मिथिलाक जयचंद

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विचार-विमर्श

– प्रवीण नारायण चौधरी

जयचंद माने के?

jaychand imageजयचंद याने वैह जे पृथ्वीराज चौहान समान वीर राजा संग अन्तर्द्वेष आ ईर्ष्या सऽ भरल अपन बेटी संयोगिताक प्रेमके पर्यन्त दाव पर चढबैत ताहि समयक देशक दुश्मन मुहम्मद गोरी संग हाथ मिलबैत अन्ततोगत्वा अपन प्रतिशोधक ज्वाला शान्त केलक जखन १७ बेर हाइरक मुँह देखने गोरी वीर राजाके धोखा सऽ अठारहम बेर बन्दी बनेलक आ दुष्ट गोरी हुनक दुनू आँखि फोरि आन्हर बना देलकैक लेकिन वीरक गति वीरहि के समान होइत छैक से शब्दभेदी बाण चलेबामें माहिर पृथ्वीराज अपन मित्र चंद बरदाईक योजना अनुसार गोरी द्वारा पृथ्वीराजक कला-कौशलमें शब्दभेदी बाण चलेबाक प्रदर्शन लगेबाक आयोजन कराय गोरीक मुँहें शाबाश निकैलते एक बाण सीधा गोरीक सीनामें धँसा देलक आ तदोपरान्त दुनू दुश्मनक हाथक दुर्गतिसँ बचबाक लेल एक-दोसरके मारि शहीद बनि गेला…. संयोगिता अपन प्रेमी पृथ्वीराजक मृत्यु सुनि शती बनि गेलीह आ अपन प्रेमके अमर कय लेलीह।

मिथिला माने कि?

विश्वके एक प्राचिनतम् अनूठा संस्कृति जेकर अपन राज, अपन विधान, अपन भूगोल, अपन संसाधन, अपन अर्थतंत्र आ सभ सऽ विलक्षण जे अपन विद्याक सौर्यसँ मिथिलावासी भैर दुनियाके मार्गदर्शन करबैत आयल अछि…. जे कालान्तरमें न्यायप्रेमी राजा जनक प्रथम सऽ तिरपन तक के राज में रहल, मुदा अन्तिम जनक प्रजाप्रेमी व न्यायप्रेमी नहि रहलाके कारण जनतहिके द्वारा मारल गेला, ताहि मिथिलामें सैकडों वर्ष बिना कोनो मूर्तिवान राजाक सेहो व्यवस्थापन चलैत रहल, ततेक शालीन प्रजाक देश मिथिला आइ भारतक बिहार प्रान्त अन्तर्गत तीन-चौथाइ आ नेपालमें सात जिलाक क्षेत्रफलमें बाकी भाग सुशोभित अछि – लेकिन संवैधानिकता अनुरूप मिथिलाक कोनो मान-सम्मान विशिष्ट नहि छैक, कोनो पहचान नहि छैक, उलटे एहि ठामक विशिष्टता क्षण-क्षण क्षरण भऽ रहल छैक, लोक पलायन कय रहल अछि, संसाधनविहीनताक अवस्था बनि रहल छैक…. आ मानू जेना संस्कृति विनाशोन्मुख बनि गेल छैक… तैयो वर्तमान कोनो राजनैतिक संरक्षण के हिसाब नहि बनि रहल छैक।

मिथिलामें पृथ्वीराज के?

