युग बदैल जाय, स्रष्टा नहि बदलतः महेश झा डखरामी आधुनिक मधुप

साक्षात्कारः विशिष्ट व्यक्तित्व

jha maheshमहेश झा ‘डखरामी’ – मृदुल आ प्रशान्त मैथिली सर्जक, दिल्ली मे दशकों सँ प्राइवेट जौब मे कार्यरत रहितो अपन मातृभाषा प्रति निरंतर सृजनशील रहैत मैथिली पद्य मे विशिष्ट शैलीख संग लेखनी करैत छथि। 

वर्तमान समय मे बेसी मैथिलीभाषी केँ अपन मातृभाषाक प्रयोग करय मे नहि जानि कोन मुदा लज्जाक अनुभूति होएत देखल गेल अछि, परन्तु पूर्ण आधुनिक पहिरन-ओढन सँ संपन्न – सब तरहें आरामदायक – आलीशान जीवनशैलीक संग महेश झा ‘डखरामी’ नहि केवल लेखनी करैत छथि, बल्कि ओकरा सामाजिक संजालक मार्फत अपन स्टेटस तथा विभिन्न ग्रुपक माध्यम सँ निरंतर प्रकाशित सेहो करैत रहैत छथि।

pnc with jha maheshदेखल जाय तऽ वर्तमान युग मे मैथिली भाषा ओ साहित्य केँ पुनर्जीवित करबाक लेल सामाजिक संजाल आर इन्टरनेटक ब्लागपेज अत्यन्त काजक सिद्ध भऽ रहल अछि। नहि तऽ जेना पठन संस्कृति साफ चौपट भऽ गेल छल, जेना हिन्दी ओ अंग्रेजीक साहित्यिक अतिक्रमण आर भोजपुरीक बोली व व्यवहारिक अतिक्रमण सँ मैथिली भाषाक नाम पर्यन्त परिवर्तित होइत आन-आन भाषा मे परिणति पाबय लागल छल, ताहि पर अंकुश लगेबाक गंभीर कार्य ई फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर आदि द्वारा संभव भेल अछि। वर्तमान पीढी केँ अपन भाषाक नामो धरि ठीक सँ स्मरण नहि रहि गेलाक अवस्था मे सामाजिक संजाल केर एहि अकाट्य योगदानक जतेक प्रशंसा कैल जाय ततेक कम होयत आर एहि सब क्रान्ति लेल इन्टरनेट वर्सन केर लेखक, कवि, साहित्यकार, कथाकार, नाटककार, ब्लागर आदिक जतेक सराहना कैल जाय ओ कम्मे होयत। एहि पाँति मे झा महेश ‘डखरामी’ नामक आइडी केर अपन एक अलग पहिचान अछि।

सरस, सरल, सहृदय, सप्रेम, सस्नेह युक्त भाषा मे संस्कृत ओ मैथिलीक प्राकृतिक संयोग सँ भरल रचना हिनक लेखनीक विशेषता थीक। अबधी भाषा मे जेना तुलसीदास रामायण लिखिकय बाल्मीकिय रामायण केँ आम जनमानस मे सहजताक संग स्थापित कएलनि, किछु ताहि तरहक विशिष्ट लक्ष्यक संग महेश झा डखरामी अपन काव्य रचनाक यात्रा निरंतरता मे रखने छथि। एखन धरि कोनो संग्रह ओना प्रकाशित नहि भेलनि अछि, लेकिन शीघ्रे एहि दिशा मे स्वयंसेवा सँ डेग बढेता ओ कहलैन। आउ, हुनका संग भेल बातचीत केर आधार पर प्रस्तुत एहि साक्षात्कार केँ पढी आर बरोबरि प्रेरणा हरेक मैथिल स्रष्टा मे भरल जाय ताहि लेल भरसक प्रयास करी।

मैथिली जिन्दाबादः अप्पन परिचय मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक व मैथिल कें कोना देमय चाहब ?

महेश डखरामी: हम्मर परिचय हम अपन रचनाक शैली मे एना देब।

नाम महेश गाम डखराम , अनुज आशीष श्रेष्ठ प्रणाम

पांच पांडव पिता अदिष्ट , भगिनी गंगा सुशील सुदिष्ट

पच्छिम पोखरि दोसर टोल  ,भगवान दायक मधुर बोल

दच्छिन  पूजित  दुर्गाथान ,  पूर्वे  वास चतुर  सुजान

उत्तर दुसाध सनल बसल  , कृपा  राम  डखराम बनल

धोती कुरता उत्तम अंगा , बलिया सकरी  मूल दरिभंगा

काज  चाकरी दिल्ली  वास , आस बेसाह  काजहि चास

धरती मिथिला मायक कोर,पुनि पुनि दर्शन मिथिला भोर

मन वांछा आबय अवसान , अंतिम  सांस मिथिला धाम

विगत तीस बरख सं दिल्ली निवास आ सम्प्रति [ जी.एम्. सेल्स ] कार्यरत .

