ कूचाइल मुदा दरिद्री सँ संघर्ष करबाक बाध्यताक समान देखाएत अछि जे कतहु भोज भेल तऽ भैर पेट पहिने खाउ, आर फेर लोटे-लोटा भैरकय घरक आन सदस्य जिनका नोतल नहि गेल छल तिनका लेल लऽ जाउ… वा फेर संग्राही प्रवृत्ति सँ ओ संग्रहित भोजन बाद मे फेर अपने खायब तऽ जय्ह एक साँझक खर्च बचि जायत, किछु एहेन प्रवृत्तिक प्रदर्शन करब आइ धरि मिथिला मे कायम देखाएत अछि। हलांकि आब लोक गामक सीमा नहि नांघत वा जतेक उपलब्ध अछि ओतबे मे आत्मसंतोष केर लाभ अर्जित करत… ई सब नियम गेल तेलहंडी मे… आब जतय स्वाभिमानसंपन्न जीविकोपार्जनक अवसर भेटत ओतय जायब सहज छैक। संचार मे विकास केर बात कतहु मिथिला समान कूशाग्र संस्कारी लेल पाछू रहि सकतैक! जहिया जहतर-पहतर हिमाली नदी सबहक पानि पसैर जाएक तहियो नावे सही मुदा संचार मे मिथिलाक लोक पाछू नहि छल। तखन न एतुका पाण्डित्य परंपराक दर्शन दूर-दूर धरि चर्चित भेल! तखन न एतुका लोकसंस्कार केँ साक्षात् वेद केर निरूपित करयवला कहल गेल! याज्ञवल्क्य केर संहिता केवल मिथिलहि तक सीमित रहल से बात कदापि नहि छैक।
खराबी मे खराबी एहि पलायन सँ यैह देखाएछ जे लोकसंस्कृति आ लोकचर्या मे दिन-रातिक अन्तर आबि गेल अछि आर याज्ञवल्क्यक ओ दावी जे मिथिला मे जेना लोकचर्या होयत से वेद केँ निरूपित करत आबो सच अछि ई कहबा मे अतिश्योक्ति होयत। कारण आइ प्रवास पर रोजी वास्ते निकलल मैथिल चाहे ओ ब्राह्मण होएथ वा गैर-ब्राह्मण, सब विदेही सँ भयंकर देही बनिकय मात्र आ मात्र धनसंग्राही आ व्यक्तिगत विकास केर होड़ मे फँसि गेल छथि। हुनका मे समाजक यथार्थ समस्याक दर्शन कम आ ठीकेदार-स्वयंभु नेता सबहक दर्शन बेसी होएत छन्हि। कारण ओ घर सँ दूर, अपन भाषाक अपनहि शत्रु, मिथिला लोकसंस्कार सँ घोर वितृष्णा मे आ मायाक चांगूर सँ चँछायल – सदिखन अपन आसपास कैल जा रहल प्राकृतिक न्यायपूर्ण आयोजन सँ मूल तरफ लौटबाक क्रियाकलाप वा प्रयास सँ हुनका लोकनि मे एकटा अजीब घृणा आ खौंझाहट घर करैत छन्हि, यैह कारण छैक जे ओ अपन कर्तब्यविमूढता सँ विमुख दोसराक चरित्र-चित्रण मे बेसी लगैत छथि। वांछित छैक जे अपन भागक देनदारी मातृभूमिक प्रति समर्पित करू। दोसराक चरित्र-चित्रण सँ अहाँ केकर कल्याण कय रहल छी एहि पर कखनहु सोचू। जेकरा ठीकेदार कहैत छी ओकर त्याग छैक, ओहेन लोक आरो होय आ मिथिलाक जिन्दाबाद होय, ई कामना करू। बरु ओहने ठीकेदारी कहियो स्वयं सेहो कय केँ देखियौक। यथार्थ दर्शन करब आर खसैत अस्मिता केँ पुनः सम्हारब हमरा लोकनिक साझा दायित्व थीक।
टंगघिच्चा बनि अपनहि मे अपने माथ भिड़बैत रहब आ चैत-चिक्का खेलायत रहब – ई सब मनोरंजनात्मक क्रीड़ा धरि जायज छैक। पुराण कहैत छैक जे बरद केँ अपन २०० जन्मक कथा मोन रहैत छैक। देखैत हेबैक जे कुट्टी-सानी-गुरा आदि भोजनाहार ग्रहण केलाक बाद ओ सब कनीकाल पाउज करैत अछि। तेकर बाद ओ सब एक-दोसर केँ दिशि ताकि सींग भिड़बैत क्रीड़ा करैत रहैत अछि। मुदा क्रीड़ा सँ पूर्व बरदक ओहि स्वभाव पर गौर करू जे कोना हर मे जोतल गेलाक बाद सौंसे चास केँ जोतिकय हराठक बरद बनि अपन बथान धरि अयबा काल धरि बीच मे केकरो देखइ तक नहि चाहैत अछि, मात्र कुट्टी-सानी-गुरा आदि नाएद मे भोग लगेनिहार केँ तकैत पहिले त्वदियं वस्तु गोविन्दं तुभ्यमेव समर्पितम् करैत आहार ग्रहण करैत अछि आ तखन पेट भरय तऽ संसार सूझय केर तर्ज पर आगाँ बढि क्रीड़ा करैत अछि। जँ अहाँ गृहस्थीक जीवन मे रहनिहार सुच्चा मैथिलपुत्र थिकहुँ तऽ अपन जिम्मेवारी पूरा केलाक बादे कोनो क्रीड़ा मे धरिया खोलि कय कुस्ती करू, एहि सँ सब केँ प्रसन्नता भेत आ चास-बास सब हरियर रहत।
हरिः हरः!!