बरखा वर्णन – मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र द्वारा

रामचरितमानस आधारित रोचक प्रसंग – दर्शन

– महाकवि तुलसीदास

समूचा मिथिला मे मनायल गेल जानकी नवमी - २७ अप्रैल, २०१५ केँ
समूचा मिथिला मे मनायल गेल जानकी नवमी – २७ अप्रैल, २०१५ केँ

श्रीरामजी द्वारा वर्षा ऋतुके वर्णन – भक्ति, वैराग्य, राजनीति आ ज्ञान भरल बात सऽ भरल कथा-वर्णन! (किष्किन्धाकाण्ड दोहा १२ सऽ दोहा १५ तक)। अनिवार्य पठनीय एवं मननीय!

१. मयुरके झूँड मेघ देखि एना नचैत अछि जेना वैराग्यमें अनुरक्त गृहस्थ कोनो विष्णु-भक्त केँ देखि प्रसन्न होइछ।

२. आकाशमें मेघ घुमैड़-घुमैड़ गर्जना करैछ जाहिमें प्रिया (संगिनी सिया) के बिना रामजी के पर्यन्त डर लागि रहल अछि।

३. बिजलीके चमक मेघमें रुकि नहि पबैछ जेना दुष्टके प्रीति स्थिर नहि रहैछ।

४. मेघ पृथ्वीके लगमें आबि नीचाँ उतरि एना बरसैछ जेना विद्वान्‌ विद्या पाबिकेँ नम्र बनैछ।

५. बुन्नीके चोट सऽ पर्वत एना सहैत अछि जेना दुष्टक वचन संत सभ सहैछ।

६. छोटो नदी भरला पर अपन किनाराके तोड़ैत एना चलैछ जेना थोड़बे धन भेला सऽ दुष्ट मर्यादाके तोड़ैत चलैछ।

७. पृथ्वीपर पड़िते पाइन एहेन गंदा भऽ जाइछ जेना शुद्ध जीवके माया घेर लैत अछि।

८. जल जमा होइत-होइत पोखैरमें एना भैर रहल अछि जेना सद्‌गुण सभ एक-एक कयके सज्जनके पास चलि अबैछ।

९. नदीके जल समुद्रमें जाय ओहिना स्थिर भऽ जाइछ जेना श्रीहरिके पाबि अचल भऽ जाइछ।

१०. पृथ्वी घास सऽ परिपूर्ण भऽ के एतेक हरियर भऽ जाइछ जाहिसँ बनल रास्ता सेहो बुझयमें नहि अबैछ, जेना पाखंड मतके प्रचार सऽ सद्‌ग्रंथ गुप्त भऽ जाइछ।

११. चारू दिस बेंगक आवाज एहेन सुन्दर लागैछ जेना विद्यार्थी समुदाय वेदपाठ कऽ रहल हो।

१२. अनेकों गाछ सभमें नव-पल्लव आबि जाइछ जाहिसँ ओ हरियरे-हरियर आ सुशोभित भऽ जाइछ जेना साधकके मन विवेक-ज्ञान प्राप्त कयलापर भऽ जाइछ।

१३. मदार आ जवाशा (दू किस्मक गाछ) बिन पत्ताके भऽ जाइछ जेना श्रेष्ठ राज्यमें दुष्टक उद्यम नहि चलैछ।

१४. धूरा कतौ तकलो पर नहि भेटैछ जेना तामश (क्रोध) धर्मके दूर कय दैछ।

१५. अन्नयुक्त लहराइत खेतक हरियरी सऽ पृथ्वी केना शोभित भऽ रहल अछि जेना उपकारी लोकक सम्पत्ति बनैछ।

१६. राइतक घनगर अन्हारमें भगजोगनी एना शोभा पबैछ जेना दम्भीके समाज सभ के जुटान भेल हो।

१७. भारी बरखा सऽ खेतक कियारी ओहिना टूटि गेल अछि जेना स्वतन्त्र भेला सऽ स्त्री बिगैड़ जैत अछि।

१८. चतुर किसान अपन खेत सऽ अनावश्यक घास-गंदगीके निकालि फेक रहल छथि जेना विद्वान्‌ लोक मोह, मद आ मानके त्याग करैत अछि।

१९. चक्रवाक पंछी देखैय नहि दऽ रहल अछि जेना कलियुग पाबि धर्म भागि जैछ।

२०. ऊसर में बरखा होइछ लेकिन ओहिठाम घासो नहि उगैछ जेना हरिभक्तके हृदयमें काम नहि उत्पन्न होइछ।

२१. पृथ्वी अनेको प्रकारक जीवसँ भरल ओहिना शोभायमान बनैछ जेना सुराज्य पाबिके प्रजाके वृद्धि होइछ।

२२. जतय-ततय अनेको राही-बटोही थाकि के रुकि गेल छथि जेना ज्ञान उत्पन्न भेला पर इन्द्रिय शिथिल भऽ के विषयके तरफ जेनाय छोड़ि दैछ।

२३. कखनहु-कखनहु हवा एहेन जोर सऽ बहैछ जाहिसँ मेघ उड़ियाके गायब भऽ जाइछ जेना कुपुत्रके उत्पन्न भेला सऽ उत्तम धर्म – श्रेष्ठ आचरण नष्ट भऽ जाइछ।

२४. यदाकदा मेघक कारण दिनमें सेहो अन्हार गुज्ज भऽ जाइछ आ कखनहु सूर्य प्रकट भऽ जाइ छथि जेना कुसंग पाबि ज्ञान नष्ट भऽ जाइछ आ सुसंग पाबि ज्ञान उत्पन्न भऽ जाइछ।

जय श्री राम! सीताराम सीताराम!!