कविता, दोहा, सभ लिखि लैत छी।

मैथिली जिन्दाबाद: अहाँक लेखनी में पौराणिक शैली आ पद्य रूप में भावनाक प्रकटीकरण – एहि खासियतक राज कि?

महेश: आदरणीय कवि मधुप हमर विद्यालयीय गुरु छलाह। घर-आँगन, बाट-घाट, मठ – मन्दिर आ जनकंठ हार बनल रचनाक कविवर विद्यापति, महाकवि तुलसीदास, सूर, कवीर, भूषण आ सुमन एहि सब विभूतिक प्रभाव अहि हमरा पर। विद्यापति आ तुलसीक हिनक प्रभाव बेसी। सम्प्रति ३ टा शीर्षकक अंतर्गत हम लिखैत छी।

[१] महेश मन्जरी

[२] महेश पद्यावली

[३] आराधना

महेश मन्जरी : शिल्प शैली मैथिली आ तत्सम शब्दक प्रयोग करैत विभिन्न भाव केँ बन्हबाक प्रयास जेना;

मनोद्गार :  सावन सलिला सिंचित शरीर । रभसय  सारँग  सीप समीर ॥

शिव स्तुति : काल कपालिक  कीर्ति कालेश । जय नीलांबर नीलकंठ नीलेश ॥

नीति : अप्पन  वश नहि तीन वेग, वयस वारि और वायु ।

           बितला उत्तर पुनि नहि आबय, धन धर्म और आयु ॥

वसन्त : युगल कमल बल गज सिंह बान्हल, कोमल कटि सर तट पत तानल।

              मुदित  मन घोघट  पट  खोलय, सरस  वसन्त  रस  मन घोलय॥

अंतर्मन : माला  मध्य  ताग  लुप्त, संग  गंध  समीर।

               मनसिज रभसय मुस्की संग  मातल रंग अबीर॥

विभोर : घोघट अन्दर उगल दुइ चान, झूमय मनसिज बनि कुंदन कान।

              उन्नत उरसिज उर ऊपर माल, मन  विहुसन नथ चुम्बन गाल॥

लाल  : लाजे लथपथ लाले लोभित, पद लक्तक  मुख लाले शोभित।

राधा विरह: विछोह वेदन कृष्ण रंग धारण, ताप धाह तन नील।

                  विदग्ध ह्रदय विनु दर्शन माधव,तजल लाज गुण शील

मतिगति : मीत मन उचाट सम्हारू, मनक गति विशेष।

                 उतम अधम मनहि वश, मनहि शमन कलेश॥

मैथिली जिन्दाबादः वर्तमान में मिथिला कतय ?

महेश: किछु दसक सं मिथिला गाम आ शहरक मांझ अहि । ने गामे ने शहरे, जीवकोपार्जन हेतु। मैथिल भिन्न-भिन्न देश आ शहर गेलाह। ओतुक्के परिवेश में रमिकय खूब उन्नति केलथि आ कय रहल छथि मुदा आर्थिक दृष्टिये नहि की भाषायिक आ सांकृतिक रूपे, स्वयं आ संतान सभ मिथिला सँ दूर होइत गेलाह आ आब गाम में लोके कतेक ? गामक लोक, बाजारक व्यापारी, शिक्षक, प्राध्यापक सभ मातृभाषा सँ बेसी हीन्दीक प्रयोग करैत छथि। दरिभंगा, मधुबनी, सहरसा वा मिथिलांचलक कोनो जिला मुख्यालय सँ बस में बैसू छेहा हिन्दीक प्रयोग देखब। गाना केहेन आ कोन भाषाक बजैछ सभ कियो परिचिते छी।

प्राथमिक स्तर पर विद्यालय में मैथिलीक प्रश्रय भेटब आवश्यक आ अनिवार्य हो। अभिभावाकगण सेहो चिंतन करैथ आ संतान केँ मैथिलोन्मुखी बनाबैथ, बच्चा केँ अनेकों भाषाक बरु भाषाविद् बनाबू मुदा अप्पन मायक सम्मान केँ अक्षुण्ण रखैत। दू पीढ़ी उपरांत मैथिली आ मिथिलाक कि दशा होयत कने कल्पना करू। आबो चेतू।