जेना पहिले कहि देलहुँ जे कतेको वर्ष राजाविहीन रहितो पूर्वमें मिथिला अपन कारोबार-शासन-प्रशासन चलेलक, मुदा कालान्तर में अनेको परदेशी राजा एहि ठाम शासक बनल। लेकिन ततेक रास बौद्धिक शेर सभ एहि माटिमें जन्म लैत रहल जे राजा रहितो एहि ठामक गोनू झा समान चतुर मंत्री आ विद्यापति समान प्रखर राजसेवक – राजामित्र सभ शासनके अपना हिसाबे चलबैत रहला… मिथिलाक राजा नहि कहाय दरभंगा राजा आ मैथिलीके पोषण नहि कय हिन्दी लेल नोर बहेनिहार राजा सभ सेहो बनैत रहलाह… जिनका समाजमें वेद आ धर्म सँ लोक के जोडि रखबाक छल से सभ राजा आ जमीन्दार बनि गेलाह आ समाजमें जे विलक्षण सिद्धान्त बनाओल गेल छल पुरखाके द्वारा तेकरा भ्रष्ट करैत दमन व दामाशाही शासन व्यवस्था बनबैत समाजक सभ तवका बीच सामंजस्य तोडि देलाह जेकर दुष्परिणाम बेर-बेर विदेशी शासक के शासन में रहब लेकिन घरक लोक राजा नहि बनि जाय ताहि तरहक सोच रखनिहार अनेको जयचंद के बीच पृथ्वीराज गनल-चुनल किछु समाजसेवी, वरिष्ठ, कुशल नेतृत्वकर्ता, प्रखर व्यक्तित्व जे न्यायसंगत भावसँ सभके एकतामें बान्हि अपन संस्कृति लेल समर्पित रहबाक प्रेरणा संचरित करैत मिथिला राज्यके मर्म जियेने रखलाह।

मिथिलाक जयचन्द के?

आब बात करी जयचन्दके! हरेक १० गो मैथिलके एक जगह बैसाउ – एक कहत जे ई काज एना केला सऽ ठीक रहत, दोसर कहता जे ऊंह तेना केला सऽ गडबडा जायत, हे एना करू…. तेसर कहत कि यौ जी बताह भऽ गेलियैक अछि… एना या ओना केला सऽ किछु नहि होयत, हे हेन्ना करू! सिलसिला चलैत रहत, समय बितैत जायत… निर्णय अन्तिम समय में यैह होयत जे कनि अहाँके बात, कनि हुनकर बात आ तखन खिचरी शासन-प्रशासन सऽ काज चलेबाक योजना बनत जेकर परिणाम जेना सभ दिन होइत रहलैक अछि जे दाँत खिसोरि आ बैलूनमें हवा भरैत बस मोंन टा मनायल जेतैक किछु तहिना जीरो!! कहबाक तात्पर्य जे अन्तर्द्रोही भावना सँ ग्रसित मैथिल मिथिलाक जयचन्द थिकाह। यदि काज करबाक अपन योगदान निर्धारित करबाक बदला मेक्चोबाजी आ बुद्धिक ‘काँटा लगा हाँ लगा’ गेनिहार व्याधिग्रस्त मैथिल जाबत गप मारबाक आदी रहता ओ जयचन्द टा के पर्याय बनि सकैत छथि, नहि कि पृथ्वीराज चौहान बनि सकैत छथि। जयचन्दके बहुत रास श्रेणी छैक – किछु गोटा कहता जे हमरा सऽ बेसी बुधियार आइ धरि कियो भेवे नहि केलैक… हम एना, हम ओना, ‘हम्मा… हम्मा… हे हम्मा! एक हो गये हम और तुम! हम्मा…. हम्मा!’ बस हम्मा गीत गेनिहार हमरा बुझने एक नंबर के जयचन्द थिकाह। नहि तऽ कोनो काजे परिणाम निकैल सकलाह आ नहिये कोनो क्षमता छन्हि तैयो कहता जे मिथिला हमरहि सऽ आ धैन हम जे ई एना ओ ओना!! हाय जी महाराज! देवाल पर दुनू हाथे धक्का मारि रहल छी आ कहबैक जे हम मिथिला बना रहल छी? खोंखीबाज जयचन्द सेहो कम नहि मिथिलामें! खोंखी केहेन…. एखन अहाँ सभ करू नऽ, हम तऽ एके बेर पहाड ढाहि देबैक। एखन हम देखि रहल छी, समय सही नहि छैक। एखन विकास लेल हम सभ काज कय रहल छी। युवा छी। यौ बूरि हरासंख! अहाँ जयचन्द छी जे वर्तमान प्रयासमें एकजूट होवय सऽ असमर्थ छी आ खोंखैत छी जे हम्मा-हम्मा! कैण्डिल जराय दिल्लीक दामिनी लेल न्याय माँगैत हूल्लरबाजी टा करब, अपन खसल अस्मिता लेल कोनो सोच आ कोनो काज नहि करब, खाली छौंडा-छौंडी खेलायब आ प्रतिबद्ध पृथ्वीराज संग ढूइसबाजी करब तऽ कहू आन जयचन्द के?

(पुरान संकलन सँ प्रस्तुत)