अमित आनन्द, महिषीधाम, सहरसा। सितम्बर ३, २०१५. मैथिली जिन्दाबाद!!
दिल्ली मे आयोजित दुइ दिवसीय विश्व हिन्दू-बौद्ध पहल केर उद्घाटनक सुअवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मिथिलाक मंडन मिश्र व हुनक धर्मपत्नी भारतीक संग शंकराचार्यक शास्त्रार्थ केर भरपूर उपमा-व्याख्यान दैत बौद्ध तथा हिन्दू विद्वान् बीच अपन संबोधन रखलैन। प्रधानमंत्री द्वारा देल गेल संबोधनक अक्षरश: अनुवाद मैथिली मे निम्न अछि।
“जखन हम बातचीत केर बारे मे बात करैत छी तऽ महत्वपूर्ण ई होइछ जे बातचीत कोन प्रकारक हेबाक चाही! ई वार्ता एहेन हेबाक चाहि जे क्रोध या प्रतिकार उत्पन्न नहि करय। एहेन वार्ताक सबसँ पैघ उदाहरण आदिशंकर आर मंडन मिश्र केर भेल शास्त्रार्थ छल। आधुनिक समय हेतु ई प्राचीन उदाहरण स्मरणीय आ वरण योग्य अछि। आदिशंकर एकटा युवा जन छलाह जे धार्मिक कर्मकांड केँ बेसी महत्व नहि दैथ, जखन कि मंडन मिश्र एकटा बुजुर्ग विद्वान् छलाह आ जे अनुष्ठान आदिक अनुयायी छलाह, संगहि पशु बलि मे सेहो विश्वास करैथ।
आदि शंकराचार्य कर्मकांड केर ऊपर चर्चा और बहस केर माध्यम सँ ई स्थापित करय चाहैत छलाह जे मुक्ति प्राप्त करबाक लेल ई कर्मकांड आवश्यक नहि अछि जखन कि मंडन मिश्र ई सिद्ध करय चाहैत छलाह जे कर्मकांड केँ नकारय मे शंकर गलत छथि। प्राचीन भारत मे विद्वान लोकनिक बीच संवेदनशील मुद्दा केँ वार्ताक द्वारा सुलझायल जाइत छल और एहेन मुद्दा सड़क पर तय नहि होइत छल। आदिशंकर और मंडन मिश्र शास्त्रार्थ मे भाग लेलनि और ओहि मे शंकर विजयी भेलाह। लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा बहस केर नहि छल वरन् ई छल जे ओ बहस कोना आयोजित कैल गेल। ई एक एहेन सुरुचिगर कथा थीक जे मानवता केर लेल सर्वकाल मे परिचर्चाक उच्चतम रूप प्रस्तुत करैत रहत।
एहेन सहमति छल जे अगर मंडन मिश्र हारि जेता तऽ ओ गृहस्थाश्रम छोड़ि देता, ओ संन्यास ग्रहण कय लेता। जँ आदिशंकर पराजित भऽ जेता तऽ ओ संन्यास छोड़ि विवाह कय गृहस्थाश्रमक जीवन अपना लेता। मंडन मिश्र, जे उच्च कोटिक विद्वान छलाह, ओ आदि शंकर केँ जे एक युवा छलाह, हुनका कहलनि जे मंडन मिश्र सँ हुनकर समानता नहि अछि तैँ ओ अपन पसिनक कोनो व्यक्ति केँ पंच चुनि लैथ। आदिशंकर मंडण मिश्र केर पत्नी जे स्वयं विदुषी छलीह, हुनके पंच केर रूप मे चुनि लेलाह। अगर मंडण मिश्र हारैत छथि तऽ ओ अपन पति सँ हाथ धो लेती। लेकिन देखू जे ओ कि केलनि! ओ मंडन मिश्र और शंकर, दुनू सँ ताजा फूल केर हार पहिरि लेबाक लेल कहलनि और कहलनि जे तेकर बादे शास्त्रार्थ शुरू होयत। ओ कहला जे जाहि फूल केर हार केर ताजगी समाप्त भऽ जायत हुनके पराजित घोषित कैल जायत।
एना कियैक? कियैक तऽ अहाँ दुनू मे जेकरा क्रोध आबि जायत ओकर शरीर गर्म भऽ जायत जाहि कारण सँ मालाक फूलक ताजगी समाप्त भऽ जायत। क्रोध स्वयं पराजय केर संकेतक अछि। एहि तर्क पर मंडण मिश्र केँ शास्त्रार्थ मे पराजित घोषित कैल गेल। ओ संन्यास अपनौलनि आर शंकर केर शिष्य बनि गेला। ई बातचीत केर महत्ता केँ दर्शबैत अछि जे बातचीत बिना क्रोध और संघर्ष केर हेबाक चाही।”