अप्पन मायक सम्मान अपनहि करय पड़त। गाम आ शहरक भाषा माध्यम सँ कड़ी बनाबय पड़त जे काजक श्री गणेश औखन मैथिली जिन्दाबाद केलक अहि। आबो जागू, समय द्रुत गति सँ बीत रहल अछि, आलसक त्याग करू:

आलसि तजि आब मैथिल जागू, झटकि डेग भरि आगाँ आबू

निज भाषाक मानक लेल, सरल सहजता याचना त्यागू

याचनाक उत्तर नहि पांच गाम, देखल प्रमाण भीषण संग्राम

कृष्ण दर्शन केर  नीति  बनाबू, आब  संघर्षक  गीत गाबू

छीटल स्वर के गीत बनाबू, अप्पन  बोलीक नीत बनाबू

मोनक पड़रू अखनो खुटेसू, हूसल  खाम्ह साधी कय बैसू

अप्पन  भाषा  अप्पन देश, अप्पन  बोली  अप्पन  भेष

पशुओ बाजय अप्पन भाषा, मैथिल बाजथि मैथिली एतबही आशा

देसिल बयना सभ जन मिट्ठा, एकरा स्वर उद्घोष बनाबू

आलसि  तजि आब मैथिल जागू!!

मैथिली जिन्दाबाद: मैथिली भाषा समृद्ध अछि मुदा मैथिल मानस मे अपनहि भाषा सँ एना वितृष्णाक कि कारण?

महेश: बहुत नीक आ सटीक प्रश्न। मैथिली भाषा सत्ते समृद्ध अहि कोनो संशय नहि। मुदा वितृष्णा सेहो विद्यमान् अछि, मुख्य कारण जे एकरा रोजगारोन्मुखी भाषाक रूप में परिणति देबाक लेल ईमानदार प्रयास नहीं भेल, अखन प्रयास भेल जकर परिणाम प्रत्यक्ष अहि जे बहुतो मैथिल बी.पी.एस.सी. आर यु.पी.एस.सी में उतीर्णता उतर अधिकारी बनलाह, ईहो खबरि मैथिली जिन्दाबाद देने छल। मैथिली केँ शिक्षाक माध्यम बनाओल जाय। भारत पर अंग्रेजक दीर्घ शासनक कुंजी मैकालेक शिक्षा पद्धति छल आ ओ छल अंगरेजी। समयानुरूपे लेखक, कविक सेहो  दायित्व जे अपन कृति में नव-नव प्रयोग करथि – नवतुरक  लेल  मुदा आत्मा अक्षुण्ण रहौक, मूल भेल बूट, किनको सतुआ, किनको घुघनी त’ किनको भुज्जा रूचैछ परंच आत्मा वएह। तात्पर्य जे समेकित प्रयास हो तखने  मैथिलीक प्रति वितृष्णाक निदान होयत।

मैथिली जिन्दाबाद : भैया, अहांक लेखनी में ओ ओज देखैत छी मानू कोनो संस्कृतक विद्वान् अचानक मैथिली लिखबाक प्रण केने हो, कहिया – कतय – कोना ई प्रेरणा भेटल ?

महेश : अधिकांश मैथिल कवि ठेठ आ आंचलिक शब्दक प्रयोग करैत छथि आ उत्तमोत्तमो। माय जीबैत छलीह, एक दिन जेठक दुपहरिया में दलान पर पाहुन एलाक उत्तर माय लोटा में शरबत  घोरैत छलीह। शर्बतक यात्रा एक सं दोसर लोटा में अनवरत चली रहल छल, नेन्ना पुछल- माँ, एना में शरबत बढ़तै की? माय विहुंसिकय बजलीह – धुर! बताह!! चिन्नी आ नेबो घुलतै आ मिलतै – मात्रा किन्नहु नहि  बढ़तै – जा धरि बाहर सं एहि मे आरो जल नहि मिलतय। मायक यैह बात अपन मातृभाषा मैथिली केर वृद्धि लेल प्रेरित करैत रहल। बस मोन कहलक कोनो पोखरि, सरिता, नदी वा भाषा केँ जाधरि बाह्य श्रोतक संग नहि त’ वृद्धि नहि।

संस्कृत [तत्सम] सभ भाषाक जननी, तेँ सोचल रचनाक शिल्प शैली एहेन विकसित करी जाहि में तत्समक प्रयोग मैथिलीक रस में बोरि कय क’ सकी। आरम्भ में दिक्कत भेल। आब सहज लगैत अछि। अपने सही पकड़ल हमर रचनागत शिल्प शैली आ शब्द कें। एतेक महीन बात ठेकानय लेल – साधुवाद!!

उदाहरण : राधा स्तुति :

किशोरी गोप वंशजा, वनदेवी मोहन मंशजा।

मुरली  मान  वन्दिता, वलय वेश  खंडिता॥

मुकुंद माधव  संगिनी, वनिता वेणी अंगिनी॥

राधा विग्रह विज्जुला, कृष्ण  केशव मंजुला॥

वसन्त :

गुन्जित गीत भ्रमर भनक नहि काने, कुसुम छाप हनय ह्रदय पचवाने।

भासलि  भाव  वासन तन काटय, पुंजित  प्रीति  पुष्प  पट फाटय।

मंजुल मूरति  मन  मध्ये मण्डित, मनमुख मनसिज माया पंडित।

दीयाबती :

ज्ञानदीप मध्य चेतन तेल, मधुर  बोल बाती मनमेल।

बुद्धि वरेण बल उन्नत छाती, शुभ मंगल दिन दीयाबाती।

दर्शन :

मुख गुड अर्पण कानहि छेद, दर्द मिठास मन भ्रमही विभेद।

मैथिली जिन्दाबाद: अहाँ मैथिली साहित्य कतेक पढ़लौं ? कतेक पढ़ैत छी ?

महेश: बहुत कम, मात्र हाई स्कूल धरि। सुनल खूब! बहेड़ा विद्यालय में मधुपजीक सान्निध्य प्राप्त छल। विद्वान् कवि लोकनि ओतय अबैत छलाह –बालक महेश टहल में लागल रहैत छलाह। श्रोता नीक छलहुँ। मधुपजीक पत्राचारक शैली पद्यमय रहैत छल। संभवतः ओहिये टहलक आशीष थीक जे किछु लिखि पाबि रहल छी। आब अध्ययन हेतु समय नहि बचैछ। फेसबुक आ मैथिली जिन्दाबाद ई अवसर दैछ जे किछु अपन भाषाक चीज सब पढि पबैत छी।

मैथिली जिन्दाबाद: भैया, गामक नाम अपना उपनाम में – अहा – हम त’ गद्गद् छी। डखराम वासी कतेक गद्गद् छथि?

महेश:

जरिसो दच्छिन, उत्तर बहेड़ा, लवानी दच्छिन

मध्ये मानित मंजुल गाम,  देवीथानक गाम डखराम

कैथ कमार जादव धुनियाँ, दुसाध चमार बाभन बनियाँ

मियां धानुक कमती हजाम, मिलन बारहों वर्ण एहिठाम

ओहिये गामक महेश संतान, दिव्य गाम डखराम प्रणाम

गाम छुटला प्रायः ३० बरख सँ बेसी भेल। गाम जेबाक संयोग सेहो बहुत कम भेटैछ। बरख दू बरख पर जाएत छी। संग-तुरिया सभ आ जे फेसबुक पर छथि से सभ उत्साहित करैत रहैत छथि। अन्य गाम वासीक विषय में जनतब नहि अछि। पोथी एलाक  उपरांत ई संभव होयत। बस!

मैथिली जिन्दाबाद: अपन रचना सबहक प्रकाशन लेल की सोचने छी ?

महेश: दूटा पोथीक सामग्री तैयार अछि। तेसरो प्रायः लागिचेले जकां अछि। नाँ तीनूक सोचने छी।

[१]. महेश मन्जरी

[२] महेश पद्यावली

[३] आराधना  

भगबतीक दृष्टि दहीन रह्लैन्ही त’ एहि बरख दू टा पोथी प्रकाशन लेल नियारने छी। अपने सभक आ सुधी पाठकक शुभकामना चाही।

मैथिली जिन्दाबाद: पहिल रचना आओत त’ ओकर भूमिका में कि लिखब?

महेश :

मनहि मान विजय वरण, मनहि पराजय हाथ

मन अंके सकल सुफल, मनहि नाचाबत पात

मनहि छाया मनहि माया, मनहि चिंतन सार

मनहि मौन मनहि नाद, मानक वेग अपार 

मैथिली जिन्दाबाद : कमौआ बेटाक मात्रिभूमिक प्रति  सान्दर्भिक आ सारगर्भित करबाक विचार आ संकल्प – दूनू बताबू।

महेशः प्रत्येक श्रमशील व्यक्ति जकरा अप्पन पारिवारिक आ सामाजिक दायित्वक बोध अछि ओ कमौआ अहि। परिवारक जीवन ऊर्जा एवंम् अन्यान्य भारक निर्वहन हेतु कमेनाय आवश्यक। मातृभूमि हेतु अप्पन लेखनी केँ आगाँ आनब आ न्यूनाधिक पुरस्सर छीहो। रिटायर भेलाक उपरान्त बड्ड प्रबल इच्छा “महेश मानस” लिखबाक अहि – मैथिली रामायण वा एहने कोनो प्रबंध काव्य। आगा ईश्वरेच्छा बलीयसी। महेश पद्यावली “महेश मानस”क  पूर्वाभ्यास कहल जा सकैछ। कतेक सफल होयब से भवानीक भाव [ मैथिली – सीता ] पर आश्रित।

मैथिली जिन्दाबाद : मैथिली भाषक नाम –मैथिली जगज्जननी सियाक नाम –मिथिला तन्त्र भूमि – किछु कहब?

महेश : मिथिला [ विदेह द्वारा शासित क्षेत्र ] विदेह [सम्प्रति नेपाल] वैशाली आ अंग सं मिलिकय बनल क्षेत्र में बाजल जायबला भाषा – ओना किंवदंती / मान्यता जे राजा मिथि आ सेहो निमि राजाक शरीर मथला [ मंथन ] सँ उत्पन्न। जे राजा निमि पुनः शरीर प्राप्त करबाक वरदान केँ ठोकरा देलनि, लेकिन आइ धरि सबहक निमेष मे जिबैत छथि। हुनकर आशीर्वादित ई भूमि – सिद्ध भूमि थीक।

मैथिली जगज्जननी सियाक नाम : सिया-सीता – सीरध्वजक यग्य भूमि में हलाग्र सं उत्पन्न, ऋग्वेदनुसार – सीताक अर्थ भूमि पर हर सं जोतल रेखा, भूमिजा, शब्द ब्रह्ममयी, शक्तीस्वरूपा आ सब सं पैघ कृषिक, धन्य-धान्यक देवी थिकी। हर रूप मे हुनकर अवतारहि सँ एहि तांत्रिक भूमि मिथिलाक सिद्धि सिद्ध होएत अछि। 

मिथिला तंत्र भूमिः तंत्र – अधिष्ठात्री देवी – शक्ती। सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र  शक्तिक उपासक आ उपासनाक स्थल। मिथिलाक मातृशक्ति – देवीक आराधना। ओना एहेन गूढ़ विषय पर संक्षेप में एतबहि। मैथिली जिन्दाबाद एही विषय पर  आलेख परसि चुकल अछि। 

मैथिली जिन्दाबादः मैथिली जिन्दाबाद पर अहाँक बहुत रास पांति बेरि-बेरि पढ़य लेल भेटल। बहुत आभारी छी। हम पेशागत नै संचारकर्मी छी आ नहिये हमर ई प्रयास कोनो मीडियाक भूमिका निर्वाह कय सकैत अछि  तथापि अहाँक भावना आ भावुकता देखि मन सँ एकटा गप्प पूछि रहल छी। बताउ – मैथिली जिन्दाबादक  प्रासंगिकता आइ केहेन भऽ रहल अछि? हमर प्रयासक फूइस प्रशंसा नहि कय अपन निरपेक्ष सुझाब रूप में बताउ।

महेश : मैथिली जिन्दाबाद – मैथिली – मैथिल आ मिथिला सं जुडल प्रायः जिनगीक समस्त पक्ष कें छूबाक प्रयास थीक, सराहनीय। मैथिली लेल कोनो सशक्त पटल नहि छल – एकगोट रिक्त स्थान भरल गेल। एकटा नव स्थान उपलब्ध कराओल गेल – भावनाक अभिव्यक्ति लेल – आ जाहि में नवलता आ विविधता – समयानुकूल परिवर्तन – बहुआयामी कृतित्व ओकरा श्रेष्ठ बनबैछ | मैथिली जिन्दाबाद अपन पारम्परिकताक प्रति साकांक्ष अछि आ रहय – पाश्चात्य आ प्राच्य दुहू केँ लय संग चलय – साहित्यिक आ सांकृतिक रक्षणार्थक सोच बनल रहय तखने मैथिली जिन्दाबाद!! ईत्यलम!!

धन्यवाद आदरणीय स्रष्टा महेश झा डखरामी – संपादक प्रवीण नारायण चौधरी केर पहल पर महात्मा गाँधी स्मारक – राजघाट पर आयोजित मैथिली कवि गोष्ठी मे मुख्य प्रस्तोताक रूप मे भेंटघांट आर जेठ-छोट भाइ समान आपसी स्नेहसिक्त संबंध सहित समस्त मिथिला मे अपने समान आरो स्रष्टा होइत रहैथ एहि शुभकामनाक संग – अभिवादन! मैथिली जिन्दाबाद!!